"एक पातिव्रत की अद्भुत कहानी: एक पतिव्रता सावित्री"
" एक पातिव्रत की अद्भुत कहानी : वट सावित्री" पर्वों के देश इस भारतवर्ष में पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक अद्भुत कहानी पातिव्रत की प्रसिद्ध है जिसे "वट सावित्री" के नाम से जाना जाता है। क्यों मनाई जाती है "वट सावित्री" पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,राज्य से निर्वासित द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को तत्वज्ञानी, राजर्षि अश्वपति की पुत्री सावित्री ने उस समय पति रूप में वर लिया,जब वह अपना वर ढूँढने जा रही थी। विवाह के समय आकर देवर्षि नारद ने सावित्री से उसके भावी पति के अल्पायु होने की बात कही,फिर भी उसने यह कहकर टाल दिया कि मन से वरण पश्चात ये मेरे प्राणवल्लभ हो चुके हैं,अब मैं विवाह प्रस्ताव अस्वीकार नहीं कर सकती।उसके बाद सावित्री और सत्यवान का विवाह हुआ जिसके पश्चात वह अपने पति,सास-श्वसुर के साथ ही वन की कुटिया में रहने लगी। सत्यवान आज्ञाकारी पुत्र,धर्मपरायण व शील गुण से युक्त थे।नित्य वन में जाकर लकड़ी काट,उसका प्रयोग यज्ञादि में कर वे जीवनयापन करते थे। Nahin punarvichar ho :karma-dharma shrestha ho सत्यवान का मृत्युकाल व सावित्री का हठ देवर्षि नारद के कथ...