Manav jeevan ka shaar:- jeevan mathni(मानव जीवन का सार:-जीवन मथनी)
Manav jeevan ka shaar
Manav jeevan ka shaar यही है कि जो यहाँ जितना अधिक jeevan roopi इस मथनी में मथा जा सका,उसे सफलता प्राप्त करने में उतनी अधिक सरलता हुई।
Jeevan yatra
Manav jeevan की यात्रा अनवरत चलती रहती है।
निरंतर यह यात्रा तब तक गतिमान रहती है जब तक
यह jeevan yatra अपने विराम की ओर प्रस्थान न कर जाय।
इस मृत्युलोक में यह अत्यंत ही विस्मय की बात है कि यहाँ सभी मरणशील हैं।
एक न एक दिन सभी को महायात्रा पर जाना ही है,परन्तु
सभी चाहते हैं कोई भी इस महायात्रा पर न जाए।
यहाँ बने,निभाए गए संबंध माता-पिता,भाई-बहन,पति-पत्नी इत्यादि के साथ मन इस प्रकार जुड़ जाता है कि कोई भी किसी का विछोह सहन नहीं कर सकता।
जीवन यात्रा एक अत्यंत गूढ़ रहस्य है जिसे कोई भी समझ नहीं सकता।
इस लोक के पश्चात जीव कहाँ जाता है,किस लोक में वास करता है।
पुनः इस मृत्युलोक में किस कारण जन्म लेता है यह अत्यंत ही गूढ़तम रहस्य है।
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Jeevan mathni नामक इस साधन में दो पहलू हैं या इस भाँति कह लें कि
चक्के हैं जिसमें ही Manav jeevan ka shaar निहित है।
Jeevan roopi iss mathni में मथे जाने से हमारा अभिप्राय जीवन में आने वाले उतार और चढ़ावों से है।
परेशानी और उसके हल ढूँढने से है। उस परम परमात्मा की एकमात्र सृष्टि यह manav jeevan ही है जिसने जीवन जीने की शैली का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है।
परमात्मा के संपूर्ण सृष्टि में मानव जाति ही एकमात्र ऐसा जीव है जो किसी बाधा से कभी भी घबराता नहीं,अपितु उन बाधाओं का डटकर सामना करता है और अपने विजयश्री का मार्ग प्रशस्त करता है।
Jeevan roopi iss mathni में मथे जाने से हमारा अभिप्राय जीवन में आने वाले उतार और चढ़ावों से है।
परेशानी और उसके हल ढूँढने से है। उस परम परमात्मा की एकमात्र सृष्टि यह manav jeevan ही है जिसने जीवन जीने की शैली का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है।
परमात्मा के संपूर्ण सृष्टि में मानव जाति ही एकमात्र ऐसा जीव है जो किसी बाधा से कभी भी घबराता नहीं,अपितु उन बाधाओं का डटकर सामना करता है और अपने विजयश्री का मार्ग प्रशस्त करता है।
Jeevan mathni में मथकर वही योग्य हो सकता है,जिसमें निम्नलिखित
विशेषताएं हों :-
- संघर्ष के लिए तत्परता तथा धैर्य।
- विफलताओं से सीख लेना।
- सदैव अनुसंधान करने के लिए तत्पर।
- परिश्रम को सर्वोपरि मानने वाला।
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Jeevan mathni मथकर ही मानव भविष्य के संघर्ष के लिए तैयार यहाँ
होता है,जो लोग यहाँ योग्य होते हैं उन्हें परिस्थिति के अनुकूल ढल
जाने में कोई समस्या नहीं होती।
इस jeevan mathni की मूल विशेषता यही है कि यह
अयोग्यों को भी विपरीत परिस्थिति में डालकर योग्य बना देती है।
सरलार्थों में कहा जाय तो डूबते-डूबते कोई तैरना सीख जाता है तो कोई
हारकर जीत।
मानव जीवन का सार यही है कि जो जितना अधिक इसके मथनी अर्थात् जीवन जीने
में आने वाले उतार-चढ़ावों का सामना करता है अर्थात् इसके मार्ग में
आने वाली विभिन्न बाधाओं का सामना कर आगे बढ़ता जाता है,वही इस
संसार में सफलता को प्राप्त कर सकता है।
मानव जीवन की प्राप्ति के विषय में ईश्वर ने भी यही कहा है
कि विभिन्न प्रकार के जीव रूप को जीव प्राप्त कर सकता है,
