बेटियाँ:-गृह शोभा और समृद्धि(Betiyan :-Grih sobha aur samriddhi)
बेटियाँ :-गृह शोभा और समृद्धि
जिस घर में बेटियाँ होती हैं,वह घर सुन्दर और समृद्ध होता है क्योंकि इन बेटियों से ही घर-परिवार समृद्ध होता है।
शास्त्रों ने भी इस बात को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए बताया है कि एक बेटे के सुशिक्षित व संस्कारी होने से केवल एक कुल सुशिक्षित व समृद्ध हो सकता है। परन्तु यदि इन नन्हीं कलियों को उत्तम शिक्षा व संस्कारों से पोषित-संपोषित किया जाएगा,तो ये संपोषित-संवर्धित होकर वह पुष्प वाटिका बनेंगी जो समग्र समष्टि को सुवासित करती रहेंगी। इनसे ऐसे नवांकुर फूटेंगे जिससे राष्ट्र को सशक्त,समृद्ध व सुसंस्कारी नागरिक मिलेंगे,जिससे अपना यह प्यारा भारत देश विकास की महायात्रा की ओर अग्रसर हो पाएगा।
किसी भी राष्ट्र के समृद्ध , सुसंस्कृत व सुविकसित होने में केवल और केवल उस राष्ट्र का ही योगदान नहीं होता,वरन् इसमें महती योगदान उसके नागरिकों का होता है।
एक समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वाली राष्ट्रभक्त बेटियाँ
विशेषकर एक राष्ट्र को समृद्ध बनाने का सम्पूर्ण श्रेय उसके वीर-धीर सुतों के साथ उसकी वीरांगना व धैर्यवती सुताओं का भी समान अधिकार है ,जो प्रारम्भ में सुताएं,पुत्रियां,बहनें इत्यादि बनकर एक राष्ट्र को आनंद प्रदान करती है,तत्पश्चात माताएँ,पत्नियाँ इत्यादि बनकर राष्ट्र को सुवासित करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देने लगती हैं।
इन्हीं सुताओं में से कोई रानी लक्ष्मीबाई,तो कोई जीजाबाई,किसी ने सावित्री बाई फुले,तो कभी सुनिता विलयम्स,कल्पना चावला तो कभी द्रोपदी मुर्मू बनकर राष्ट्र को निहाल कर देती है।
किसी ने महादेवी वर्मा बनकर हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी
से गोरा के माध्यम से मूक प्राणी की असहाय वेदना का दर्शन कराया।
प्लान इन्टरनेशनल नामक प्रोजेक्ट ने "क्योंकि मैं एक लड़की हूँ" कैम्पेन से किया अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस का प्रारम्भ
विश्व में बालिकाओं की ठीक स्थिति न देखने के बाद एक गैर सरकारी संगठन(NGO) ने अपने प्लान इन्टरनेशनल नामक प्रोजेक्ट के तत्वाधान में क्योंकि मैं एक लड़की हूँ कैम्पेन के माध्यम से कनाडा सरकार से बातचीत कर उसके माध्यम से इसे 55 वीं आम सभा में रखकर अन्त में १९ दिसम्बर २०११ को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित कराकर विश्व में ११ अक्टूबर को अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना प्रारम्भ कर दिया,प्रत्येक वर्ष अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस के लिए एक विशेष थीम होता है।
२०२३ में थीम लड़कियों के अधिकारों में निवेश: हमारा नेतृत्व, हमारा कल्याण। यह विषय लड़कियों में निवेश करने की आवश्यकता पर जोर देता है, यह पहचानते हुए कि उनका नेतृत्व और कल्याण एक निष्पक्ष और अधिक समान भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य
अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस की आवश्यकता क्यों ?
समग्र विश्व में बालिकाओं की स्थिति चिन्ताजनक देखकर प्लान इन्टरनेशनल ने बालिकाओं के संरक्षण,उनके संवर्धन के लिए "क्योंकि मैं एक लड़की हूँ" अभियान चलाने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि परिवार में बालकों के जन्म को १९ दिसम्बर २०११ से पूर्व शुभ माना जाता था और बालिकाओं के जन्म को अशुभ।वैसे तो यह विभेद इस ई०व दिनांक से पूर्व ही थी।
इसलिए शिशु के लिंग जाँच की प्रक्रिया उन दिनों प्रचलन में थी,जिससे शिशु के बालक अथवा बालिका होने की पुष्टि की जाती थी,यदि शिशु बालिका होने की यदि संभावना परिवार में आभास भी होता था,तो कन्या भ्रूण हत्या करवाने को उन शिशुओं के माताओं को विवश किया जाता था।
यदि माताएं इसका विरोध करती थी और शिशु बालिका के रूप में जन्म ले लेती थी,तो उसके बड़े होने पर उसे समुचित शिक्षा प्राप्ति से यह कह कर रोक दिया जाता था कि उनका काम घर और रसोई संभालना है,न कि पढ़ना-लिखना।
स्वयं के परिवार के द्वारा ही उचित पोषण न मिलने के कारण ही उनमें कुपोषण के चिन्ह स्पष्ट होने लगते थे।
उन पर हुए इन्हीं अत्याचारों को प्रतिबंधित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस की नींव रखी ताकि हमारी लाडली सुरक्षित,पोषित व संवर्धित हो सके।
पुत्रियों के मार्ग के कंटकों के शमन के लिए
