दीपावली की टीस

टीस दीपावली की





भारत पर्वों का देश है,यहाँ भाँति-भाँति के पर्व जीवन के अन्त काल तक मनाये जाते हैं।प्रत्येक पर्व व त्योहार को मनाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य आपसी मेल-मिलाप व आनन्द होता है,परन्तु आनन्द तो धनाढ़य व अभिजात वर्ग के लिए ही सदा से रहा है।गरीबों के लिए तो बस एक टीस रह जाती है और आज रह गयी थी केवल और केवल टीस,दीपावली की टीस....
गरीबों की धमनियाँ तो खुशी के धुएँ तक को महसूस करने को लालायित रहती हैं।
 मझरो दूर खड़े एक बंद फैक्ट्री के पास सिघार के संग बैठा हुआ था,तभी बत्तन बोल पड़ा- "यार! आज  सुना है दीवाली है,शायद ई के दीप के पर्व कहल जाइत है।
उसके इतना कहते ही मझरो सिघार और बत्तन की तरफ देखकर बोल पड़ा यार हम लोगन जैसन गरीबन के लिए का दीवाली!का दुर्गा पूजा! हमारे नसीब में तो बस भूखमरी का अँधेरा लिखले है।

विवशता की स्याह तस्वीर

कुछ देर बाद उठकर सभी अपने घर की ओर चल देते हैं।
मझरो के घर के चौखट पर उसकी बच्चे बाली व बुल्ली मानो उसका इन्तजार कर रहे थे।
अपने समक्ष बापू को चुप्पी साधे खड़ा देख उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी स्वतः हो गयी थी कि बापू कुछ भी इस महापर्व पर बढ़ियां इन्तजाम करने में विफल हो गए हैं।

बाली तनिक समझदार था पर बुल्ली आखिर बच्ची थी,उसने अपने बापू को देखते ही तपाक से उससे पूछ लिया कि क्या बापू आज भी एक भी फुलझड़ी लेकर नहीं आया,पर मझरो के पास इसका कोई जवाब ही तो नहीं था...क्योंकि उसके मालिक ने एक भी सिक्का उसे नहीं दिया था,इसी कारण तो वह एक भी फुलझड़ी तक बुल्ली के लिए नहीं ला पाया था।

घने अँधेरों के बीच आशाओं की आतिशबाजी

अस्ताचल गामी सूर्य की किरणें अपने विश्राम कक्ष की ओर मानो अग्रसर थे और चंद्रदेव ने रात्रिसेवा का भार उठा लिया था,फिर भी पृथ्वी की ओर से होने वाली आतिशबाजियों से उन्हें भी आज अपने अल्प ऊर्जा को व्यय करना पड़ रहा था।
सम्पूर्ण वसुंधरा आतिशबाजियों के कानफोड़ू धमाकों और टिमटिमाते दीपों के उजालों से पटी हुई मालूम पड़ रही थी,धरा के एक कोने में ही केवल अँधियारा था वह था बाली और बुल्ली का घर।
बेचारे दोनों घर के एक कोने में बैठे बाहर हो रही आतिशबाजियों को बस निहार रहे थे।

अँधियारे में विलीन होते आस की किरणें

मझरो चुपचाप विवश होकर अपने घर के एक अँधियारे
कोने में पड़ा हुआ था।
कर भी क्या सकता था वह विवश बाप! आज अपने बच्चे के मासूम ख़्वाबों को भी वह पूरा नहीं कर पा रहा था,मन ही मन वह सोच रहा था कि इस दीवाली ने कैसी टीस दी उसे,कैसा अभागा बाप है वह...अपने बच्चे के छोटे से इच्छा को भी पूर्ण नहीं कर पाया।
 उधर घर के किसी कोने में मात्र बचे हुए थोड़े से घासलेट की रोश्नी में अपने बुझे उम्मीद की आँच में झनिया थोड़े से दूध और भात एक कटोरे में गर्म कर रही थी ताकि बुल्ली को उसके हिस्से की कुछ खुशी तो दे पाए वो..मन में झनिया विचार रही थी कि वह उससे झूठ कह देगी कि वह उनके लिए खीर बना दी है,आकर दोनों बस खा ले।
यदि वो प्यार से खा लें तो बढ़ियां होगा,अन्यथा उनके भूख को शान्त करने के लिए इस पर्व पर भी उन्हें दर्द व टीस का एहसास कराना होगा।
बाली और बुल्ली की मासूम बातचीत
भैया क्या लक्ष्मी मैया सिरफ सेठों-साहुकारों के घर जाना पसन्द करती हैं ? क्या गरीबों पर उनकी कृपा दृष्टि नहीं रहती ? हम लोग आज भी एक्को ठो पूड़ी- पकवान नय खाए हैं ईहो देखकर लक्ष्मी मैया को कोन्हौ तरस नहीं आया।
यह सब सुनकर बाली जो तनिक समझदार था उससे कहने लगा - अरे नय रे पागल,लक्ष्मी मैया सब देख रही हैं ऊपर से,ऊ आ भी रही होगी हमलोग के लिए गरम-गरम पूड़ी पकवान लेकर, पर ऊहौ का करियैं रे,ऐतने बड़िका-बड़िका भगत सब हुनका है कि उनखा हम गरीबन लगै पहुँचे नहीं देवे देता है,सब हुनखा के महंगा-महंगा गमकव्वा अगरबत्तिया बार-बार के अपनी ओर खींचता रहता है,खैर देखना रतिया में ऊ सबले लगे जाकर लौटकर ऊ इहवाँ भी ज़रूरे-ज़रूरे अहियैं।
हऊ भैया तुम ठीक्के कहत हो,साँचो बोलत हो,ज़रूरे-ज़रूरे लक्ष्मी मैया आएगी।
दोनों फिर आसमान में होते आतिशबाजी को देखकर एक-दूसरे से कहने लगे कि क्या तुमको पता है ई दीवाली से पहिले दिन एक और परव लोग सब मनाता है,सेठ साहुकार लोग उईके धनतेरस कहते हैं,बापू ने मुझको एक बार बताया था कि ई दिन सब सेठ लोग महींगा-महींगा सामान खरीदता है एक-दूसरा के दिखावटी में,खूबै ताबड़तोड़ खर्चा सब कोई करता है।
हमलोग एक- एक रुपया बास्ते तरसते हैं और ऊ लोग पैसा पे पैसा बस बबुआनी में लुटावते रहते हैं।
आर तुमको ई पता है बुल्ली ई लोग गरीबन को कछू देवे में नुकसान समझता है,पर लाखों रुपया बबुआनी में पटाका जलाकर लुटा देता है।
हऊ भैया ठीके कहत हो,गरीबन के पेट में आग धधके पर ई कभी कछु देवे वाला नय।

