कुछ मृत्युदाता कुछ देव- आज डॉक्टर

कुछ मृत्युदाता कुछ देव-आज के डॉक्टर

कुछ मृत्युदाता तो कुछ देव हैं आज के डॉक्टर, पुरातन काल में ये केवल ईश्वर के प्रतिरूप माने जाते थे, आज कुछ एक को छोड़ शेष ने अपने इस गरिमामय स्थान को नष्ट कर दिया है।

मैं सभी की बात तो नहीं कर रहा,पर कुछ एक ने मेरे उपरोक्त लिखे शब्दों को अक्षरशः सत्य किया है।

Kuchh mrityudaata kuchh dev-Aaj ke doctor


डॉक्टर व जोंक-पुरातन काल में डॉक्टर का अर्थ चिकित्सक,वैद्य या हकीम होता था जिसका मूल कार्य होता है मानव सेवा व उसका स्वास्थ्य।

 परन्तु आज के इस परिवेश में यह डॉक्टर या डाक्टर बन कर रह गया है,जिसका विशेषार्थ जोंक की भाँति लिया जाए तो ,इसमें कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जोंक का काम चूसना होता है और डॉक्टर भी मूलतः वही करते हैं।

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चिकित्सक के रूप में डॉक्टर-चिकित्सक इन डॉक्टरों के विपरीत कार्य किया करते थे,उनका यह मानना था कि ,मुझे कितनी भी क्षति पहुँच जाए,पर मेरे रोगी को तनिक भी क्षति ना पहुँचे

इसका जीवन्त उदाहरण मेरे दादाश्री थे,जिन्हें मैंने देखा था कि वह रोगियों के स्वास्थ्य के लिए रात-रात भर जागकर उपचार हेतु औषधि बनाया करते थे,उनका काम केवल औषधि बनाना ही नहीं,अपितु उसका तबतक ध्यान रखना होता था जबतक वह पूर्ण स्वस्थ न हो जाए।

यहाँ तक कि वो रोगी के घर तक जाकर उसका कुशल-क्षेम  पूछ आते थे,क्या आज आपने ऐसा कहीं होते देखा है?

यदि हाँ तो कहाँ और नहीं तो इसपर विचार करने की आवश्यकता है।

एक विशेष बात इन चिकित्सकों में यह थी कि रोगी को पता तक नहीं चल पाता था कि उसे गम्भीर बीमारी भी है, 

उस रोगी के बारंबार पूछने पर भी उसे यह बताकर कि उसे कमजोरी मात्र है निःशुल्क औषधि देकर घर भेज दिया जाता था और वह स्वस्थ हो जाता था।

उसके रोग के प्रति यही अज्ञानता उसके लिए रामबाण का काम करती थी,पुरातन काल की यदि उपचार बही खोली जाएगी,तो उसमें रोगी के मृत्यु के अति अल्पतम आंकड़े आपको नज़र आएंगे।

लक्ष्मण जी का उपचार यदि करते डॉक्टर

यकीन मानें यदि रामायण इस युग की घटना होती और राम व लक्ष्मण साधारण मानव तथा वैद्यराज सुसेन का इस युग से लोप होता और उनके स्थान पर लक्ष्मण जी किसी डॉक्टर के उपचार के भरोसे रहते,तो यकीनन उनकी मूर्च्छा कभी नहीं टूटती क्योंकि उनकी  मूर्च्छा टूटने ही नहीं दी जाती।विभिन्न जाँच केन्द्रों के चक्कर लगाकर श्रीराम व हनुमान जी भी थकहार कर बैठ जाते!!!


डॉक्टर के लिए रोगी ए०टी०एम०- आज की इस डॉक्टरीय चिकित्सा पद्धति में रोगी डॉक्टर के लिए चलता-फिरता ए०टी०एम०है,जो डॉक्टर रूपी डेबिट कार्ड के इनपुट से कैश उगलने लगता है,मरता क्या नहीं करता विवशतावश वह अनवरत सोने की मुर्गी की भांति हलाल होता रहता है।


डॉक्टरी चमत्कार -इनके पास एक परम चमत्कारी शक्ति होती है जो मामूली जुकाम को भी इस हिन्दी वाले देश में अँग्रेज़ी बना जाती है,जिसके फलस्वरूप नाक के अन्दर बढ़े बाल के रगड़ से उत्पन्न होने वाले मामूली जुकाम को क्रॉनिक सिन्ड्रोम बनाकर उसपर  करीब २५-३०जाँच ठोंक दी जाती है।जीवोत्पत्ति की मामूली प्रक्रिया को गम्भीर समस्या बता भावी माता-पिता को जानलेवा कदम उठाने पर इनके द्वारा विवश कर दिया जाता है।


