शुम्भेश्वरनाथ एक जागृत ज्योतिर्लिंग यह भी(sumbeshwarnath ek jagrit jyotirlinga yah bhhi)...
शुम्भेश्वरनाथ एक जागृत ज्योतिर्लिंग यह भी...
Kuchh mrityudaata kuchh deva hain aaj ke doctor
बाबा बासुकीनाथ और बाबा वैद्यनाथ के मध्य में बसे बाबा शुम्भेश्वरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलीत न होने के पश्चात भी सर्वमनोकामना पूरक ज्योतिर्लिंग हैं।
नयनाभिराम दृश्यों के बीच बाबा विराजमान
नयनाभिराम दृश्यों से परिपूर्ण यहाँ के वातावरण में बाबा की ऐसी दिव्य अलौकिक सुगन्धि प्रवाहित होती रहती है कि यहाँ पहुँचने वाला प्रत्येक प्राणी सभी जीवन की आपाधापी भूल परम शान्ति की अनुभूति करने लगता है,जिसके फलस्वरूप वह यहाँ पहुँचने के वास्तविक प्रयोजन को भूल बाबा के श्रीचरणों में रम जाता है।
परन्तु अपने ऐसे भक्तों को भी निराश कैसे कर सकते हैं भला!उस प्राणी को बाबा की भक्ति में पता ही नहीं चलता कि वह किस कारण यहाँ पहुँचा था!
परन्तु अपने ऐसे भक्तों को भी निराश कैसे कर सकते हैं भला!उस प्राणी को बाबा की भक्ति में पता ही नहीं चलता कि वह किस कारण यहाँ पहुँचा था!
परन्तु उसे जब यह ज्ञात होता है कि मैं किस उद्देश्य से यहाँ आया था,तब वह पश्चाताप करता हुआ सोचते हुए अपने उस कार्य को पूर्ण करने के लिए जाने लगता है।पर जब उस कार्य को करने में तत्पर जब होने लगता है,तो उसे अपने काम की पूर्ति की समाचार ही मिलती है,जिससे वह खुशी से फूला नहीं समाता। बाबा उसकी मनोकामना को पूर्व ही पूर्ण कर देते हैं।
शुम्भ-निशुम्भ ने स्थापित की थी शिवलिंग:-
यह प्रसंग उस काल की है जब माता काली ने शुम्भ-निशुम्भ के वध की ठानी थी,इन दोनों चतुर असुरों के कारण महाकाल को महाकाली से भयंकर युद्ध भी करना पड़ा था।
पौराणिक मान्यता यह है कि इस जागृत ज्योतिर्लिंग की स्थापना शुम्भ-निशुम्भ ने की थी। वे दोनों भाई भी बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न कर अपनी नगरी ले जाना चाहते थे,तब भोलेनाथ ने उन्हें उनकी कठोरतम तपस्या से प्रसन्न हो समझाते हुए यह कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ तुम्हारी रक्षा के लिए जागृत नहीं रह सकता,क्योंकि मैं क्षण-क्षण में वर्षों तक के लिए ध्यानस्थ हो जाया करता हूँ।
इसलिए तुम्हें मैं एक विकल्प सुझाता हूँ ,सुनो! तुम यह पार्थिव शिवलिंग ले जाओ जिसमें मैं सदैव जागृत अवस्था में निवास करता हूँ,यह सुनकर दोनों मन ही मन मुस्काए और सोचने लगे यह तो और भी उत्तम है,वैसे भी हमें अपने संरक्षक चाहिए न कि केवल अतिथि।जो खाए-पीए डकारे आराम से सो जाए।
उनकी सोच को बोले भण्डारी भी भाँप चुके थे,उनकी मुस्कान देखकर वे उन दोनों असुरों से इस प्रकार बोले:-प्रिय भक्तों शुम्भ-निशुम्भ!पर ये ध्यान रहे कि ये शिवलिंग किसी भी तरह से तुम्हारे हाथों से छूट ना पाए।
वे दोनों मन में सोचने लगे कि भोले बाबा कितने भोले हैं कि इन्हें स्वयं को तपस्या से प्राप्त करने वाले के प्रति यह शंका है कि इनके इस मामूली पार्थिव लिंग को हम दो महान असुर भाई उठा नहीं सकेंगे,ये विचार कर वे दोनों ज़ोर-जो़र से अट्टहास करने लगे और भोले बाबा से कहने लगे कि उसकी चिन्ता आप छोड़ दें प्रभु,बस कृपा कर अपना पार्थिव ज्योतिर्लिंग प्रदान करें बस !
