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रंगमंच है ये दुनिया:-एक अभिनयमंच बड़ी है(Rangmanch hai ye duniya:-ek abhinaymanch bdi hai)

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 क्या रंगमंच है यह दु निया और यहाँ जन्म लेने वाला हर प्राणी पात्र ? रंगमंच अर्थात् वह विशेषतम स्थान जहाँ हर्ष व विषाद के सामंजस्य के प्रतिफलस्वरूप आनंद का उद्भव होता है,ऐसा कहना यथार्थ ही तो है। Manav jeevan ka shaar   इस संसार की यदि बात की जाय,तो यह वह स्थान है जहाँ प्राणी जन्म लेने के साथ ही अभिनय करने लगता है।उसके जन्म पश्चात  प्रथम रोने के अभिनय के साथ उसके जीवन नाट्य का प्रारम्भ होता है अर्थात् वह उसके पश्चात सांसारिक आचरण-व्यवहार करने में निपुण हो जाता है। वह सुखी,सम्पन्न व सर्वश्रेष्ठ है इस मिथक के साथ अपनी जीवन यात्रा प्रारम्भ करता है। Rangamanch hai ye duniya:-ek abhinaymanch bdi hai अपने पात्रता को दर्शाने में प्रवीण यहाँ हर एक पात्र जीवन यात्रा को प्रारम्भ करने के पश्चात प्राणी अपने सगे-संबंधियों व आसपास के वातावरण से इस अहं का संपोषक बन जाता है कि उससे शक्तिमान  कोई नहीं,वह संसार के प्रत्येक कार्यों को करने में प्रवीण है। जब किसी के हिस्से में सुख आता है,तो उसे ऐसा लगने लगता है कि वह सदैव ही सुखी रहेगा और दुख उसे स्पर्श तक नहीं कर सकता। विडम्बना तो तब हो...

मातृ शक्तये नमः - फिर दानव दल संहार करो(Matri shaktiye namah :-phhir danav dal sanhaar karo)

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भूमिका : -मैं अखण्ड विश्व हूँ !वह विश्व जिसने पाप और पुण्य के प्रभाव का प्रत्यक्ष दर्शन किया है। Sumbeshwarnath ek jagrit jyotirlinga yah bhhi..   अपने अभीष्ट सिद्धि के लिए कठोरतम तप व साधना करने वाले मानवों तथा दानवों का प्रत्यक्ष दर्शन किया है।मैंने उस कारण,उस विवशता,उस मर्यादा की अनुभूति की है,जिसके फलस्वरूप ही धर्मरक्षार्थ न चाहते हुए भी विशेषकर दानवों को अभीष्ट प्राप्ति का वरदान देते हुए  मैंने विवश देवी-देवताओं को देखा है,उसके निवारण के लिये उन्हें विकल्प ढूँढते हुए देखा है।  दानवों के छल-कपट के प्रतिफलस्वरूप ही जब दानव समर्थवान हो गए थे तब उनकी नकारात्मक ऊर्जा का संचार समग्र सृष्टि में होने लगा था,जिससे अखिल ब्रह्मांड दोलायमान होने लगा और इससे जीवन व्यापन के लिये निर्धारित मूल्य विनिष्ट होने लगे।   इसी कारणवश इन दानवों पर अंकुश लगाना अनिवार्य हो गया था,पर देवगणों व देवताओं से मनोवांछित वरदान प्राप्त कर इन्होंने अपने अनिष्ट की संभावना तक पर भी अवरोध लगा दिया था। सभी देवगण उन दानवों के अत्याचारों से अत्यंत पीड़ित थे,कोई भी विकल्प इन असुरों के आतंक को कम करन...

शाकाहार अपनाएं :-सुखद जीवन बनाएं(Shakahaar apnayen:-sukhad jeevan bnayen)

