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तू कभी भी डरा ही नहीं-एक निर्भीक योद्धा

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तू कभी भी डरा ही नहीं-एक निर्भीक योद्धा भारत  भूमि अदम्य साहस और बलिदानों की भूमि है,इस मिट्टी के दिव्यता का प्रतीक है यह, कि यहाँ निवास करने वाला प्रत्येक जीव किसी भी विषम से विषम परिस्थिति में धैर्य नहीं खोता है और अपने भगीरथी प्रयासों से उस समस्या से बाहर भी आ जाता है,तभी तो उसके बारे में यह कहा जाता है -तू कभी भी किसी से डरा ही नहीं और तूफ़ानों में भी बढ़ता रहा।   ताकत तिरंगे की भारत अखण्डता में एकता वाला देश है।सभी धर्म-सम्प्रदाय,रंग-वेश,जाति व भाषा के लोग यहाँ रहते हैं। इतनी विविधताओं के होते हुए भी भारत खण्डित नहीं,अपितु समृद्ध है। प्राचीन काल से ही यहाँ के लोग वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से अभिप्रेरित हैं,इस भावना का मूल यही है कि समस्त संसार अपने परिवार की भाँति ही है। हमारे रंग,धर्म-सम्प्रदाय भले ही अलग हों पर समानता यही है कि हर दिल में जो बस एक ही रंग बसता है,वह है केवल और केवल हमारे तिरंगे का रंग,जो हमारी ताकत है,मान है,मर्यादा है और सबकुछ...। ज्ञान,विज्ञान केवल और केवल तिरंगा व्यक्ति की प्रथम पाठशाला है उसका घर-परिवार,जहाँ  वह परिजनों से करने वाले समुचित व्...

दुल्हा बिकता है

आज समाज में दहेज एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है,सामान्य तौर पर लोगों ने यह धारणा बना रखी है जो वो खुद नहीं अर्जित कर सके ,वो वह दहेज से पूर्ण करेंगे यानि दुल्हा बिकेगा। विवाह दो आत्माओं का मिलन है,पर इसे आज दहेज लोलुपता ने व्यापार बना दिया है। दुल्हा बिकता है एक विचारने योग्य विषय है,क्या आज पुरुषार्थ क्षीण होता जा रहा। प्राचीनकाल में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता की व्यवस्था थी पुरुषार्थ सामर्थय जाँचने की,प्रतियोगिता विजित होने पर ही वर को वरा जाता था,क्या आज दुल्हा बेचने की प्रक्रिया दृष्टिगोचर नहीं हो रही। त्रिदेवों ने जब संसार का निर्माण किया,तो उन्हें सृष्टि को सुचारू रूप से गतिमान रखने के लिए दो ऊर्जा- पूँजों की अनिवार्यता थी,जिसे पुरुष व प्रकृति तथा सरलार्थ में नर और नारी के रूप में हम जानते हैं।     पुरुष व प्रकृति के संयोग से ही यह सृष्टि चक्र गतिमान है।इन दोनों की ही आन्तरिक ऊर्जा के स्पर्श का प्रतिफल है मानव समुदाय की उत्पत्ति।    पुरुष व प्रकृति का एक दूजे से अन्योन्याश्रय संबंध उसी भाँति का है जिस भाँति जल और मछली का,आत्मतत्व व शरीर का।    इस संबं...