यह सुनकर महादेव पुनः उनसे कहने लगे-हाँ हाँ!क्यों नहीं,निस्सन्देह....परन्तु.....उनके परन्तु कहते ही इस बार शुम्भ ने कहा कि वही बात न ! इसे हाथ से छूटने नहीं देना है।
शुम्भ के इस प्रकार कहने से महादेव ने पुनः उससे कहा-नहीं एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जो इसे हाथ में लेकर चलेगा,वही अमर हो जाएगा।
उसके इस प्रकार कहने से निशुम्भ ने बाबा से कहा कि पहले मेरे ज्येष्ठ भ्राता अमर हो लें,फिर मैं अपनी अमरता की बात सोचूँगा !आपतो बस अपना पार्थिव शिवलिंग हमें दे दें बस..या ना देना हो तो बताएँ हम कोई और उपाय इसकी प्राप्ति के लिए कर लें,कहें तो दुबारा इसे कठोरतम तपस्या कर आपसे प्राप्त कर लें।
शिवशम्भु ने पुनः उनसे मुस्कुराते हुए कहा,"अरे नहीं आप जैसे महान भक्तों से मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ,आप शिवलिंग को शौक से लेकर चलें।
उनके जाते ही शम्भु ने विचारा कि इन पापियों के क्षेत्र में यदि यह पावन शिवलिंग चला जाएगा,तो इसकी शक्ति से ये आततायी दम्भ में भरकर और उत्पात मचाने लगेंगे।
ऐसा विचारकर उन्होंने श्रीहरि विष्णु का ध्यान किया और उनसे सहायता माँगी।
विष्णु जी उनका अभिप्राय समझ उस स्थान पर एक गड़रिए बालक का रूप लेकर आए और पास की पके आमों से भरी डाली पर बैठकर वहीं से बार-बार इस प्रकार कहने लगे-"महान असुर सम्राटों ! तुम दोनों ने शिवलिंग की प्राप्ति के लिए पूर्णतः बराबर तप किया और जब यह शिवलिंग अब शुम्भ के हाथ में है,तो निशुम्भ को भी....इसे एक बार हाथों में उठाकर इसके स्पर्श की......अनुभूति तो कर ही लेनी चाहिए थी।"
बार-बार यह स्वर सुनकर शुम्भ-निशुम्भ दोनों एक साथ ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाने लगे। ऐसा दुस्साहस कौन करने लगा है।जो भी है सामने आओ हम तुम्हें अभयदान देते हैं।गड़रिया वेषधारी श्रीहरि विष्णु एकदम से पेड़ों से कूदकर
उन दोनों के सामने आते हुए बोले-हे महानुभावों!आपके
अभयदान देने के कारण मैं पुनःकहता हूँ-क्या निशुम्भ जी को भी....इसे एक बार हाथों में उठाकर इसके स्पर्श की......अनुभूति नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि तपस्या तो इन्होंने भी इसे प्राप्त करने के लिए भरपूर की थी और मैंने यह भी सुना है कि इसे स्पर्श करनेवाला कभी भी मृत्यु को प्राप्त इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि इसमें महादेव स्वयं विराजते हैं।