परन्तु यह मानव जीवन प्राप्त करना अति दुर्लभ है,
अतः इस जीवन का सार यही है कि जो इसकी संघर्षरूपी
मथनी में जितना अधिक पीसता है,वही परिशोधित होकर
एक उत्कृष्ट शिल्प के रूप में ढलता है,जिसे आम मानस एक
शुद्ध मानव,सफल मानव की परिभाषा देता है।
मानव जीवन संघर्षों की एक गाथा है जिसे पढ़ना,समझना अत्यंत सरल तो
नहीं,पर अभ्यास द्वारा मानव जीवन के सार को समझा जा सकता है,jeevan mathni में मानव आज से ही नहीं अपितु प्राचीन काल से पीस रहा है,ऐसा माना जाता
है कि यहाँ परमात्मा को भी इस मृत्युलोक में जन्म लेकर इसकी मथनी में
मथकर,तपकर अपनी श्रेष्ठता सत्यापित करनी पड़ी थी,तो हम आम जनमानस की क्या
सामर्थय है कि हम यहाँ न पीसें।
निष्कर्ष:- Manav jeevan ke shaar को मैंने भी यहाँ jeevan mathni अर्थात संघर्षों के प्रतिफल परीक्षा देकर समझा है। jeevan mathni से हमारा आशय है उस सामर्थय से जिसके कारण हमारा अस्तित्व है,अर्थात् जब तक हममें प्राण रूपी शक्ति विद्यमान है,तब तक ही हमारा अस्तित्व है।
इस दो धुरी वाली मथनी में लगी इस धुरी के दो पाट हैं संघर्ष और सफलता या विफलता।
परिश्रम जितना यहाँ किया जा सके लौह सम तपकर इस मथनी को जितना गतिमान रखा
जा सके उतना ही यह जीवन गतिशील है अनुभवपूर्ण हो पाता है।
जितना भी मैं इसे समझ पाया हूँ,नीचे अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत कर
रहा हूँ-
मथनी जीवन की चले, देखो कैसे यार।
कहीं सुहानी धूप तो,ठंडी कहीं बयार।।१
मानव पिसता जा रहा,गेहूँ बन तैयार।
तेज धार कटार नहीं,मृदु बोली हथियार।।२
तिनका-तिनका जोड़कर,विहग बनाते नीड़।
मानव पर देखो यहाँ,गृह तोड़े बन भीड़।।३
सीखें खग से हम सभी,सबसे करना प्रीत।
वैर भाव हम दें मिटा,अपना यह सुन्दर रीत।।४
मन को कलुषित दें खिला,भूलें बीती बात।
स्वागत नए प्रभात का,विस्मित कर अब रात।।५
सब कुछ संभव हो यहाँ,यत्न करो पुरज़ोर।
सफल यहाँ पर है वही,श्रम करे बिना शोर।।६
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
कुछ आवश्यक प्रश्न और इस छंद से संबंधित उत्तर
कुछ आवश्यक प्रश्न और इस छंद से संबंधित उत्तर
१.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?
उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
२. दोहा छंद किस प्रकार का छंद है ?
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।
३.दोहा लेखन का प्रारम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
३.दोहे छंद के विधान को लिखें ?
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।
४. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
५.दोहे के सम चरणों का अन्त किस प्रकार होना अनिवार्य है ?
उत्तर- दोहे के सम चरणों का अन्त समतुकांत व गुरु लघु (२ १)
पर होना अनिवार्य है।
६. दोहे के विषम चरणों के अन्त जगण शब्दों से नहीं होते हैं,जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय क्या है ?
उत्तर- जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय है लघु गुरु लघु (१ २ १)
यानि एक मात्रा,दो मात्रा और १ मात्रा वाले शब्दों से विषम चरणों के प्रारम्भ नहीं होते,इसके अपवाद के रूप में कुछ दोहे हैं:-संत कबीरदास,तुलसीदास इत्यादि के।
७.मात्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्णों को उच्चारित करने में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं।
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