विनती-ईश्वर शक्ति दो

आज आए दिन हमें विभिन्न प्रकार की हादसाएँ देखने को मिलती हैं,पुनः हाल के दिनों में हुए बालासोर हादसा ने हमें अन्दर तक झकझोर दिया। 

 ईश्वर से यही विनती है कि वो पीड़ित परिवारों को इसे सहन करने की शक्ति दे।

Vinti-Ishvar shakti do

 


ईश्वर कभी भी किसी को इस प्रकार की यातनाएँ न दे और उनके परिजनों को इस अपूर्णीय क्षति को सहने की शक्ति 
प्रदान करे।

हादसा

हादसा यह केवल शब्द नहीं,अपितु भयंकरता को दर्शाने वाले वह तत्व है जिसके स्मरण मात्र से मन विचलित हो उठता है।
 जिसके परिवार में ऐसी घटनाएं घटती हैं उसके लिए तो बचता केवल शून्य ही है,मगर देखने वालों के लिए,सुनने वालों के लिए यह एक आम बात होती है।

हमारी सोच विडम्बना मात्र नहीं तो और क्या

मानव में प्रारम्भ से ही यह गुण व्याप्त है कि वह केवल स्व की चिन्ता करता है,हमारे तो सभी स्वस्थ हैं यह एक विकृत मानसिकता का परिचायक नहीं तो और क्या हो सकता है भला! हमारी यह सोच विडम्बना मात्र न कहा जाय तो और क्या कहा जाए!

प्राणों का कोई मोल क्यों नहीं ???

आए दिन होने वाले हादसाओं में किसी न किसी की मृत्यु होती ही है,कभी-कभी ही ऐसा संयोग होता है कि कोई केवल चोटिल होकर रह जाता है।
क्या जीवन इतना सस्ता हो गया है ? प्राणों का कोई मोल क्यों नहीं रह गया है ?
हर ओर भागदौड़,भौतिक सुविधाओं की अत्यन्त लालसा ने मानव को दानव बना दिया है।

नशे की लत और बूझते प्राण बाती

आधुनिक समाज में नशे की लत एक सामाजिक प्रतिष्ठा की बात कुछ लोगों द्वारा मानी जाती है।
  इस प्रतिष्ठित पाश्चात्यता अनुकरणी समाज की यह मान्यता कि नशा अपनों के साथ करना विचित्रता का प्रतीक है।
 यहाँ बड़े-छोटे  की मर्यादा को ताक पर रखकर लोग नशे का सेवन करते हैं। 
पिता-पुत्र,बहु-बेटे इत्यादि की धार्मिक व सामाजिक मर्यादा का आज लोप दर्शित हो रहा है।
 इस नशे की बुरी लत ने धीरे-धीरे समाज को खोखला कर दिया है। नशे की इस बुरे लत के कारण कितनों के 
प्राण बाती बूझते गए।

मानवीय महत्वकांक्षाएं और विध्वंश

मानव एक महत्वकांक्षी प्राणी है,जिसकी महत्वकांक्षाएँ अन्तहीन हैं।वह कभी भी सन्तुष्ट हो ही नहीं सकता,उसे -
 स्वर्णिम महल प्राप्त हो जाय या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड!
    मानवीय महत्वकांक्षाएँ फिर भी अपूर्ण ही प्रतीत होती है,इसी अपूर्णता,इसकी सामान्य पिपासा ने इसकी रक्त पिपासा बढ़ा दी है ।जिसके फलस्वरूप चहुँओर केवल विध्वंश ही विध्वंश दरसता है।
  

आत्म केन्द्रित मानव और विलुप्त होती संवेदनाएँ

आत्म केन्द्रित अर्थात अपने सुख की केवल चिन्तन करने वाला मानव हर हाल में केवल अपने सुखों की चिन्ता करता है।
उसे अन्यों के सुख-दुख की तनिक भी चिन्ता नहीं रहती।
इतिहास गवाह है यदि उसे अपने जीवन की रक्षा करनी हो,तो उसकी रक्षा करने के लिए सहस्त्रों को मृत्यु के घात उतारने का अवसर प्राप्त होने पर वह इस अत्यन्त ही निन्दनीय,जघन्य कृत्य को करने से तनिक भी नहीं हिचकिचाएगा।
 आज के परिवेश का यदि गहनतम अध्ययन करें तो किसी को किसी की वेदनाओं,संवेदनाओं की कोई चिन्ता शेष ही नहीं रही है।
सम्भवतः इसी मृतप्रायःसंवेदनाओं,स्व-महत्वकांक्षा तुष्टि के फलस्वरूप ही बालासोर की हृदय विदारक घटना की नींव डाली गयी।
पुनः ईश्वर से उनके परिजनों को सद्गति प्रधान करने की विनती करने के साथ दोषियों के विरुद्ध उचित कार्यवाही की माँग करते हुए उन शून्य में विलुप्त जीवात्माओं को मेरी यह छोटी- सी रचना श्रद्धाँजलि स्वरूप समर्पित है :-



