"नहीं पुनर्विचार हो : कर्म-धर्म श्रेष्ठ हो"
पुनर्विचार नहीं,कर्म करें लक्ष्य प्राप्ति के लिए कर्म करना ही आवश्यक है, उस पर पुनर्विचार नहीं। कर्म-धर्म को ही जब श्रेष्ठ माना जाए तो सफलता की प्राप्ति होती है। लक्ष्य की सफलता-असफलता कर्म की श्रेष्ठता पर ही निर्भर है। व्यर्थ चिंतन से उत्तम, अपने लक्ष्य का सार्थक विश्लेषण है। आज की युवा पीढ़ी भाग्यवादी होने के कारण अपने लक्ष्य से भटक जा रही है। उनके भाग्यवादी होने के खण्डन करने के लिए उन्हें समझाते हुए कि अभीष्ट की प्राप्ति किये गये श्रम के आधार पर न होती है, न कि भाग्य अनुसार, मैंने यह छंदयुक्त लेख लिखने का प्रयत्न किया है। एकाग्रता का अभाव: लक्ष्य प्राप्ति में बाधक अभीष्ट की प्राप्ति करने के लिए मन का एकाग्र होना अति आवश्यक है।मन की चंचलता हमारे अभीष्ट प्राप्ति में बाधक सिद्ध हो सकती है। आज की युवा पीढ़ी में एकाग्रता के अभाव का एकमात्र कारण भौतिक सुविधाओं व आनंद प्राप्ति के विकल्पों की बहुलता है। वह अपने लक्ष्य पर केंद्रित होकर प्रयत्न तो अवश्य करता है,परन्तु इन भौतिक सुविधाओं के कारण विपथित हो जाता है। Prabal chah hogi kuchh rachoge एकाग्रचित होना अभीष्ट प्राप्ति ...