सरल मार्ग ना इस जीवन के (No easy way to life)
सरल मार्ग ना इस जीवन के (No easy way to life)
सरल मार्ग ना इस जीवन के ,यह पूर्णतः यथार्थ है क्योंकि बुद्धिजीवियों का ऐसा मानना है कि लोग इस पथ पर,इस मार्ग पर चलना प्रारम्भ तो कर देते हैं,परन्तु असफलता प्राप्त होते ही
थक-हार कर बैठ जाते हैं।यह भूलकर कि अपने अथक प्रयासों से इन असफलताओं को,जो कि क्षणिक ही हैं,अपनी सफलता में निस्सन्देह बदला जा सकता है।
संघर्षों के पथ से जीवन यात्रा का प्रारम्भ
यह पूर्णतः असत्य है कि जीवन रस्ता अर्थात जीवन पथ पर कोई बाधाएं नहीं आती हैं और हम अत्यंत सुगमतापूर्वक सफलता को प्राप्त कर आगे बढ़ते जाते हैं।सत्य तो यह है कि यह मार्ग बिल्कुल भी सरल नहीं,विभिन्न प्रकार की बाधाओं,कठिनाइयों का सामना कर इस मार्ग पर बढ़ना पड़ता है।
असफलता रूपी बारिश में भींगना सफलता प्राप्ति के लिए अनिवार्य
यह सर्वविदित है कि इस संसार में सफलता की प्राप्ति उसे ही होती है जो यहाँ असफलताओं की बारिश में भींगता है
और इसकी ठिठुरन के पश्चात स्वयं को श्रम की अग्नि में तपाकर अपनी सफलता का मार्ग सुनिश्चित करता है।
इस मार्ग से व्यक्ति सफलता के जितना समीप पहुँचता जाता है,वह आश्वस्त होने लगता है,पर उसी समय असहाय दुख एक तूफ़ान के रूप में आकर उसे झकझोर देता है।
परन्तु वह धीरे-धीरे स्वयं को संतुलित कर अपने मनोबल को विकसित कर अन्त में आगे बढ़ ही जाता है।
जीवन मार्ग किस भांति का है,इसे समझाने के लिए मेरी ये कुछ पंक्तियां प्रस्तुत हैं जो कि राधेश्यामी छंद में है जिसका विधान ३२ मात्रा प्रति चरण,१६-१६ मात्रा पर यति,चार चरण दो चरण समतुकांत,चरणांत गुरु होता है:-
सरल मार्ग ना इस जीवन के,यह संघर्षों से ही गुजरे।
अगर बात यह ना है सच्ची, तो श्रम फिर क्यों करने गहरे।।
आलस दुश्मन ऐसा होता,जो मार्ग सदा भटकाता है।
अगर चले जो कोई उसपर,मध्य में उसे लटकाता है।।
लक्ष्य सरल इसमें है दिखता,पर मृगतृष्णा उसको जानें।
श्रम करें लक्ष्य होगा संभव,बस मूलमंत्र इसको मानें।
ज्ञानवान वह केवल होता,हरदम तरुवर जैसा झुकता।
नहीं अहं का जिसमे़ं दर्शन,खूब मन लगा सदा सीखता।।
वैरी भी जो गले लगाए, मानव सच्चा कहलाता है।
सदा भूलकर खुद की पीड़ा,चोटें सबकी सहलाता है।।
नष्ट समय जो कभी न करते,बस मनुज गुणी वह ही होते।
सदा कर्म वो अपना करते, वो चिन्ता फल में ना खोते।।
किसने कितना खोया-पाया,जो बैठे-बैठे ना सोचें।
मानव वो सच्चे होते हैं,जो जन-जन की आँसू पोछें।।
कठिन लक्ष्य हो या हो दुर्गम,सफल उद्यमी ही करते हैं।
विजय सदा ही उनकी होती,जो नहीं भाग्य यूँ वरते हैं।।
भावार्थ :-इस जीवन का कोई सरल मार्ग नहीं है,अपितु यह मार्ग अतिशय दुर्गम है जो संघर्ष के क्षेत्र में ही मिलता है।
अतएव यह कहना अनुचित होगा कि इस जीवन को जीना अर्थात इसके मार्ग पर चल पाना सरल होता है।
यदि यह मार्ग इतना सुगम होता तो यहाँ श्रम करने की भला आवश्यकता ही क्या थी।
सभी सुगमता से इस मार्ग को तय कर अपने गंतव्य तक पहुँच जाते।
इस जीवन के आदर्शों को स्थापित करने के लिए हमें अपना बचाव केवल एक शत्रु से करना होगा,जो आलस है
और जिसका केवल एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति को भटकाना होता है।
और जिसका केवल एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति को भटकाना होता है।