हादसा भयंकर हुआ ,किसकी यह थी भूल।




परिवार जो बिखर गए,पाए जीवन शूल।।१




यात्रा जो थे कर रहे,रख यह मन में बात।




परिजन से होंगे मिलन,हाय! मृत्यु आघात।।२




ईश शक्ति देना उन्हें,खोए जो परिवार।




कोई जाता जब यहाँ, सूना हो घर-द्वार।।३




वीभत्स दृश्य यह बड़ा,चित्र देख भी दर्द।




केवल ही गठरी लगे,नर-नारी अरु मर्द।।४




शासन से विनती करूँ,ढूँढें जिसका दोष।




घटना यह छोटी नहीं,लील गए निर्दोष।।५




यात्रा जो भी हैं करें,मन में यह विश्वास।




संकट न उनको कोई,प्रवीण चालक पास।।६




भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏


कुछ आवश्यक प्रश्न और इस छंद से संबंधित उत्तर

१.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?

उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
२. दोहा छंद किस प्रकार का छंद है ?
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।

३.दोहा लेखन का प्रारम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
 ३.दोहे छंद के विधान को लिखें ?
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।

४. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
५.दोहे के सम चरणों का अन्त किस प्रकार होना अनिवार्य है ?
उत्तर- दोहे के सम चरणों का अन्त समतुकांत व गुरु लघु (२ १)
पर होना अनिवार्य है।
६. दोहे के विषम चरणों के अन्त जगण शब्दों से नहीं होते हैं,जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय क्या है ?
उत्तर- जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय है लघु गुरु लघु (१ २ १)
यानि  एक मात्रा,दो मात्रा और १ मात्रा वाले शब्दों से विषम चरणों के प्रारम्भ नहीं होते,इसके अपवाद के रूप में कुछ दोहे हैं:-संत कबीरदास,तुलसीदास इत्यादि के।

७.मात्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्णों को उच्चारित करने में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं।
८.दोहा लेखन में कल-संयोजन क्या होता है ?

उत्तर- कल संयोजन से हमारा तात्पर्य है मात्राओं के संयोजन से।
९.कलों के कितने प्रकार होते हैं ?

उत्तर- कलों के कुल तीन प्रकार होते हैं :-
१.द्विकल- दो मात्राओं से बने शब्द या शब्दभाग।
उदाहरण-अब,जब,तब,का,गा इत्यादि।
द्विकल-१+१=२

२.त्रिकल-तीन मात्राओं के शब्द या शब्दभाग से मिलकर बने शब्द त्रिकल कहलाते हैं।
उदाहरण-राम, काम तथा गया इत्यादि।
३.- चौकल- 
इसी प्रकार चार मात्राओ के शब्द या सब्द भाग कोे चौकल कहते हैं।
जैसे- अजगर, अजीत, असगर, रदीफ, 

चौकल =1+1+1+1
           =1+1+2
           =2+1+1
           =1+2+1
           =2+2
प्रत्येक योग =4 मात्रा

१०. दोहे छंद के उल्टे छंद का नाम बताएं तथा विधान लिखें ?
उत्तर- दोहे छंद के उल्टे छंद का नाम सोरठा है। 
इसका विधान दोहा छंद के बिल्कुल विपरीत है।
 जहाँ दोहा छंद में विषम चरणों में १३-१३ मात्राएं तथा सम चरणों में ११-११ मात्राएं होती हैं,वहीं इस सोरठे छंद के विषम चरणों में ११-११ मात्राएं तथा सम चरणों में १३-१३ मात्राएं होती हैं।
इस छंद के विषम चरणों में एक गुरु और एक लघु होता है।
तीन लघु हो सकते हैं,पर गुरु लघु नहीं हो सकते हैं।
यदि सोरठा का आरंभ २१२ से हो तो सृजन मनहर हो जाता है।


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