माँ की पुकार :- दोनों भाई-बहन इस प्रकार की वार्ता को आपस में कर एक-दूसरे के जीवन के आनन्द के अभाव को कम करने में लगे हुए थे,ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो दोनों अपने अभाव स्वरूपी जख्मों का उपचार कर रहे हों।

माँ ने तभी उन्हें खाने के लिए पुकारा-आओ दोनों जने खीर खाय लहौ,दोनों मुस्कुरा रहे थे,मानो माँ के चतुराई को वो भाँप चुके थे जो अभाव के हाथों दूध -भात को खीर कहने पर विवश थी,इस दूध-भात स्वरूपी खीर में भी माँ के प्रेम के मशालों के स्वाद की अनुभूति बाली और बल्ली करते हुए इस दूध-भात में भी वह खीर का लुत्फ उठा रहे थे और उनके माता-पिता अपनी विवशता पर बैठे-बैठे आँसू छलका रहे थे।
दीवाली या दीपावली बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक यह पर्व अन्य पर्वों की भांति ही पारस्परिक सौहार्द व हर्षोल्लास का संचार समग्र करती है।
 
निष्कर्ष :-इस दीपोत्सव के अनोखे रंग हैं,भगवान राम के अयोध्या वापसी का प्रतीक यह पावन पर्व,आसुरी शक्तियों के समूल नाश का यह पावन पर्व वस्तुतः तो हमारे जीवन में आनन्द  लाता है,पर समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसकी जीवन गाथा मझरो के इर्दगिर्द ही घूमती है।
कहाँ करोड़ों प्रतिस्पर्धा में केवल एक साँस में भस्म करने वाला वर्ग और कहाँ एक निवाले को तरसता जनजीवन....
 
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
१. कथा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:-कथा साहित्य में प्रचलित वह विधा है जो घटनाक्रम व आवश्यक तथ्यों पर आधारित होकर कथाकार के सृजन को जीवंत करने का सामर्थय रखती है।
२.कथा लेखन के लिए आवश्यक अवयव क्या-क्या हैं ?
उत्तर :-कथा लेखन के लिए सर्वप्रथम पात्रों की आवश्यकता होती है,परन्तु उससे भी पूर्व एक घटनास्थल की आवश्यकता होती है क्योंकि घटनास्थल के चयन के बिना सम्पूर्ण कथा आधारहीन होती है।
३.क्या घटनास्थल के चयन के पूर्व किसी अन्य आवश्यक अवयवों की कमी का अनुभव कथाकार एक
कथा लेखन में करता है ?
उत्तर :-जी एक कथाकार को घटनास्थल के चयन के पूर्व कथा के घटित होने के कारकों की खोज करनी होती है क्योंकि कथा की जीवंतता का पता तभी चलता है जब कथाकार को कथा लेखन के कारकों का ज्ञान हो।

४. कथाओं का वर्गीकरण आपके अनुसार कितने रूपों में किया जा सकता है ?
उत्तर:-कथाओं का वर्गीकरण करने के लिए कथा को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है :-
  • दंतकथा :-कथा का वह रूप जो कल्पना पर ही आधारित होता है।
  • लघुकथा :-कथा का वह रूप जिसमें कथा के विभिन्न अवयवों को समुचित मात्रा में कथा में स्थापित किया जाता है।
  • हास्य कथा:-यह कथा हास्य व विनोद पर आधारित होता है।
  • मर्म दर्शक कथा :-कथा का ऐसा रूप जिसमें कथानकों के माध्यम से एक कथाकार मर्म का अद्भुत दर्शन कराने की चेष्टा करता है।
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