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शाकाहार अपनाएं :-सुखद जीवन बनाएं(Shakahaar apnayen:-sukhad jeevan bnayen) Pita jeevan ko aadhaar dete hain स्वस्थ रहने के लिए सदैव शाकाहार अपनाएं,शाकाहार अपनाने से ही जीवन सुखद रहेगा और आप लम्बे समय तक जीवित रहेंगे। अब तो इस प्रतिकूल काल के दंश को झेलकर विज्ञान भी यह मानने लगा है कि सादा जीवन उच्च विचार अर्थात माँसाहार का परित्याग कर शाकाहार को अपनाकर ही एक स्वस्थ और सुखद भविष्य की कल्पना की जा सकती है। जीवो जीवस्य भोजनं स्वीकारने वाले उस तार्किक मानव समुदाय ने भी अब इस बात का भली-भाँति ज्ञान कर लिया कि जीव को जीव जब भोजन समझने लगेगा, तो एक दिन न एक दिन तो इस प्रकार के पाप के प्रतिफल स्वरूप कुछ सीमा तक तो विनाश लीला का दर्शन करना ही होगा। नमस्कार और संस्कार की विचारधारा का पोषण व्यक्ति में करने का सामर्थय भी तो केवल और केवल शाकाहार में ही है। मानव की आहार अभिरुचि परिस्थितिजन्य काल में सृष्टि में मानव जाति के अभ्युदय के साथ ही उसके संरक्षण के लिए उसमें आहार अभिरुचियों का विकास परमात्मा ने परिस्थितिजन्य काल के अनुरुप किया:- आदिकालीन मानवीय समुदाय ने शाकाहार के ज्ञान व अनुपलब्धता की ...

भगत सिंह-मातृभूमि पर न्योच्छावर होने वाला एक योद्धा(Bhagat singh-Matribhoomi pr nyochchhawar hone waala ek yoddha)

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  भगत सिंह-मातृभूमि पर न्योच्छावर होने वाला एक योद्धा(Bhagat singh-matribhoomi pr nyochchhawar hone waala ek yoddha) Sumbeshwarnath ek jagrit jyotirlinga yah bhhi... अमर सपूतों की इस धरती पर भगत सिंह भी मातृभूमि पर न्योच्छावर होने वाले एक योद्धा थे,जिन्हें यह राष्ट्र अत्यंत सम्मान के दृष्टिकोण से देखता है। वह योद्धा जिसने अपने प्राणों के बारे में कभी भी ना सोचा । असंख्य सिंह सुतों में से भारत माँ के इस लाल ने भी स्वहित के समक्ष राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा।  जिस उम्र में एक युवक  अपने सुखद भविष्य की कल्पना करता है,उस उम्र में उन्होंने परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माँ की वेदनाओं को भान लिया था और माता को इस परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का विचार कर लिया था। जीवन परिचय :-  इस महान देशभक्त का जन्म २८ सितम्बर,१९०७ को बंगा जिला लॉयलपुर,पंजाब( अब पाकिस्तान )में हुआ था। सरदार किशन सिंह संधु व विद्यावती कौर के इस सपूत ने जब अपने चाचाओं के द्वारा लिखी उन क्रान्तिकारी विचारधाराओं की पुस्तक पढ़ी जिसमें क्रान्ति क्या होती है,क्रान्तियुक्त विचारधाराएँ क्या होती हैं ...

भाव प्रवाहिका हिन्दी-मानव बनाती हिन्दी

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  भाव प्रवाहिका हिन्दी-मानव बनाती हिन्दी हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो भाव प्रवाहन का कार्य करती है,सच ही तो है हिन्दी उस भाव की प्रवाहिका है,जो हमारे मनोभाव समझकर भाव का प्रवाह करती है। समग्र विश्व का गुरु भारत प्रारम्भ से ही विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाता आ रहा है और इस शिव संकल्प को पूरा करने में प्रथम देववाणी संस्कृत ने योगदान दिया,तत्पश्चात इसकी पुत्री हिन्दी न भी इसी मार्ग का अनुसरण कर इस शिव-संकल्प को पूरा करने में अपना  योगदान सुनिश्चित किया है। पुरातन भारत में संस्कृत वह भाषा थी जो समस्त विश्व से स्नेह करती थी,समस्त मानव जाति द्वारा व्यवहृत होती थी और बड़ों छोटों,उच्च-मध्यम,निम्न-कुलीन सभी वर्गों द्वारा हृदय से अंगीकार की जाती थी।  संस्कृत-सुता हिन्दी भी अपनी माता के पदचिह्नों पर ही भारत को वसुधैव कुटुम्बकम की प्रेरणा देकर इसे  विश्व के साथ मैत्री संबंध स्थापित करने के लिए कहती है। हिन्दी की मृदुभाषिता व इसकी विशेषताएँ   :- विश्व के अन्य भाषाओं की अपेक्षा संस्कृत के पश्चात इसकी सुता हिन्दी को अत्यधिक आदर व सम्मान मिलता है,इसका मूल कारण है इसकी मृदुभाषित...