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सरल मार्ग ना इस जीवन के (No easy way to life)

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  सरल मार्ग ना इस जीवन के (No easy way to life) सरल मार्ग ना इस जीवन के ,यह पूर्णतः यथार्थ है क्योंकि बुद्धिजीवियों का ऐसा मानना है कि लोग इस पथ पर,इस मार्ग पर चलना प्रारम्भ तो कर देते हैं,परन्तु असफलता प्राप्त होते ही थक-हार कर बैठ जाते हैं।यह भूलकर कि अपने अथक प्रयासों से इन असफलताओं को,जो कि क्षणिक ही हैं,अपनी सफलता में निस्सन्देह बदला जा सकता है। संघर्षों के पथ से जीवन यात्रा का प्रारम्भ यह पूर्णतः असत्य है कि जीवन रस्ता अर्थात जीवन पथ पर कोई बाधाएं नहीं आती हैं और हम अत्यंत सुगमतापूर्वक सफलता को प्राप्त कर आगे बढ़ते जाते हैं।सत्य तो यह है कि यह मार्ग बिल्कुल  भी सरल नहीं,विभिन्न प्रकार की बाधाओं,कठिनाइयों का सामना कर इस मार्ग पर बढ़ना पड़ता है। असफलता रूपी बारिश में भींगना सफलता प्राप्ति के लिए अनिवार्य Koyla khanik divas यह सर्वविदित है कि इस संसार में सफलता की प्राप्ति उसे ही होती है जो यहाँ असफलताओं की बारिश में भींगता है और इसकी ठिठुरन के पश्चात स्वयं को श्रम की अग्नि में तपाकर अपनी सफलता का मार्ग सुनिश्चित करता है।  इस मार्ग से व्यक्ति सफलता के जितना समीप प...

राखी-केवल रेशम की डोर ही नहीं एक अटूट बंधन है।

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राखी-केवल रेशम की डोर ही नहीं एक अटूट बंधन है। भारत भूमि उत्सवो,त्योहारों व पर्वों की भूमि है।अनमोल व पावन पर्वों में से एक रक्षाबंधन,साधारणतःराखी कही जानेवाली रेशम की या कच्चे धागे से बनी वह डोर ही केवल नहीं है जिसे बस प्रदर्शन मात्र के लिए  बाँध या बँधवा लिया जाता है,अपितु यह भाई-बहन के उस विश्वास का प्रतीक है जिसके आधार पर आज भी यह लोक आस्था इस संसार में शेष है कि हर वो भाई-बहन जो इस रक्षासूत्र को बाँधता-बँधवाता है काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। कहानी रक्षासूत्र की पौराणिक प्रसंग के अनुसार एक  बार देवासुर संग्राम में देवराज इन्द्र का सामना दैत्यराज बलि से होना सुनिश्चित हुआ था,तो उनकी पत्नी देवी शचि ने ब्राह्णों द्वारा यज्ञ कराकर इस रक्षासूत्र को देवराज इन्द्र के दाहिने कलाई पर बाँधा था,इस रक्षासूत्र के प्रभावस्वरूप राजा बलि पराजित और देवराज सकुशल विजयी हुए,अमरावती में जब अन्य देवताओं ने   उन्हें सकुशल देखा तो सभी ने इस रक्षासूत्र की महिमा  जानकर एक-दूसरे को युद्ध में जाने से पहले इसे बाँधना  शुरु कर दिया।   पहले तो यह केवल रक्षासूत्र के ...

मूलमंत्र

जीवन के मूलमंत्र को भूल  मनुष्य प्रगतिवादी नहीं आज अहंवादी हो गया है। प्राचीनकाल में मनुष्यों में एक गुण यह होता था कि वह सुख-दुख को आपस में बाँटा करता था,आज वो अपने अहंकार के आवेश में है। जीवन का मूलमंत्र यह है कि हम अहंवादी नहीं अपितु सहयोगी बन कर उभरें,दुख-सुख को पहले जैसा समझें। हम अहंवादी ना हों,अपितु जीवन के मूलमंत्र सबका साथ सबका विकाश को हमें अपनाना चाहिए। इसी भाव को ध्यान में रखकर मैंने यह छंदबद्ध सृजन किया है जो बहुत ही प्यारे छंद राधेश्यामी छंद में है। राधेश्यामी छंद विधान:-32 मात्रा प्रति चरण,16-16 मात्रा पर यति,चार चरण दो चरण समतुकांत,चरणांत गुरु:- मनुज-मनुज में प्रेम नहीं है,क्यों सबसे हरदम वैर करे। पापकर्म वो करने पर भी,क्यों नहीं किसी से यहाँ डरे।। अहंकार में फूला है जो,वो वहाँ एक दिन पिचकेगा। झूठ बोलना धंधा जिसका,भूलकर तो कभी हिचकेगा।। नहीं पाठ को पूरा समझो,पढ़ाई तो अभी बाकी है। अभी यहाँ है जो भी सीखा,मानो ये केवल झाँकी है।। जीवन -पथ पर बढ़ते रहना,बस इतना हमको करना है। तेजी से न भागना हमको,पग हौले-हौले धरना है।। हौले-हौले बढ़ने वाले,सफल ही हमेशा होते हैं। बिना सोचक...