पिता जीवन को आधार देते हैं।
पिता जीवन के संबल पिता वह तरुवर हैं जो जीवन को छाँव देते हैं,जिनकी उपस्थिति से जीवन के चहुँओर एक ढाल का अनुभव होता है। पिता जब तक रहते हैं व्यक्ति अपने को एक बालक की भाँति ही समझने लगता है, किसी के ये कहने पर की ये बच्चों वाले स्वभाव का त्याग करो व्यक्ति क्रोधित इसलिए हो जाता है क्योंकि पिता के सान्निध्य में उसके जीवन को संबल प्राप्त होता रहता है। जीवन रसरी अधिक छोटी नहीं पिता के रहते ये कहने पर भी संभवतः इसलिए वह समझ नहीं पाता है कि अब बालपन का त्याग कर बड़े हो क्योंकि उसे लगता है कि अभी जीवन रसरी बहुत अधिक छोटी नहीं है इसलिए यह अभी टूटेगी नहीं। जीवन को सुनियोजित गति देना पर उस परमात्मा के यहाँ सबकी जीवन रसरी की नाप-तौल सुनिश्चित है,निर्धारित है।अतः मनुष्य कितना भी कहले,बहाने बना ले कि जीवन रसरी मेरी अभी बहुत बड़ी है ये बहाने उसके व्यर्थ ही होंगे। अतएव सभी मनुष्यों को चाहिए कि वह अपनी जीवन यात्रा को एक सुनियोजित गति देने के लिए ससमय तैयार हो जाए। पिता के रहते व्यक्ति बालक पिता क्या हैं और उनके इस संसार से परमधाम जाने के बाद व्यक्ति को कैसी अनुभूति होती है,मैंने अपने भाव विभिन्न छ...