लाँघ गये सागर हनुमंता(Shri Rambhakti ki vilakshan gatha)
लाँघ गये सागर हनुमंता (Shri Rambhakti ki vilakshan gatha)
जब श्रीराम व समस्त वानर सेना लंका के इस पार पहुंचे तो समक्ष सागर देखकर जब सभी चिंतित हो गए तब-सागर"लाँघ गए हनुमंता"।
प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त माने जाने वाले भक्त शिरोमणि हनुमान जी ने समक्ष सागर देखकर भी श्रीराम के काज को सफल करने के लिए गहरे सागर को भी लाँघ दिया।
श्रीरामचरित्रमानस के अनुसार बाल्यकाल में अपने उग्र स्वाभाव के कारण जब उन्होंने आश्रम में यज्ञ-हवन करने वाले मुनियों को अपने आत्ममुग्ध गुणों से परेशान किया तो उन्होंने उन्हें अपनी उन शक्तियों को भूल जाने का शाप दे दिया, जो उन्हें विभिन्न देवी-देवताओं से वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था।
परन्तु, उनके जन्म के उद्देश्य को समझकर उन मुनियों ने उनके शाप निवारण का यह उपाय बताया कि किसी के याद दिलाने पर उनकी सारी शक्तियाँ रामकाज हेतु पुनः प्राप्त हो जाएगी।
Matri shaktiye namah phhir danav dal sanhaar karo.
भक्ति शिरोमणि हनुमान और उनकी विलक्षण शक्तियाँ
हनुमान जी की अष्ट सिद्धियां
- अणिमा- इस सिद्धि की सहायता से साधक सूक्ष्मतम से सूक्ष्मतम रूप धारण कर सकता है।
- महिमा - साधक इस सिद्धि की सहायता से विशालतम रूप धार सकता है।
- गरिमा- इस सिद्धि को धारणे वाला साधक अपने भार को अधिकतम सीमा तक बढ़ा सकता है।
- लघिमा- भार को बिल्कुल हल्का कर स्वयं को कहीं भी लाने-ले जाने की समर्थता प्रदान करने वाली यह अद्भुत सिद्धि इन अष्ट सिद्धियों में अपनी एक अलग ही महत्ता रखती है।
- प्राप्ति- अपने नाम के अनुरूप सब प्राप्त कराने वाली इस सिद्धि की सहायता से साधक किसी भी वस्तु को तुरंत प्राप्त कर सकता है,पशु-पक्षियों की भाषा को समझ सकने में सक्षम होने के साथ-साथ वह भविष्य की जानकारी वर्तमान में ही प्राप्त कर सकता है।
- प्राकाम्य - पाताल तक जाने में सक्षम बनाने वाली यह सिद्धि साधक को आकाश में उड़ने व अपने इच्छित काल तक जीवित रहने की सिद्धि प्रदान करती है।
- ईशित्व- दैवत्व को प्रदान करने वाली यह विलक्षण सिद्धि इन अष्ट सिद्धियों में से एक अति विशिष्ट सिद्धि है।
- वशित्व - इन्द्रजीत यानि इन्द्रियों को जीतने में सक्षम बनाने वाली यह सिद्धि अष्ट सिद्धियों में से एक और विलक्षण सिद्धि है।
- पद्म निधि - इन लक्षणों से संपन्न साधक सात्विक गुण वाला होने के साथ-साथ सोने-चाँदी आदि का संग्रह कर उसका दान करने वाला होता है।
- महापद्म निधि - इस निधि को धारणे वाला साधक संचयित धन आदि का प्रयोग धार्मिक जनों में दान हेतु करता है।
- नील निधि - इस निधि का स्वामी साधक सात्विक तेजमय होता है और उसके द्वारा संचयित वैभव तीन पीढ़ी तक सुरक्षित रहते हैं।
- मुकुन्द निधि - इस निधि को धारणे वाला साधक रजोगुण युक्त होने के साथ-साथ राज्य संग्रही होता है।
- नन्द निधि - इस निधि को धारणे वाला साधक रजस व तमस गुणों से युक्त होने के साथ-साथ अपने कुल का आधार होता है।
- मकर निधि - इस निधि से युक्त साधक अस्त्रों का संचय करता है।
- कच्छप निधि - तमस गुणी इस निधि को धारणे वाला साधक स्वयं संचयित संपत्ति का स्वयं उपयोग करता है।
- शंख निधि - यह निधि एक पीढ़ी के लिए होती है,इस निधि को धारणे वाला साधक रोग,दोष इत्यादि से मुक्त रहता है ऐसी जानकारी है।
