मातृ शक्तये नमः - फिर दानव दल संहार करो(Matri shaktiye namah :-phhir danav dal sanhaar karo)
भूमिका :-मैं अखण्ड विश्व हूँ !वह विश्व जिसने पाप और पुण्य के प्रभाव का प्रत्यक्ष दर्शन किया है।
Sumbeshwarnath ek jagrit jyotirlinga yah bhhi..
अपने अभीष्ट सिद्धि के लिए कठोरतम तप व साधना करने वाले मानवों तथा दानवों का प्रत्यक्ष दर्शन किया है।मैंने उस कारण,उस विवशता,उस मर्यादा की अनुभूति की है,जिसके फलस्वरूप ही धर्मरक्षार्थ न चाहते हुए भी विशेषकर दानवों को अभीष्ट प्राप्ति का वरदान देते हुए मैंने विवश देवी-देवताओं को देखा है,उसके निवारण के लिये उन्हें विकल्प ढूँढते हुए देखा है।
दानवों के छल-कपट के प्रतिफलस्वरूप ही जब दानव समर्थवान हो गए थे तब उनकी नकारात्मक ऊर्जा का संचार समग्र सृष्टि में होने लगा था,जिससे अखिल ब्रह्मांड दोलायमान होने लगा और इससे जीवन व्यापन के लिये निर्धारित मूल्य विनिष्ट होने लगे।
इसी कारणवश इन दानवों पर अंकुश लगाना अनिवार्य हो गया था,पर देवगणों व देवताओं से मनोवांछित वरदान प्राप्त कर इन्होंने अपने अनिष्ट की संभावना तक पर भी अवरोध लगा दिया था।
सभी देवगण उन दानवों के अत्याचारों से अत्यंत पीड़ित थे,कोई भी विकल्प इन असुरों के आतंक को कम करने के लिए दिख ही नहीं रहा था,सभी त्राहिमाम्!त्राहिमाम् का अलख बारंबार जगा रहे थे।
देवगणों ने पहले ब्रह्मा जी से इनके आतंक को समाप्त करने के उपाय के बारे में पूछने का विचार किया,परन्तु ब्रह्मा जी ने इसके निवारण में अपनी असमर्थता अपने द्वारा दिये वरदान को बताकर श्री हरि विष्णु के शरण में देवगणों सहित जाने का विचार किया।
भगवान श्री हरि विष्णु के शरण में पहुँचने पर भी प्रभु ने जब अपनी असमर्थता ब्रह्मा जी के वरदान को बताया,तो ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवगण महादेव के शरण में जब पहुँचे, तो भगवान आशुतोष शिवशंकर ने भी अपनी असमर्थता बताकर ब्रह्मादि देवगणों सहित माता भुवनेश्वरी की स्तुति की।
माता ने प्रसन्न हो उन्हें असुरों के विनाश का उपाय बताते हुए कहा कि ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार इन दानवों का नाश एक स्त्री ही कर सकती है,इसलिए आप सभी देवगण मिल मेरे अंश से प्रकटी जगदम्बे की स्तुति कर उन्हें अपने अस्त्रों-शस्त्रों से संपन्न करें।
तत्पश्चात त्रिदेवों के संग सभी देवगण व मार्कण्डेयादि ऋषियों ने माता की आराधना,उपासना कर माता जगदम्बे को प्रसन्न कर लिया।
माता की आराधना करते-करते मार्कण्डेय ऋषि ने दुर्गासप्तशती की रचना कर दी जिसमें माँ के नव रूपों की आराधना और उनके विविध असुरों के साथ हुए महासंग्राम का वर्णन है।
इसी धार्मिक ग्रंथ में माता को प्रसन्न करने के लिए शक्र अर्थात इन्द्र तथा अन्य देवताओं ने उनकी जो स्तुति की है,वह अत्यन्त ही कर्णप्रिय है।
इस स्तुति में देवताओं ने माता को समग्र सृष्टि की प्राण ऊर्जा कहा है जिसके कारण ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है।
इन्द्रादि देवताओं ने माता की स्तुति करते हुए कहा है कि -
हे परमेश्वरी भगवती !तुम्हीं सम्पूर्ण भूतों की शक्ति,तुम्हीं श्रद्धास्वरूपा,दयारूपा,तुम्हीं शान्ति,विद्या,अविद्या,माया,तुम्हीं भ्रान्ति,तुम्हीं क्षमा हो माँ! हे माँ यदि हमसे कोई भूल हुई है,तो उसे क्षमा कर अब इन दानवों का संहार करो।
उसके बाद माता ने एक-एक कर सभी असुरों का अपने नवरूपों में संहार किया।
मातृ शक्तये नमः-फिर दानव दल संहार करो
मातृ शक्तये नमः- हे माँ ! आज फिर दानव दल ने अत्याचार प्रारम्भ कर दिया है,आओ माँ फिर दानव दल संहार करो।
समग्र सृष्टि पुनः हाहाकार कर रही है माँ,फिर दानवों ने यहाँ
अपना साम्राज्य फैला दिया है,सभी उनके आधुनिक अस्त्रों-शस्त्रों,विचारधाराओं से व्याकुल हैं माँ।
इन आधुनिक अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग आम जनमानस पर ही इनके द्वारा किया जाता है,जिसका कोई उपचार हमारे पास शेष नहीं बचा है ।
आधुनिक दानवों के आधुनिक रूप