निशुम्भ बलवान तो था मगर मूढ़ भी ऊपरी दर्जे का था।
वह श्रीहरि विष्णु के छलावे में आ गया और अमरत्व प्राप्ति की सोच अपने बड़े भाई शुम्भ से शिवलिंग छीनने की कोशिश करने लगा और लगभग दस दिनों की छीना-झपटी के बाद वह शिवलिंग शुम्भ के हाथों से छूटकर वहीं जमीन पर स्थापित हो गया।
उसके बाद दोनों भाईयों ने क्रोधित होकर भारी-भारी से शिवलिंग पर प्रहार करके उसे दो हिस्सों में यह कहकर बाँट दिया कि अब न तू इसे ले जा सकता है और न मैं।
फिर भी इसके दो हिस्से भविष्य को यह बताते रहेंगे कि ये दोनों हिस्से हम दोनों के प्रतीक हैं।
इसी कारण से दो हिस्से में बँटे बाबा शुम्भेश्वरनाथ अपने आधे हिस्से के लिए शुम्भ के और आधे हिस्से के लिए निशुम्भ के माने जाते हैं।
पहले तो यह इस क्षेत्र में निर्जन वन में यथावत स्थापित था,जिसके चारों ओर बाद में स्तंभ बनाकर धौनी राज्य के राजा ने इसका जीर्णोद्धार किया।
आज भी श्रद्धालु इस पावन धाम के दर्शन कर मनोवांछित फल पाते हैं।
पौराणिक मान्यता यह है कि इस जागृत ज्योतिर्लिंग की स्थापना शुम्भ-निशुम्भ ने की थी। वे दोनों भाई भी बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न कर अपनी नगरी ले जाना चाहते थे,तब भोलेनाथ ने उन्हें उनकी कठोरतम तपस्या से प्रसन्न हो समझाते हुए यह कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ तुम्हारी रक्षा के लिए जागृत नहीं रह सकता,क्योंकि मैं क्षण-क्षण में वर्षों तक के लिए ध्यानस्थ हो जाया करता हूँ।
इसलिए तुम्हें मैं एक विकल्प सुझाता हूँ ,सुनो! तुम यह पार्थिव शिवलिंग ले जाओ जिसमें मैं सदैव जागृत अवस्था में निवास करता हूँ,यह सुनकर दोनों मन ही मन मुस्काए और सोचने लगे यह तो और भी उत्तम है,वैसे भी हमें अपने संरक्षक चाहिए न कि केवल अतिथि।जो खाए-पीए डकारे आराम से सो जाए।
उनकी सोच को बोले भण्डारी भी भाँप चुके थे,उनकी मुस्कान देखकर वे उन दोनों असुरों से इस प्रकार बोले:-प्रिय भक्तों शुम्भ-निशुम्भ!पर ये ध्यान रहे कि ये शिवलिंग किसी भी तरह से तुम्हारे हाथों से छूट ना पाए।
वे दोनों मन में सोचने लगे कि भोले बाबा कितने भोले हैं कि इन्हें स्वयं को तपस्या से प्राप्त करने वाले के प्रति यह शंका है कि इनके इस मामूली पार्थिव लिंग को हम दो महान असुर भाई उठा नहीं सकेंगे,ये विचार कर वे दोनों ज़ोर-जो़र से अट्टहास करने लगे और भोले बाबा से कहने लगे कि उसकी चिन्ता आप छोड़ दें प्रभु,बस कृपा कर अपना पार्थिव ज्योतिर्लिंग प्रदान करें बस !
