कोयला खनिक दिवस (Coal miner's day)
कोयला खनिक दिवस (coal miner's day)
आज कोयला खनिक दिवस के अवसर पर उन सभी श्रमिक बंधुओं के लिए दो शब्द जिन्होंने जीवन के सम्पूर्ण ऊर्जा को हमें सुविधा देने को झोंक दिया है।
क्यों मनाया जाता है यह दिवस ?
किसी भी दिवस को मनाने या दिवस विशेष को याद करने के पीछे हमारा कोई ना कोई उद्देश्य होता है।किसी दिवस के पीछे संबंधित ऐतिहासिक घटनाएं होती हैं तो किसी के पीछे उस दिवस विशेष को मनाने का महत्व,इन्हीं दो विशेष कारणों पर दिवस विशेष का आयोजन निर्धारित है।
कभी-कभी तो यूँ ही प्रसन्नता के लिए भी लोग दिवस विशेष मना लिया करते हैं।
अब इस दिवस विशेष की यदि बात की जाय तो coal miner's day अर्थात कोयला उत्खनिक दिवस मनाने के पीछे हमारा ध्येय यह है कि इस जीवाश्म ईंधन को प्राप्त करने में लगने वाले प्राणियों को किस प्रकार की समस्याएँ आती हैं उनसे विश्व का परिचय कराया जा सके।
अब इस दिवस विशेष की यदि बात की जाय तो coal miner's day अर्थात कोयला उत्खनिक दिवस मनाने के पीछे हमारा ध्येय यह है कि इस जीवाश्म ईंधन को प्राप्त करने में लगने वाले प्राणियों को किस प्रकार की समस्याएँ आती हैं उनसे विश्व का परिचय कराया जा सके।
साथ ही मुख्य रूप से ४ मई को प्रतिवर्ष इस दिवस को मनाने के पीछे हमारा एकमात्र ध्येय कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों की मेहनत और योगदान को सम्मानित करना है।
इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों और समारोह के माध्यम से कोयला खनिकों को सम्मानित कर हम विश्व के समक्ष यह उदाहरण रखने का प्रयास करते हैं कि हमारे लिए इस देश का हर वर्ग सम्माननीय है।
कोयला खनन :-मृत्यु देव वरण
कोयला खनन का कार्य अत्यंत सरल नहीं होता,धरती के अत्यंत गहराई में जाकर इस जीवनोपयोगी कोयले को उत्खनन कार्य के द्वारा प्राप्त किया जाता है जहाँ पर श्वसन प्रक्रिया सामान्य गति से मानव में कार्य नहीं कर पाती। भूगर्भ में अति उच्च दाब के कारण प्राणवायु की कमी होने लगती है और व्यक्ति ना चाहते हुए मृत्यु का वरण करने लगता है।
पृथ्वी की गहराई से इस पत्थर को जिसका जलावन व अन्य रूपों में प्रयोग किया जाता है इसकी प्राप्ति हमें कराने के लिए ताकि हम इनका प्रयोग घरों व अन्य व्यवसायों में कर सकें कुछ महामानव पृथ्वी के अंदर अति उच्च दाब के फलस्वरूप होने वाले घर्षण के कारण उत्पन्न विस्फोटों के कारण अपने प्राण होम कर जाते हैं।
जीवनोपयोगी ईंधन कोयला और इसका खनन
हमें यह ज्ञात है कि इस ईंधन को तैयार होने में लगभग अरबों-खरबों वर्ष लग गए थे क्योंकि इसका निर्माण प्राकृतिक आपदाओं के फलस्वरूप पृथ्वी के भीतर समाविष्ट होने वाले विभिन्न वनस्पतियों व जैव अवशेषों से हुआ था,फलतः इसी कारण इसे जीवाश्म ईंधन कहा जाता है।
इसी जीवाश्म ईंधन अर्थात कोयले को खनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने खनिक वर्गों को हज़ारों-हज़ार फीट
पृथ्वी के भीतर जाना पड़ता है जहाँ अत्यधिक उच्च दाब हो।
कभी-कभी अत्यधिक उच्च दाब को सहन न करने की स्थिति में पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित उष्मा अपना निकास द्वार ढूँढने लगती है जिससे अत्यधिक दबाव उत्पन्न होने के कारण यहाँ भयंकर विस्फोट होता है।