डॉक्टरी पढ़ाई पर आए खर्चे की वसूली- ऐसा प्रतीत होता है कि इस डॉक्टरी पढ़ाई में जो भी खर्च इन्हें पढ़ा है ये मरीज की जान लेकर वसूल करने पर आमदा हों।

इसी वसूली की बलिवेदी पर स्वस्थ मानव और अस्वस्थ हो मृत्यु आलिङ्गन पर तत्पर हो जाता है।

पुरातन काल की अपेक्षा रोगी को टेस्ट के नाम पर पानी की भांति पैसा बहाने और  अपने रोग का नाम बारंबार सुनने पर विवश कर दिया जाता है,जिसके फलस्वरूप स्वस्थ होने की उसकी बची-खुची आस और विश्वास टूट-सी जाती है।जिसके कारण वह इस संसार चक्र से समयपूर्व ही मुक्त हो जाता है।

डॉक्टरी अस्पताल व फाइव स्टार हॉटल-जिस भांति आप किसी होटल में भोजन हेतु प्रवेश करते हैं और मिन्यू कार्ड देखते हैं,उसी भांति डॉक्टर्स के यहाँ भी मिन्यू कार्ड अस्पताल के दीवाल पर आपको दिख जाएगा,जिसे देखकर ,सयकीन करें आपकी घटी हुई बीमारी स्वतः बढ़ जाएगी,कारण आपने मुद्रा के साथ में उसमें अंकित शून्यों की ठीक से गिनती जो कर ली।यदि इस पर आप गणित के पक्के शिक्षक हैं तो ये मिन्यू कार्ड  आपको शीघ्रमेव इस संसार सागर से मुक्त कर देंगे क्योंकि आपने गणितीय गणना ठीक-ठीक जो कर ली,परन्तु यदि आप अन्य विषय के ज्ञाता हैं या कच्चे गणित शिक्षक हैं तो आपके प्राण पखेरू शीघ्र उड़ने से बच जाएंगे।

कुछ सकारात्मक पहलू इसके भी निम्नलिखित हैं:-

डॉक्टरों और जाँच केन्द्रों की महिमा को साक्षात् देख कर,अनुभव कर ही यह जीव जो शायद-संयोग  ही कूलर का हवा,लिफ्ट का आनंद,सेन्सर गेट में प्रवेश कर अपने जीवन को सफल बना पाया।

इसके साथ ही विभिन्न रंगों और फ्लेवरों वाली गोलियाँ,कैप्सूलें और दुर्लभ सूचीवेधों(इन्जेक्शनों) का आनंद प्राप्त हुआ क्या कोई इसे झूठला सकता है भला,स्वस्थ काया को अस्वस्थ प्रमाणित करने वाले मशीनों का महिमामण्डन करने में मेरी लेखनी असमर्थ हो रही है।

विशेष: आप भी किसी मामूली रोगों के साथ ही सही इन डॉक्टरों व जाँच केन्द्रों में अवश्य पधारें,यकीन मानें आप बोर ना होंगे और आपको लगेगा कि कोई तो आपको मिला जिसने आपको बारंबार कम से कम आने को तो कहा....

आज अस्पतालों में मेन्यु कार्ड परोसे जाते हैं,कैसे मेन्यु कार्ड होते हैं,काव्य के माध्यम से दर्शाता हूँ :-

जीवन करे ये तंग,टूट जाता अंग- अंग,

भयंकर मेन्यू कार्ड,सामने न लाइए।

जब उनसे ये कहा,लगे वो घूरने मुझे,

ट्रेन्ड यही चल रहा ,कहीं ओर जाइए।




मरता क्या ना करता,आँसू से पेट भरता,

मेन्यू कार्ड धर लिया,कहा पकड़ाइए।

ज़ुकाम जी था मामूली,काफी बस एक गोली,

कहे डॉक्टर साहब,मेन्यू कार्ड धाइए।




रैट लिखा ऐसा कड़ा,नज़रों को मेरी गड़ा,

फ्लेवरों के इन्जेक्शन,चयन बताइए।

कहा अजी लघुशंका,पीट अजी दिया डंका,

उल्टे पैर भाग लिए, खैर ये मनाइए।




पापिनी ये मेन्यू कार्ड,दूर मुझे उड़ा जाती,

भोले-भाले ये जीव को,स्वर्ग से बचाइए।

उम्र अभी क्या हमारी,मौत से क्यों करें यारी,

चाहे नहीं मेन्यू कार्ड,विष ना पचाइए।




सुबह व्यायाम करें,समय पे काम करें,

भला नहीं मेन्यू कार्ड,शौर ये मचाइए।

हमको ये डूबा रहा,जेब हमारी खा रहा,

बचाएं अपने हम,न मेन्यू कार्ड रुचाइए।




भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

१. व्यंग्य से आप क्या समझते हैं?कुछ लोग इसका मतलब हास्य समझते हैं,कहाँ तक उचित है स्पष्ट करें।