शम्भु का शुम्भ-निशुम्भ को पार्थिव लिंग प्रदान करना व बाबा के संग उनकी बहस
उसके इस प्रकार कहने के बाद बाबा भोले ने कहा
कि ठीक है मेरे प्यारे भक्तों ! मैंने तुम्हें अपना पार्थिव लिंग देने से मना तो नहीं किया है,ले जाओ,बिल्कुल ले जाओ! परन्तु......तुम दोनों को यह ध्यान तो अवश्य रखना होगा कि भूल से भी..यह हाथ से छूटने न पाए।
नहीं तो,जहाँ यह छूटेगा मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा यह ध्यान रहे....यह सुनकर दोनों भाई बौखलाकर शिवशंकर से इस प्रकार कहने लगे कि बाबा आप बोलते अधिक हो,पर करते बहुत कम हो,जल्दी से मेरे ज्येष्ठ भ्राता शुम्भ के हाथों अपना पार्थिव शिवलिंग सौंप दो ताकि उसे लेकर हम अपनी नगरी पहुँच कर कुछ जलपान कर सकें क्योंकि इस कठोरतम तपस्या ने हमारी भूख को और अधिक बड़ा दिया है।
यह सुनकर महादेव पुनः उनसे कहने लगे-हाँ हाँ!क्यों नहीं,निस्सन्देह....परन्तु.....उनके परन्तु कहते ही इस बार शुम्भ ने कहा कि वही बात न ! इसे हाथ से छूटने नहीं देना है।
शुम्भ के इस प्रकार कहने से महादेव ने पुनः उससे कहा-नहीं एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जो इसे हाथ में लेकर चलेगा,वही अमर हो जाएगा।
उसके इस प्रकार कहने से निशुम्भ ने बाबा से कहा कि पहले मेरे ज्येष्ठ भ्राता अमर हो लें,फिर मैं अपनी अमरता की बात सोचूँगा !आपतो बस अपना पार्थिव शिवलिंग हमें दे दें बस..या ना देना हो तो बताएँ हम कोई और उपाय इसकी प्राप्ति के लिए कर लें,कहें तो दुबारा इसे कठोरतम तपस्या कर आपसे प्राप्त कर लें।
शिवशम्भु ने पुनः उनसे मुस्कुराते हुए कहा,"अरे नहीं आप जैसे महान भक्तों से मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ,आप शिवलिंग को शौक से लेकर चलें।
उनके जाते ही शम्भु ने विचारा कि इन पापियों के क्षेत्र में यदि यह पावन शिवलिंग चला जाएगा,तो इसकी शक्ति से ये आततायी दम्भ में भरकर और उत्पात मचाने लगेंगे।
ऐसा विचारकर उन्होंने श्रीहरि विष्णु का ध्यान किया और उनसे सहायता माँगी।
विष्णु जी उनका अभिप्राय समझ उस स्थान पर एक गड़रिए बालक का रूप लेकर आए और पास की पके आमों से भरी डाली पर बैठकर वहीं से बार-बार इस प्रकार कहने लगे-"महान असुर सम्राटों ! तुम दोनों ने शिवलिंग की प्राप्ति के लिए पूर्णतः बराबर तप किया और जब यह शिवलिंग अब शुम्भ के हाथ में है,तो निशुम्भ को भी....इसे एक बार हाथों में उठाकर इसके स्पर्श की......अनुभूति तो कर ही लेनी चाहिए थी।"
बार-बार यह स्वर सुनकर शुम्भ-निशुम्भ दोनों एक साथ ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाने लगे। ऐसा दुस्साहस कौन करने लगा है।जो भी है सामने आओ हम तुम्हें अभयदान देते हैं।गड़रिया वेषधारी श्रीहरि विष्णु एकदम से पेड़ों से कूदकर
उन दोनों के सामने आते हुए बोले-हे महानुभावों!आपके
अभयदान देने के कारण मैं पुनःकहता हूँ-क्या निशुम्भ जी को भी....इसे एक बार हाथों में उठाकर इसके स्पर्श की......अनुभूति नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि तपस्या तो इन्होंने भी इसे प्राप्त करने के लिए भरपूर की थी और मैंने यह भी सुना है कि इसे स्पर्श करनेवाला कभी भी मृत्यु को प्राप्त इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि इसमें महादेव स्वयं विराजते हैं।