इसमें व्यक्ति और वस्तु की भयंकर हानि भी होती है।
कोयले के किस्म और उनके उपयोग
कोयले के विभिन्न किस्मों में एन्थ्रासाईट ८०-९५% कार्बन उपलब्धता वाले मजबूत चमकदार कोयले की किस्म का प्रयोग घरों तथा व्यावसायों में स्पेस हीटिंग के लिए किया जाता है।
वहीं इसके और एक-दूसरे किस्म ७७-८०% कार्बन उपलब्धता वाले काले या भूरे रंग के बिटुमिनस का प्रयोग
भाप तथा विद्युत संचालित ऊर्जा के इंजनों तथा कोक निर्माण में होता है।
लिग्नाईट कोयला जो भूरे रंग का होता है और जिसमें कार्बन उपलब्धता २८-३०% होती है।
कोयले की यह किस्म स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है,इसका प्रयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
पीट कोयला की यह किस्म,कोयले के निर्माण से पहले की अवस्था वाले कोयले में कार्बन की मात्रा २७% से
भी कम होती है।यह कोयला घरेलू ईंधन में काम आता है,
पर स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक होता है।
अवैद्य उत्खनन और कोयला उद्योग
आज मनुष्य के लोभ ने उसे इतना अधिक स्वार्थी बना दिया है कि वह अपने स्वार्थपूर्ति के लिए किसी के जीवन का कोई मोल नहीं लगाता है।
इस कारणवश वह अपने लाभ प्राप्ति के लिए मानव के प्राण को ताक पर रखकर अवैद्य उत्खनन करवाता है, जिसमें जान-माल को भारी क्षति पहुँचती है। इससे कोयला उद्योग को भी काफी क्षति पहुँच रही है।
कोयला खनिकों को किस प्रकार की समस्या होती है और वो अपना जीवनयापन कैसे करते हैं,उसी विषयवस्तु पर मेरा भी छोटा-सा प्रयास उपचित्रा छंद में प्रस्तुत है,
इस छंद का विधान इस प्रकार है :-अष्टकल गुरु चौकल गुरु तथा दो-दो पदों में तुकांतता होगी,इसमें चार चरण होंगे। यह छंद चौपाई छंद की ही भांति है,पर इसमें तनिक अंतर है।
प्रयास सादर प्रस्तुत है :-
प्रदान वो ऊर्जा कर जाने।
तापे ज्वाला वो सुख लाने।।
जाते नीचे भीतर धरती।
तन रहे न उनके अब परती।।
उदर रहे न कभी खाली भी।
भूखों को भरदे थाली ही।।
प्राण कष्ट में डाल रहे हैं।
बच्चे ऐसे पाल रहे हैं।।
चिन्ता अब उनका करना है।
पीड़ा ना हो ये धरना है।।
संकट से अपने ना हारें।
आओ मिलके इन्हें उबारें।।
सदा खान में खोद कोयले।
नैया जीवन को वह ठेलें।।
जिसे काल गृह ही सब मानें।
पेट पालने अंदर जाएं।।
भावार्थ :- हमें आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हो इस कारण ये खनिक मृत्यु से भी दो-दो हाथ कर लेते हैं।अपने परिजनों के भरण-पोषण के लिए वो अति उच्च उष्मा को भी सहन कर जाते हैं।उनकी देह परती यानि भूख के कारण कमजोर ना हो जाए,इसलिए मजबूरीवश ये भूगर्भ तक खुदाई के लिए जाते हैं।
सारांश में वो हमारी प्रसन्नता और परिजनों के भरण-पोषण के लिए ऐसा जोखिम भरा काम भी करने को विवश हैं।
In english :-Here is the attempt of drawing a short touching sketch by my poetry based on upachitra chhand for the coal miner's who always play their life for the wellness of us and their family.
They dive down under the surface area of the earth for extracting coal where the death is always ready to embrace life.
But due to their scarcity they combats to the death always.
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
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