"चुनावी पकौड़े : हज़ूरों के शौक-ए-ज़ाइका"
"चुनावी पकौड़े : हज़ूरों के शौक-ए-ज़ाइक़ा
मूसलाधार चुनावी बारिश के मौसम में, चुनावी पकौड़े तलना हज़ूरों के शौक-ए-ज़ाइक़ा का अद्भुत और ज़ाइक़ेदार प्रयोग है।
अरे! ध्यान से कहीं ज़ाइक़ा न बिगड़े !
प्रस्तावना
जिसने कभी एक ग्लास पानी भी न पूछा हो,वही व्यक्ति जब आपके सुख-दुख बाँटने को लालायित(अत्यंत इच्छुक)दिखे,जगह-जगह और माध्यम-माध्यम से आपको राष्ट्र के प्रति ,विशेषकर आधुनिक जननायकों के प्रति, आपके कर्तव्यों का बोध कराया जाता है तथा जनसभाएं होती रहती है़ं,तो विद्वत समाज को यह समझना चाहिए कि आज गरमा-गरम पकौड़े अवश्य तले जाएंगे, जो चुनावी हैं।
इसे महोत्सव की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि चहुंओर आधुनिक जननायकों को बरसाती मेंढकों की तरह सबके घरों,सड़कों,सोशल मीडिया इत्यादि में टर्राते हुए देखा जा सकता है।
रेसिपी इन लजीज पकौड़ों को बनाने की
- १ कप मौसमी तहज़ीब-चुनावी मौसम के अदब और व्यवहार
- बाद में कौन गरीब- दास्तान- ए-हकीकत के संग।
- वायदों का पिटारा-दुख तुम्हारा,अब है हमारा।
- घोषणाओं की सुगंधि- मतभूख बढ़ाए हुई जो मंदी।
- जनसभाओं के जादुई रंग-भरे पकौड़ों में नवरंग।
- भाषणों के छोंक-पकौड़े बनाए लजीज़
- ज्वलंत मुद्दे-एकमेव विजयास्त्र
१ कप मौसमी तहज़ीब-चुनावी मौसम के अदब और व्यवहार
३.वायदों का पिटारा : दुख तुम्हारा,अब है हमारा
४.घोषणाओं की सुगंधि : मतभूख बढ़ाए हुई जो मंदी
५. जनसभाओं के जादुई रंग : भरे पकौड़ों में नवरंग
६. भाषणों के छौंक : पकौड़े बनाए लजीज़
७. ज्वलंत मुद्दे : एकमेव विजयास्त्र
पकौड़े वो भी चुनाव वाले,चाव से तबतक खाए जाते रहेंगे,जबतक इस विश्व में ज्वलंत मुद्दे विद्मद्यमान होंगे।
इन विशेष पकौड़ों को वही तल भी सकता है ,जो इसे बनाने में पारंगत हो और इसमें हमारे आधुनिक जननायक बखूबी पारंगत हैं ।
इसलिए निष्कर्ष के रूप में,संसार में जबतक यह पकौड़े तलते जाएंगे तबतक आधुनिक जननायकों की महिमा बनी रहेगी।
सुझाव
रेसिपी इन लजीज पकौड़ों को बनाने की
ताटंक छंद
विधान- कुल मात्रा भार १६-१४ अर्थात कुल ३० मात्रा ,चार समचरण तथा चरणान्त तीन गुरु अनिवार्य:
चुनावी पकौड़े तलने की, बारी जब-जब आती है।
ना बीमारी ना लाचारी, खुशियां केवल छाती है।।
मेंढक जो हम घर के भीतर, अब तक डुबके होते थे।
कहते वो हैं बाहर आओ, देखो क्या तुम खोते थे।।
मिन्नत कितनी तब की हमने, जाने दो मजबूरी है।
कहा अकड़ कर तब था तुमने, बाहर नहीं जरूरी है।।
डाँट-डाँट कर ये बोले थे, मौन रहो घर में बैठो।
समझाया भी तब था हमने,कभी नहीं ऐसे ऐंठो।।
नहीं आएंगे अब जी बाहर, मीठे सपने खोएंगे।
माईक लगाकर भी चिल्लाओ, कंबल ताने सोएंगे।।
पकौड़े हो चुनावी बासी, गल जाए या ऐसे ही।
टस से जी हम मस ना होंगे,चल जाओ तुम वैसे ही।।
#ताटंक छंद#राधेश्यामी छंद#पंचचामर छंद#विधाता छंद#जयकरी छंद#चंडिका छंद#मदलेखा छंद#मनमोहन छंद#चामर छंद#सुमेरू छंद#श्येनिका छंद#उपचित्रा छंद#चौपाई छंद
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
Share
Whatsapp ,facebook,
Instagram,Twitter,Linkedin
Telegram,Youtube,Pinterest
Quora,Quora own group
१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
Vote for india
जवाब देंहटाएंअवश्य
जवाब देंहटाएंKya khub likhe
जवाब देंहटाएं