निशुम्भ बलवान तो था मगर मूढ़ भी ऊपरी दर्जे का था।
वह श्रीहरि विष्णु के छलावे में आ गया और अमरत्व प्राप्ति की सोच अपने बड़े भाई शुम्भ से शिवलिंग छीनने की कोशिश करने लगा और लगभग दस दिनों की छीना-झपटी के बाद वह शिवलिंग शुम्भ के हाथों से छूटकर वहीं जमीन पर स्थापित हो गया।
उसके बाद दोनों भाईयों ने क्रोधित होकर भारी-भारी से शिवलिंग पर प्रहार करके उसे दो हिस्सों में यह कहकर बाँट दिया कि अब न तू इसे ले जा सकता है और न मैं।
फिर भी इसके दो हिस्से भविष्य को यह बताते रहेंगे कि ये दोनों हिस्से हम दोनों के प्रतीक हैं।
इसी कारण से दो हिस्से में बँटे बाबा शुम्भेश्वरनाथ अपने आधे हिस्से के लिए शुम्भ के और आधे हिस्से के लिए निशुम्भ के माने जाते हैं।
पहले तो यह इस क्षेत्र में निर्जन वन में यथावत स्थापित था,जिसके चारों ओर बाद में स्तंभ बनाकर धौनी राज्य के राजा ने इसका जीर्णोद्धार किया।
आज भी श्रद्धालु इस पावन धाम के दर्शन कर मनोवांछित फल पाते हैं।
कुछ आवश्यक प्रश्न
१.आलेख से क्या समझते हैं ?
उत्तर- आलेख सीमित शब्दों में वर्णित वह लेख है जिसे पढ़कर सम्पूर्ण विषयवस्तु पूर्णतः स्पष्ट हो जाती है।
२. शुम्भेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना किसके द्वारा की गयी है ?
उत्तर- इस मंदिर की स्थापना शुम्भ-निशुम्भ द्वारा की गयी है।
३. शुम्भेश्वरनाथ का पार्थिव शिवलिंग कितने हिस्सों में बँटे हुए हैं ?
उत्तर- यह पार्थिव शिवलिंग दो हिस्सों में बँटा हुआ है।एक हिस्से को शुम्भ तो दूसरे हिस्से को निशुम्भ कहा जाता है।
४. बाबा शुम्भेश्वरनाथ धाम वैद्यनाथ धाम से कितने किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ?
उत्तर- यह धाम वैद्यनाथ धाम से लगभग ४०-५० किलोमीटर की दूरी पर धौनी ग्राम में स्थित है ।
५.इसके आस-पास के अन्य पर्यटनीय व धार्मिक स्थल बताएँ ?
उत्तर- इसके आस-पास में पाण्डेश्वरनाथ हैं जिसके विषय में पौराणिक मान्यता है कि यहाँ कभी पाण्डवों ने निवास किया था।यह पर्वतों से आच्छादित एक अति रमणीय धार्मिक स्थान है। बाबा शुम्भेश्वरनाथ के आस-पास ही एक अति पावन व अन्य जागृत स्थान है भयहरण धाम जिसके विषय में यह मान्यता है कि इस धाम के प्रताप से किसी की भी अभी तक सर्पदंश से मृत्यु नहीं हुई है।
६. टिप्पणी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-टिप्पणी से हमारा अभिप्राय विषयवस्तु पर अपनी मनोनुकूल प्रतिक्रिया देना है।
परन्तु यह टिप्पणियाँ कम से कम एक वाक्य की होनी ही चाहिए।
७.शुम्भ-निशुम्भ द्वारा स्थापित बाबा शुम्भेश्वरनाथ धाम का जीर्णोद्धार सर्प्रवथम किसने करवाया ?
उत्तर-धौनी स्टेट के राजा ने।
Bahut hi aachi jaankaari.jai baba shumbeswar nath.
जवाब देंहटाएंआभार भाई🙏🌹🙏
हटाएंJai ho baba shumbheswar nath.
जवाब देंहटाएंजय बाबा शुम्भेश्वरनाथ🙏🌹🙏
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