इस शत्रु के अनुसरण मात्र से व्यक्ति अपने लक्ष्य से विपथिथ होता जाता है और इस विपथन में उसे यह भ्रम हो जाता है कि इस सरल मार्ग के अनुसरण से वह अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगा ,जो वास्तव में एक मृगतृष्णा(छलावा मात्र) होता है।
जबकि लक्ष्य प्राप्ति का एकमात्र मार्ग,एक मूलमंत्र केवल
श्रम है अन्यथा कुछ नहीं।
इस संसार में ज्ञानीपुरुष की पहचान यह है कि जिस प्रकार
फल लगे वृक्ष की शाखा नतमस्तक हो जाया करती
है,उसी प्रकार ज्ञानवान मनुष्य भी नतमस्तक हो जाया
करते हैं।लक्ष्य प्राप्ति का एकमात्र विकल्प अहं का त्याग
कर केवल सीखने को महत्व देना है।
मानव की उपयुक्त परिभाषा वही व्यक्ति सिद्ध करता है जो
अपना अहित चाहने वालों को भी गले से लगा ले।
सच्चा मानव तो अपनी पीड़ा भूल दूसरों की चोटें सहलाता है।
गुणी व्यक्ति अपना समय कभी व्यर्थ नहीं करता,अपितु वह अपनी कमियों का विश्लेषण कर उनके लिए एक
सुधारात्मक कार्यवाही स्वयं पर करता है।
ऐसे मानव केवल अपने कर्म को सर्वोपरि बिना फल की चिन्ता किये माना करते हैं।
किसी की लाभ-हानि के बारे में जो बिना विचारे
मानव की उपयुक्त परिभाषा वही व्यक्ति सिद्ध करता है जो अपना अहित चाहने वालों को भी गले लगा ले।
वास्तव में मानव की परिभाषा को चरितार्थ करने वाला वही व्यक्ति होता हो जो स्वयं की पीड़ा भूल दूसरों को होने वाली पीड़ा का विचार करता है।
एक गुणी व्यक्ति अपना समय कभी भी व्यसर्थ नहीं करता,अपितु वह अपनी कमियों का विश्लेषण कर उनके लिए एक सुधारात्मक कार्यवाही स्वयं पर करता है।
ऐसे मानव फल की चिन्ता छोड़ अपने कर्मों को सर्वोपरि माना करते हैं।किसी की लाभ-हानि की चिन्ता छोड़ जन-जन के आँसू पोंछने वाला व्यक्ति ही मानव की परिभाषा को चरितार्थ करता है।
परिश्रम करने वाला व्यक्ति ही कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है,भाग्य भरोसे बैठने वाला किसी भी क्षेत्र में विजित नहीं हो सकता।
In english :-There is no easy way to life.Its full of consequences situated in the struggle arena.Its not a well-saying that the path to life is easier,But it can be by our great efforts.
But here is one who can stopped us in reaching towards our goal is laziness,Its only work to misguide us by creating an illusion of easy-going things.
In english :-There is no easy way to life.Its full of consequences situated in the struggle arena.Its not a well-saying that the path to life is easier,But it can be by our great efforts.
But here is one who can stopped us in reaching towards our goal is laziness,Its only work to misguide us by creating an illusion of easy-going things.
But success can be rewarded only by true dedication towaards your work.
A well educated person is defined by his
quality of bending down like a fruitfull tree. Aim could achieved only when the persons ego destroyed.
A True man always think about the benefit of his well-wisher.
Intellectual persons always grab up knowledge from their mistakes-analysis.
They always think about the perfectness of work,not of results.
१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
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