आज के इस आधुनिक युग में दानवों ने सिंह, खड़ग,अपने पारम्परिक वेशभूषा तथा निवास का परित्याग कर अपने निवास स्थान,रंग-रूप इत्यादि में बदलाव कर लिया है।हे माँ ! आज इन आततायियों ने
व्यभिचार,भूखमरी,महंगाई को अपना निवास स्थान बना लिया है जिसके रंग-रूप में उनके रंगों का मिश्रण होने के कारण उन्हें ढूँढ पाना आम जनमानस के लिए असंभव है
माँ।
माँ त्राण हरो
माता की आराधना में मेरे भाव सुमन देव घनाक्षरी विधान में सादर समर्पित है:-
छंद विधान:-
देव घनाक्षरी चार पदों का एक वर्णिक छंद है।
आधे वर्णो (अक्षरों ) की गिनती नहीं होती।
देव घनाक्षरी को १६- १७ वर्णों की यति पर दो दो चरणों के चार पदों में भी लिखा जाता है ।
आराधना साधना माँ और भक्ति जानूँ नहीं,
भाव पुष्प संग लाया, संताप कर दो शमन।
दुर्गे तू अम्बे भवानी विंध्यवासिनी माँ भी तू,
माँ !मैं अबोध बालक हूँ, बारंबार तुझे नमन।
जग को धारती तू ही जगदम्बे तेरी जय,
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मापनी-८,८,८,९
जगदम्बे जय तेरी लो हर विपदा मेरी,
बालक अबोध माँ,स्वीकार ले मेरा नमन।
राह कोई नहीं दिखे आऊँगा बाहर कैसे,
हर ओर अँधेरा है ,प्रकाश माँ करो गहन।
रोग-दोष घेर रहे मन ये अशान्त हुआ,
अरि दल चहुँओर, आज माता करो दमन।
हार-जीत देते सीख तैयार भी लेने शिक्षा,
आत्मबल बना हुआ, करो भय बस शमन।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏
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इसमें यति ८-६ मात्रा पर रखी जाती है,अन्त में नगण (१११) अनिवार्य है।इसमें क्रमागत दो-दो चरणों या चारों चरणों पर तुकान्त रखा जा सकता है।
प्रश्न २ :-चामर छंद की परिभाषा तथा विधान बताएँ ?
उत्तर- यह एक वार्णिक छंद है,जिसका विधान
२१ २१ २१ २१ २१ २१ २१ २=कुल २३ वर्ण ।
प्रश्न ३ :- चंडिका छंद की परिभाषा तथा विधान बताएँ ?
उत्तर- यह एक सममात्रिक छंद है जिसका विधान १३ मात्राएं पदांत रा ज भा (२१२) अनिवार्य है
प्रश्न ४ :-पद्धरि छंद की परिभाषा व विधान को बताएँ ?
उत्तर- चार चरणों के इस सममात्रिक छंद में १६ मात्राएँ प्रति चरण व आरम्भ द्विकल से और अंत जभान से होता है।इसे दो-दो चरण समतुकांत भी रखा जा सकता है।
प्रश्न ५ :- कुकुभ छंद की परिभाषा व विधान को बताएँ ?
उत्तर-यह एक सममात्रिक छंद है,इस चार पदों के छंद में प्रति पद ३० मात्राएँ होती हैं।प्रत्येक पद १६ और १४ मात्रा के दो चरणों में बँटा हुआ रहता है।विषम चरण १६ मात्राओं का और सम चरण १४ मात्राओं का होता है। दो-दो पद के तुकान्तता का नियम है।
प्रश्न ६ :- अमी छंद की परिभाषा तथा विधान बताएँ ?
उत्तर- इस वर्णिक छंद के विधान में प्रति चरण नौ वर्ण होते हैं।गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार गणावली- नसल जभान यमाता।
इसकी मापनी १११,१२१,१२२ होती है,इसके चार चरण होते हैं ।
प्रश्न ७ :-सुमेरु छंद के विधान को बताएँ ?
उत्तर- इस छंद के प्रत्येक चरण में १२+७=१९ अथवा १०+९=१९ मात्राएँ होती हैं ; १२,७ अथवा १०,९ पर यति होती है ; इसके आदि में लघु १ आता है जबकि अंत में २२१,२१२,१२१,२२२ वर्जित हैं तथा १८,१५ वीं मात्रा लघु १ होती है ।
प्रश्न ८ :-उडियाना छंद के विधान को बताएँ ?
उत्तर- यह एक २२मात्रिक छंद है,जिसमें १२,१० मात्रा पर यति,यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु (२),दो- दो चरण समतुकांत होते हैं
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
प्रश्न ९ :-घनाक्षरी छंद किसे कहते हैं ?
उत्तर-यह एक वार्णिक छंद है,जिसके चार पद होते हैं,जिसमें प्रत्येक पद में चार चरण होते हैं पहले तीन चरण में ८,८ वर्ण और चौथे चरण में ७-८ या ९ वर्ण होते हैं। अंतिम चरण में वर्णों के आधार पर घनाक्षरी के प्रकार का निर्माण होता है।
प्रश्न १० :-रूप घनाक्षरी के विधान को बताएँ ?
उत्तर- इस प्रकार के वार्णिक छंद के प्रत्येक पद में चार चरण होते हैं,इसके चारों चरण में ८-८-८-८ वर्ण होते हैं।
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