आधुनिक विश्व में विशेषकर भारत में पुत्रियाँ सुरक्षित नहीं हैं,पुरुष प्रधान इस समाज में असुरक्षित होने की अनुभूति करने वाली पुत्रियों को संबल देने,उनके सशक्तीकरण के लिए ही इस प्रकार के दिवस की आवश्यकता पड़ी।
उन्हीं पुत्रियों,लाडलियों,बेटियों के संरक्षण के लिए अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर मैंने भी कुछ प्रयत्न किये हैं,अवश्य पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया रखें :-
सुरक्षित नहीं हैं बेटियाँ
सिर्फ सियासत होंगी ।
या कुछ स्थायी उपचार होंगी ।।
रो रही है ये धरती
रो रहा है ये गगन।
बताइए कब तक यूँ
सियासत में ही रहेंगे मगन।।
कब तक फूल बिखरे हुए मिलेंगे।
चुनाव को ही सिर्फ हम आप मिलेंगे।।
----------------------------------------------------------
उठ जाग बेटी
अब हो प्रबल।
चुप्पी तोड़ तलवार ले।
शमशीर सम हथियार ले।।
करले स्वयं ही संरक्षण।
गर हो मान का मर्दन ।।
उठ जाग बेटी ।
तीर संग कटार ले।।
उठ जाग बेटी ।
अब हो प्रखर।।
उठ जाग बेटी।
अब तू न बिखर।
तू ही उसे उजाड़ दे।
सिर्फ सियासत होंगी ।
या कुछ स्थायी उपचार होंगी ।।
रो रही है ये धरती
रो रहा है ये गगन।
बताइए कब तक यूँ
सियासत में ही रहेंगे मगन।।
कब तक फूल बिखरे हुए मिलेंगे।
चुनाव को ही सिर्फ हम आप मिलेंगे।।
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उठ जाग बेटी
अब हो प्रबल।
चुप्पी तोड़ तलवार ले।
शमशीर सम हथियार ले।।
करले स्वयं ही संरक्षण।
गर हो मान का मर्दन ।।
उठ जाग बेटी ।
तीर संग कटार ले।।
उठ जाग बेटी ।
अब हो प्रखर।।
उठ जाग बेटी।
अब तू न बिखर।
तू ही उसे उजाड़ दे।
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बेटी को सब मानिए,लक्ष्मी का अवतार।
इनको अभी पढ़ाइये,ज्ञान करें विस्तार।। १
एक बेटी पढ़ जाए ,कुल का बढ़ता मान।
भेद कोई ना करें,रखना होगा भान।। ३
बेटी से संसार है,इनसे घर-परिवार ।
घर जिनके हो बेटियाँ,देती कष्ट निवार।।४
भ्रूण हत्या करें नहीं, इससे लगता पाप।
प्रेम इनसे सदा करें,कभी वैर ना आप।। ५
बेटी तनया आत्मजा,जानें कितने नाम।
बेटी को ही जानिए,सभी सुखों का धाम।। ६
तारे कुल दो बेटियाँ,ना समझो तुम बोझ।
देवी घर में रह रही,बाहर होती खोज।।७
आती दौड़ी जब कभी,मन जाता है रीझ।
तारे कुल दो बेटियाँ, इनपे ना तू खीझ।।८
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१.क्या साहित्य सर्वहितार्थ होना चाहिए ?
उत्तर-निस्सन्देह,साहित्य सर्वहितार्थ होना ही चाहिए।
साहित्य का आशय स-हित ही तो होता है।
इसमें जहाँ समाज के लिए उपयोगी दिशानिर्देश होता है,वहीं प्रत्येक उम्र के लिए पठनीय सामग्री होती है।
पर ध्येय यही कि इसमें एक अभिप्रेरणा हो।
२. छंदों में ताटंक छंद का क्या विशेष महत्व है ?
उत्तर-ताटंक छंद मंचों से पढ़ा जाने वाला एक ओजस्वी छंद है,जो मंच को बाँधे रखता है।
इस १६-१४ की यति वाले मात्रिक छंद के अंत में तीन गुरु अनिवार्य होते हैं तथा इसमें चार चरण या दो-दो चरण समतुकांतता का विधान है।
३.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?
उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
साहित्य का आशय स-हित ही तो होता है।
इसमें जहाँ समाज के लिए उपयोगी दिशानिर्देश होता है,वहीं प्रत्येक उम्र के लिए पठनीय सामग्री होती है।
पर ध्येय यही कि इसमें एक अभिप्रेरणा हो।
२. छंदों में ताटंक छंद का क्या विशेष महत्व है ?
उत्तर-ताटंक छंद मंचों से पढ़ा जाने वाला एक ओजस्वी छंद है,जो मंच को बाँधे रखता है।
इस १६-१४ की यति वाले मात्रिक छंद के अंत में तीन गुरु अनिवार्य होते हैं तथा इसमें चार चरण या दो-दो चरण समतुकांतता का विधान है।
३.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?
उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
४. दोहा छंद किस प्रकार का छंद है ?
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।
५.दोहा लेखन का प्रारम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
६.दोहे छंद के विधान को लिखें ?
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।
७. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।
७. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
८. मनहरण घनाक्षरी छंद का विधान लिखें ?
उत्तर-यह एक वर्णिक छंद है जिसका विधान ८,८,८,७ वर्णों पर यति के साथ चरणांत लघु गुरु अनिवार्य।
उत्तर-यह एक वर्णिक छंद है जिसका विधान ८,८,८,७ वर्णों पर यति के साथ चरणांत लघु गुरु अनिवार्य।
#अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस#international girl child day
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