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लाँघ गये सागर हनुमंता(Shri Rambhakti ki vilakshan gatha)

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  लाँघ गये सागर हनुमंता (Shri Rambhakti ki vilakshan gatha) जब श्रीराम व समस्त वानर सेना लंका के इस पार पहुंचे तो समक्ष सागर देखकर जब सभी चिंतित हो गए तब-सागर"लाँघ गए  हनुमंता"। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त माने जाने वाले भक्त शिरोमणि हनुमान जी  ने समक्ष सागर देखकर भी श्रीराम के काज को सफल करने के लिए गहरे सागर को भी लाँघ दिया। श्रीरामचरित्रमानस के अनुसार बाल्यकाल में अपने उग्र स्वाभाव के कारण जब उन्होंने आश्रम में यज्ञ-हवन करने वाले मुनियों को अपने आत्ममुग्ध गुणों से परेशान किया तो उन्होंने उन्हें अपनी उन शक्तियों को भूल जाने का शाप दे दिया, जो उन्हें विभिन्न देवी-देवताओं से वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। परन्तु, उनके जन्म के उद्देश्य को समझकर उन मुनियों ने  उनके शाप निवारण का यह उपाय बताया कि किसी के याद दिलाने पर  उनकी सारी शक्तियाँ रामकाज हेतु पुनः प्राप्त हो जाएगी। Matri shaktiye namah phhir danav dal sanhaar karo. भक्ति शिरोमणि हनुमान और उनकी विलक्षण शक्तियाँ अष्ट सिद्धियों व नव निधियों के दाता बजरंगबली जी के पास निम्नलिखित सिद्धियां व निधि...

जग का मूल:-विश्व की आधारशिला(jag ka mool)

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  इस जग के मूल में ,इसके निर्माण में एकमात्र जो शक्तिशाली संतुलन शक्ति काम करती है उसे संसार प्रीत के नाम से जानता है। प्रीत जिसकी इस सृष्टि में व्याप्तता के कारण ही यह संसार मनोहारी लगता है। Rangamanch hai ye duniya:-ek abhinaymanch bdi hai जग का मूल :- विश्व की आधारशिला   (j ag  ka mool ) इस प्रीत की महिमा बताते हुए गुणवान व्यक्तियों ने यह बताया है कि इस संसार में प्रीत,  प्रेम ही एक ऐसा तत्व है जिसके कारण संसार की कठिन से कठिन परिस्थिति से बाहर आया जा सकता है।  गुणीश्रेष्ठों का यह भी मानना है कि इस संसार में भूख जितनी कष्टकारी नहीं है, उतनी पीड़ादायक,  कष्टकारी आपके प्रति किसी की वैर भावना होती है। Jaga ka mool:-visva ki aadharshila जीव की इच्छाओं ने किया पाश्विकता का विकास जीव अपने सृष्टि के फलस्वरूप अत्यन्त संतुष्ट था,  उसे अभाव में भी आनन्द की अनुभूति हो रही थी।  इसका मूल कारण था उसकी इच्छाओं की  उत्पत्ति।   प्रारम्भ में जीव अपने लिए अनिवार्य तत्वों से परिचित नहीं था,  इस कारण उसे इच्छाओं,  अभिलाषाओं जैसे मानसिक अनिव...

जनक

मिथिला के राजा जनक ने एक बार सफाई करवाने के लिए शिव धनुष को उठवाया। रखने के समय अनायास ही सीता जी ने  बालसुलभ खेल की भांति शिव धनुष को उठा लिया। राजा जनक यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने घोषणा करवा दी की जनक सुता का विवाह उचित समय पर इस शिव धनुष को भंग करने वाले के साथ ही होगा। अब अपनी सृजन के माध्यम से सीता जी के स्वयंवर का दर्शन कराने का प्रयत्न करता हूँ,आशा है आप सबको अवश्यमेव पसन्द आएगी। चौपाई छंद विधान:- चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे- “जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।” ऐसी चालीस अर्द्धाली की रचना चालीसा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है। चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं। 4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4 चौपाई ...

वो धरतीपुत्र

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 वो धरतीपुत्र वो धरतीपुत्र हमें भोजन उपलब्ध कराने के लिए खेती करता है। वह अपने  हल से हमारे भूख का हल सदैव निकाल लेता  है। भोजन उपलब्धकर्ता धरतीपुत्र कहना ये गलत ना होगा कि वो धरतीपुत्र  प्रातः हल लेकर खेतों में पहुँच जाता है। कल्पना करें कि यदि वो भोजन उपलब्धकर्ता धरतीपुत्र कृषि कार्य न करे तो हमें भोजन कैसे प्राप्त हो पाता। कृषि प्रधान देश भारत  भारत एक कृषि प्रधान देश है।इसकी जनसंख्या की लगभग ८०%जनसंख्या गाँवों में रहती है। उनके गाँवों में रहने के कारण ही हमारी क्षुधा की तृप्ति हो पाती है,उनके इसी तप के प्रतिफलस्वरूप हम आज आनंद में हैं। उनके इस त्याग,इस समर्पण के फलस्वरूप उन्हें सरकारी सुविधा मिलनी आवश्यक है जो आज कुछ सीमा तक दृष्टिगोचर भी है। बस उन्हीं की दशा और दिशा को ध्यान में रख इस चौपाई छंद को मैंने सृजन किया है,आशा है आप सबों को अवश्यमेव पसन्द आएगी और आपकी पसन्दात्मक प्रतिक्रिया भी अवश्य प्राप्त होगी ऐसी कामना करता हूँ । चौपाई छंद विधान -चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते...