जनक

मिथिला के राजा जनक ने एक बार सफाई करवाने के लिए शिव धनुष को उठवाया।

रखने के समय अनायास ही सीता जी ने  बालसुलभ खेल की भांति शिव धनुष को उठा लिया।
राजा जनक यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
उन्होंने घोषणा करवा दी की जनक सुता का विवाह उचित समय पर इस शिव धनुष को भंग करने वाले के साथ ही होगा।
अब अपनी सृजन के माध्यम से सीता जी के स्वयंवर का दर्शन कराने का प्रयत्न करता हूँ,आशा है आप सबको अवश्यमेव पसन्द आएगी।
चौपाई छंद विधान:-
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे-

“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।”

ऐसी चालीस अर्द्धाली की रचना चालीसा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।

चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4

चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।

(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते।
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता।
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे ‘व्यर्थ न’ ‘डरो न’ आदि मान्य हैं। ‘डरो न’ पर ध्यान चाहूँगा, 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में ‘न डरो’ मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।

3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो चरण के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। ‘डरे न कोई’ से चरण का अंत हो सकता है ‘कोई डरे न’ से नहीं।

अठकल = 8 – अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं।

(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण – ‘उपाय’ ‘सदैव ‘प्रकार’ जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। ‘राम नाम जप’ सही है जबकि ‘जप राम नाम’ गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।

पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता। ‘तुम सदैव बढ़’ में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘तुम स’ और ‘दैव’ ये दो त्रिकल तथा ‘बढ़’ द्विकल बना रहा है।
‘राम सहाय न’ में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘राम स’ और ‘हाय न’ के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।

एक उदाहरणार्थ रची अर्द्धाली में ये नियम देखें-
“तुम गरीब से रखे न नाता।
बने उदार न हुये न दाता।।”

“तुम गरीब से” अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।
“रखे न” खंडित चौकल “नाता” चौकल। “नाता रखे न” लिखना गलत है क्योंकि खंडित चौकल चरण के अंत में नहीं आ सकता।
“बने उदार न” अठकल तथा चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ।



जनक नाम हुए एक राजा।

सकल प्रजा के करते काजा।।

जनक राज्य में हुआ स्वयंवर।

वहाँ पधारे कई दिव्यवर।।१

करे चाप जो शिव का भंगा।

विवाह उसका सीता संगा।।

यत्न बहुत सबने कर डाला।

मगर डली न गले में माला।।२



भंग चाप करते रघुनंदन।
 
क्रोधित हुए रेणुकानंदन।।

दशरथ नंदन जब समझाए।
 
रहस्य जाना तो पछताए।।३


जनक सुता का नाम जानकी।

बनी प्रिया करुणा निधान की।।

जनक राज्य में बजी बधाई।

मंगल ये घड़ी अति है आई।।४
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏


१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।

२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !

३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
 उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
 उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।

६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।

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