तू कभी भी डरा ही नहीं-एक निर्भीक योद्धा
तू कभी भी डरा ही नहीं-एक निर्भीक योद्धा
भारत भूमि अदम्य साहस और बलिदानों की भूमि है,इस मिट्टी के दिव्यता का प्रतीक है यह, कि यहाँ निवास करने वाला प्रत्येक जीव किसी भी विषम से विषम परिस्थिति में धैर्य नहीं खोता है और अपने भगीरथी प्रयासों से उस समस्या से बाहर भी आ जाता है,तभी तो उसके बारे में यह कहा जाता है -तू कभी भी किसी से डरा ही नहीं और तूफ़ानों में भी बढ़ता रहा।
ताकत तिरंगे की
ज्ञान,विज्ञान केवल और केवल तिरंगा
कपूत और आस्तीन के साँपों का दंश भोगती भारत माँ
माँ भारती के छाँव तले ही आज हम सुरक्षित हैं,बड़े ही आराम से घर-बैठे चाय-पकौड़ी का लुत्फ़ उठाते हुए केवल यह।
घर बैठे चाय-पकौड़ी के साथ विचारों के आँधी तूफ़ान लाना यहाँ अत्यन्त ही सरल है,पर जो वास्तव में नींद और भूख त्यागकर केवल इस सोच में लगे रहते हैं कि मेरी माँ और भाई-बंधु सदैव सुरक्षित रहें,असलियत से,वास्तविकता से भली-भाँति परिचित केवल वहीं रह सकते हैं।
ये उन अमर जवानों को समर्पित है जो डरे ही नहीं थे डटे ही हुए थे जब दुश्मन उन पे वार पे वार किए जा रहे थे,उन्हीं वीरों को नमन करते हुए प्रस्तुत है मेरी लिखी एक कोशिश स्रग्विणी छंद में :-
नि:सन्देह हमारा पड़ोसी मुल्क ये अफवाह अपने मन में पाले रखता है कि हमारे जवान उनसे डरते हैं और इसी अफवाह के बलबूते वो सोचता है कि हमारे जवान डरे हुए हैं मगर मैं बता देना चाहुँ हर भारतीय जवान डरना नहीं डटना जानता है।
बेचारा हमारा पड़ोसी इस धोखे में कि हम उससे डर गए हैं,कितनी बार कोशिश किया और करता ही रहता है और मजे की बात यह कि वो जितनी बार भी वार हमपर किया है पीठ पीछे ही किया है,क्योंकि सामने से वार करने के लिए कलेजा,जिगरा,५६ इंच के सीने की आवश्यकता होती है और वो उसके पास है ही नहीं...
अरे जितनी बार वो हमपर हमला किया है छुपकर ही तो किया है,पुलवामा में भी वार उसका एक कायराना कदम ही माना जाएगा,तो प्रस्तुत है मेरी यह रचना उन अमर जवानों को समर्पित स्रग्विणी छंद में छोटी सी मेरी कोशिश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि के रूप में:-
स्रग्विणी छंद एक मापनीयुक्त वार्णिक या वर्णवृत छंद है।
जिसके सृजन में चार रगण की आवश्यकता होती है यानि इसे मापनी में बाँधूं तो इसकी मापनी होगी
212 212 212 212
राजभा राजभा राजभा राजभा
साथ ही यह ध्यान रहे इसे अन्य छंदों की तरह गुरु करने के लिए 2 की जगह 11 बिल्कुल नहीं किया जा सकता ।यह कुल 12 वर्ण पर आधारित छंद है।
प्रस्तुत है सृजन:-
तर्ज़-अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं:-
212 212 212 212
तू डरा ही नहीं था डटा ही हुआ।
वार पीछे किया वो सटा ही हुआ।
हौशला था कहाँ सामने हो खड़ा।
गीदड़ों सा कलेजा लिये वो अड़ा।
शीश जो तू कटाता रहा था यहाँ।
था उसे ये लगा है डरा ये जहाँ।।
सिंह ना है डरे क्या उसे था पता।
मार खाता रहा ये किया जो ख़ता।।
१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही आज की यह रचना जो स्रग्विणी छंद में हैं- अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं भजन पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें,तथा शब्दों में निहित मात्राओं व वर्णों को उदाहरण से समझाएँ।
उत्तर-दोहा,चौपाई,ताटंक,रोला,सोरठा,कुण्डलिया,विधाता इत्यादि मात्रिक छंदों के उदाहरण हैं तथा घनाक्षरी,पंचचामर,चामर,इत्यादि वार्णिक छंदों के उदाहरण हैं।
माता शब्द में जहाँ दो वर्ण हैं, वहीं मात्राएं चार हैं।
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