- खर्व निधि - इस निधि को धारणे वाला साधक के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।
श्रीराम भक्त हनुमान व सीता माता की खोज
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे-
“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।”
ऐसी चालीस अर्द्धाली की रचना चालीसा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।
चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।
(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते।
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता।
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे ‘व्यर्थ न’ ‘डरो न’ आदि मान्य हैं। ‘डरो न’ पर ध्यान चाहूँगा, 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में ‘न डरो’ मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो चरण के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। ‘डरे न कोई’ से चरण का अंत हो सकता है ‘कोई डरे न’ से नहीं।
अठकल = 8 – अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं।
(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण – ‘उपाय’ ‘सदैव ‘प्रकार’ जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। ‘राम नाम जप’ सही है जबकि ‘जप राम नाम’ गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता। ‘तुम सदैव बढ़’ में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘तुम स’ और ‘दैव’ ये दो त्रिकल तथा ‘बढ़’ द्विकल बना रहा है।
‘राम सहाय न’ में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘राम स’ और ‘हाय न’ के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।
लाँघ गये सागर हनुमंता।
शक्ति दी थी उन्हें नियंता।।
पहुँचे जब हनुमत थे लंका।
राम नाम सुन उपजी शंका।।१
हंता की नगरी में संता।
ढूँढन लागे उसे तुरंता।
सम्मुख में ही एक महल था।
समाप्त हुआ तब कौतूहल था।।२
नाम विभीषण उसने बोला।
भेद वाटिका का वो खोला।।
बनी जहाँ थी बंदी सीता।
हृदय राम की जो हैं प्रीता।।३
हनुमत को पहले ना जानी।
देखी मुद्रिका तब पहिचानी।।
मन में फिर सोचे बजरंगी।
करतब अब कर लूँ अतरंगी।।४
बोले हनुमत बालक जैसे।
भूख लगी माँ खाऊँ कैसे।।
माता मैं अतिशय ही भूखा।
मिटे क्षुधा यदि पाऊं रूखा।।५
कंद-मूल फल रुचिकर खाऊं।
अग्नि उदर की शांत कराऊं।।
कही वचन सीता ये सुनकर।
खा लो फल बेटे तुम मनभर।।६
फिर बजरंगी कुछ ना सोचे।
खाए फल अरु कुछ थे नोंचे।।
पूर्ण वाटिका पल में उजड़ी।
रोका जिसने तोड़ी पंँजड़ी।।७
रावण तक पहुँचा संदेशा।
खतरे का होते अंदेशा।।
मेघनाथ को कहकर भेजा।
पकड़ो जो खाए है भेजा।।८
ब्रह्मपाश जब हनुमत देखे।
आदर करने माथा टेके।।
ब्रह्मपाश में बाँधी काया।
मेघनाथ हनुमत को लाया।।९
बहुविधि हनुमत नृप समझाये।
क्षमा माँग लो ये बतलाये।।
गुस्से में फिर रावण भरकर।
पूँछ जलाओ कपड़ा धरकर।। १०
पूँछ जली फिर हनुमत उछले।
जला-जला लंका वो कुचले।।
कूदे जला समुद्र में लंका।
श्रीराम का बजाकर डंका।।११
भेंट दुबारा सिय से करके।
चूड़ामणि संदेशा धरके।।
चूड़ामणि जब प्रभु को दीन्हा।
प्रभु बोले हर्षित मन कीन्हा।।१२
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
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१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार जी🙏🌹🙏
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