जग का मूल:-विश्व की आधारशिला(jag ka mool)
इस जग के मूल में ,इसके निर्माण में एकमात्र जो शक्तिशाली संतुलन शक्ति काम करती है उसे संसार प्रीत के नाम से जानता है। प्रीत जिसकी इस सृष्टि में व्याप्तता के कारण ही यह संसार मनोहारी लगता है।
Rangamanch hai ye duniya:-ek abhinaymanch bdi hai
जग का मूल :- विश्व की आधारशिला (jag ka mool)
इस प्रीत की महिमा बताते हुए गुणवान व्यक्तियों ने यह बताया है कि इस संसार में प्रीत, प्रेम ही एक ऐसा तत्व है जिसके कारण संसार की कठिन से कठिन परिस्थिति से बाहर आया जा सकता है।
गुणीश्रेष्ठों का यह भी मानना है कि इस संसार में भूख जितनी कष्टकारी नहीं है, उतनी पीड़ादायक, कष्टकारी आपके प्रति किसी की वैर भावना होती है।
Jaga ka mool:-visva ki aadharshila
जीव की इच्छाओं ने किया पाश्विकता का विकास
सुख की परिभाषा सद्भावना का विस्तार
इस संसार के समृद्ध व निवास करने हेतु बनने में जो अति महत्वपूर्ण कारक है, वह है सद्भावना क्योंकि इस संसार में प्रचलित इतिहास नामक तत्व के दर्शन के अनुसार किसी भी राष्ट्र के शक्तिशाली होने के पीछे मूलभूत कारण उस राष्ट्र में सद्भावना को प्रमुखता देना था और उसके दुर्बल होने के पीछे सद्भावना का लोप होना ही मूल कारक था।
सृष्टि निर्माण का मूल कारक प्रीत
इस प्रीत नामक तत्व की व्याख्या, प्रशंसा करते हुए, महिमामंडन करते हुए अनगिनत ग्रंथ, कथाएं, श्लोक, उपन्यास इत्यादि लिखे गए हैं, आज जीवजगत विशेषकर मनुष्य जाति इससे अत्यन्त प्रवाहित है।उसने इस प्रीत, प्रेम के महिमामंडन के लिए विभिन्न प्रकार के जो साहित्यिक तत्वों की रचना की है, उन सभी के आधार पर इस प्रीत की जो सारगर्भित परिभाषा रखी है वह इस प्रकार है :-
प्रीत अर्थात वह तत्व जिसने इस सृष्टि के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वह केवल सामान्य विषयवस्तु नहीं है अपितु इसका क्षेत्र व्यापक है।
जहाँ माँ की आँचल का यह अपार आनन्द है, वही भाई-बहन के लिए अत्यन्त मधुरिम बंधन।
मित्रों के लिए प्रीत विश्वास की अकट्य सूत्र है, तो प्रियतमा के रूप में हृदयपुष्प को प्रमुदित करने का कारक।
सुविधाओं का आगमन व वैरभाव का विकास
वैरभाव, अविश्वास ने सृष्टि में पाश्विकता का किया विस्तार
विशेष-कल-संयोजन ध्यान अनिवार्यतम🙏🌹🙏
जग का मूल प्रीत है भाई।
फसल प्रीत की करें उगाई।।
नेह सभी से सदा लगाएं।
वैर भाव ना कभी जगाएं।।
मानव में हो मानव दर्शन।
पापकर्म का अब हो कर्षण।।
मिट्टी की ही जब है काया।
फिर काहे का इससे माया।।
नहीं अहं होता है अच्छा।
करें भलाई रखनी इच्छा।।
मूल नाश का हरदम गुस्सा।
अन्त करे यह जानो किस्सा।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
ShareWhatsapp ,facebook,
Instagram,Twitter,Linkedin
Telegram,Youtube,Pinterest
Quora,Quora own group
Very nice line.
जवाब देंहटाएं