उत्तर-व्यंग्य का अर्थ किसी विषयवस्तु,स्थान व व्यक्तिविशेष में समाहित गुण व अवगुण को सन्तुलित भाव में पूर्णतः आवश्यक सामग्रियों के माध्यम से स्पष्ट करना होता है।

जी नहीं !व्यंग्य का मतलब हास्य कदापि नहीं होता,अपितु हास्य एक विधा है जिसमें अपने विषयवस्तु को हल्के-फुल्के उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया जाता है।


२. क्या व्यंग्यकार विषयवस्तु के गुण- अवगुण को स्वाभाविक रूप में दर्शाता है या अस्वाभाविक रूप में ?

उत्तर-हाँ, एक व्यंग्यकार विषयवस्तु के गुण- अवगुण को स्वाभाविक रूप में ही दर्शाता है।


३.अस्वाभाविक रूप से विषयवस्तु को दर्शाने से हमारा तात्पर्य क्या है ?

उत्तर- अस्वाभाविक रूप में विषयवस्तु को दर्शाने से हमारा तात्पर्य व्यंग्य को बलाघात प्रस्तुत करने से है,जबकि व्यंग्य का काम ललकारना है,पुचकारना नहीं।।

४.व्यंग्यात्मक आलेख किसे कहते हैं ?

उत्तर-व्यंग्यात्मक आलेख व्यंग्य पर केन्द्रित आलेख होता है,जिसमें इतना सामर्थय होना आवश्यक है कि बात स्पष्ट करते हुए हर्ष और व्यंग्य दोनों की अभिव्यक्ति हो सके।

६. कुकुभ छंद की परिभाषा व विधान को बताएँ ?

उत्तर-यह एक सममात्रिक छंद है,इस चार पदों के छंद में प्रति पद ३० मात्राएँ होती हैं।प्रत्येक पद १६ और १४ मात्रा के दो चरणों में बँटा हुआ रहता है।विषम चरण १६ मात्राओं का और सम चरण १४ मात्राओं का होता है। दो-दो पद के तुकान्तता का नियम है।

७.पद्धरि छंद की परिभाषा व विधान को बताएँ ?

उत्तर- चार चरणों के इस सममात्रिक छंद में १६ मात्राएँ प्रति चरण व आरम्भ द्विकल से और अंत जभान से होता है।इसे दो-दो चरण समतुकांत भी रखा जा सकता है।


८. अमी छंद की परिभाषा तथा विधान बताएँ ?8

उत्तर-इस वर्णिक छंद के विधान में प्रति चरण नौ वर्ण होते हैं।गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार गणावली- नसल जभान यमाता।

इसकी मापनी १११,१२१,१२२ होती है,इसके चार चरण होते हैं


९.आलेख किसे कहते हैं ?

उत्तर- एक नपा-तुला लेख आलेख है जिसमें मूल-सन्दर्भ पर केन्द्रित बात ही रहती है।
इसका कार्य संक्षिप्त रहकर गागर में सागर की तरह विस्तार करना आवश्यक है।

१०. क्या व्यंग्य का काम पुचकारना है,निबंधों की भांति समझाना है ?

उत्तर- नहीं,व्यंग्य ललकारता है,पुचकारता नहीं।वह सामाजिक कुरीतियों,पाखण्डों,बुराईयों पर कुठाराघात करता है।

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टिप्पणियाँ

  1. Doctors ki aap sahi khabar le rahe hain

    Aap jaise likhne walon ka hona jaroori hai
    samay samay par samaj ki Ankhen kholne ke liye

    Likhne ke liye
    Hridaye se dhanyavad

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार श्रीमान,एक साहित्यकार का धर्म यही होता है कि समाज की कुरीतियों,खूबियों इत्यादि को अपनी सृजन के माध्यम से दर्शाए।
      साथ ही व्यंग्यकार होने के नाते यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वह समाज के विभिन्न पहलूओं को इस प्रकार लेखनीबद्ध करे कि वह समाज के लिए एक प्रेरण का काम करे।

      हटाएं

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