भारत-भारती के अवतारक: मैथिली शरण गुप्त

 भारत-भारती: क्रांतिवीरों की अमर गाथा

भारत-भारती: माँ भारती के स्वतंत्रताकालीन पीड़ा का दर्शन

Bharat Bharti ke Avtarak:Maithili sharan gupt


"भारत-भारती" माँ भारती के स्वतंत्रताकालीन उस पीड़ा का दर्शन है जिसकी अवधारणा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर स्वतंत्रता काल में रखी गई थी। इस महाकाव्य का हृदयस्पर्शी वर्णन आर्यजाति के उत्थान और पतन की गाथा से प्रारम्भ होता है। गुप्त जी ने इसमें अत्यंत विचारणीय पंक्तियाँ लिखी हैं, जहाँ वे उल्लेख करते हैं कि जंगली जातियाँ हमसे विकास की यात्रा में और अधिक आगे निकल गई हैं।

भारत देश की तात्कालिक स्थिति का ऐसा अद्भुत वर्णन गुप्त जी ने किया है जिसे पढ़कर कोई भी भारतीयों की तात्कालिक स्थिति से परिचित हो सके।

Udant martand:Hindi patrakarita ki shristhi

साहित्य जगत के दिव्यतम नक्षत्र का अवतरण और उनकी साहित्य यात्रा

3 अगस्त 1886 को सेठ राम शरण गुप्त और काशी बाई गुप्त के आँगन में अवतरित इस दिव्यतम नक्षत्र ने बाल्यकाल से ही अपनी कुशाग्रता का परिचय दिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अपने गाँव चिरगाँव से ही हुई। हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषा में विशेष रुचि ने उन्हें इन भाषाओं में सृजन कर हर दिल अजीज़ बना दिया।
भारत की तात्कालिक स्थिति ने उनके कविहृदय को सृजन हेतु प्रेरित किया, जिसके फलस्वरूप "हिमालय की पीड़ा का दर्शन" ने "हिमाद्रि तुँग शृंग से" कविता की आधारशिला रखी। रामायण के पात्रों के साथ नूतन प्रयोग और विशेषकर "भारत-भारती" ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया।

मैथिली शरण गुप्त ने अपनी कविताओं के माध्यम से न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय जनमानस में एक नई चेतना और प्रेरणा का संचार भी किया। उनके कार्यों ने उन्हें हिंदी साहित्य के आकाश में एक दिव्यतम नक्षत्र बना दिया, जो सदैव चमकता रहेगा।

साहित्य जगत के भगीरथ मैथिली जिन्होंने भारत-भारती स्वरूपी गंगा को अवतरित किया

जिस प्रकार भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए कठिनतम तप कर माता गंगा को प्रसन्न किया था,उसी प्रकार आचार्य मैथिली शरण ने भारतीय जनमानस के परतंत्रता रूपी पापों का मोचन करने के लिए "भारत-भारती" का सृजन किया,इस महाकाव्य के सृजन में उन्हें कई युगपुरुषों ने मार्गदर्शन किया।
"भारत-भारती" में समुचित प्रसंगों के माध्यम से आचार्य प्रवर ने नीतिगत व राष्ट्रगत मूल्यों का महत्व संसार को बताया है। राजा सत्यव्रत के माध्यम से गुप्त जी ने यह प्रेरणा दी है कि एक आदर्श राजा अपने प्रजाजनों को कोई कष्ट नहीं पहुँचाना चाहता था।उन्होंने दर्शाया कि राजा नियमानुसार अपने राज्य में लगाए गए बाज़ार से विक्रय न होने की स्थिति में अविक्रित वस्तु चाहे वह उपयोगी हों या अनुपयोगी स्वयं ही खरीद लेता था।      इसके साथ ही अंशुमती नामक पतिव्रता की बीमारों की चिकित्सा व अपने पति की मन से सेवा इस बात को समझाती है कि एक आदर्श भारतीय नारी में क्या गुण होने चाहिए।उन्होंने इन प्रसंगों के माध्यम से समाज को उच्चतम नैतिक मूल्यों और आदर्शों की प्रेरणा दी है।

साकेत,पंचवटी से भारत-भारती तक का सफ़र

साकेत

साकेत में आचार्य प्रवर ने लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला के संताप को समझकर नारी की उस वेदना का दर्शन कराने का विलक्षण प्रयोग किया है ,जिसमें कर्तव्य बाध्यता के कारण नारी प्रायः अपने सुखों का त्याग कर देती है।
जब श्रीराम पितृआज्ञा से वनवास स्वीकारा तो लक्ष्मण जी ने भी माता-सीता के साथ अनुशरण करना विचारा।अब पत्नीव्रता उर्मिला भी पति के इच्छा के विरुद्ध कैसे जा सकती थीं। राष्ट्रकवि ने उसी पीड़ा का दर्शन महाकाव्य के माध्यम से कराया है।

पंचवटी
प्रस्तुत शीर्षक युक्त काव्य "पंचवटी" में पंचवटी निवास के समय श्रीराम और माता सीता के प्रति लक्ष्मण जी की अनन्य भक्ति और श्रीराम व माता सीता का जीवमात्र के प्रति प्रेम का अद्भुत दर्शन प्रस्तुत किया गया है। "पंचवटी" के माध्यम से आचार्य प्रवर ने जीवन मूल्यों और उच्चतम आदर्शों की स्थापना की प्रेरणा दी है।

जयद्रथ वध

विधि की प्रबलता के फलस्वरूप "महाभारत" के महाविनाशक युद्ध की आधारशिला रखी गयी।
केवल और केवल राजसिंहासन के मोह ने ऐसा विनाशक इतिहास रच डाला कि जिसकी आज भी नींदा की जाती है।
धर्मपक्ष से पाँचों पाण्डव सह श्रीकृष्ण और अधर्म पक्ष से दुर्योधन व उसके ९९ भाई-बंधु,गुरु,पितामह व अन्य सगे-संबंधियों के साथ इस युद्ध के महापात्र बने।
अधर्म पक्ष के कुछ योद्धाओं ने अधर्म द्वारा ही आवश्यकता पड़ने पर साथ निभाने के कारण उसी पक्ष से अपना बलिदान देने की बात स्वीकारी।युद्ध नियत था सबने इसे स्वीकारा। आचार्य प्रवर ने अधर्म पक्ष के एक योद्धा जयद्रथ की वरदानी शक्ति और उसके भयंकर अंत का अद्भुत वर्णन करते हुए समाज को यह प्रेरणा दी कि पापकर्म का बड़ा ही भयावह अंत होता है।
इसमें विशेष बात यह हुई थी कि पापकर्म का हेतु दुर्योधन राजसिंहासन का भोग कर भी नहीं पाया।

द्वापर: आचार्य प्रवर की अमूल्य कृति


आचार्य प्रवर की यह अनमोल कृति "द्वापर" युग में घटित घटनाओं का दर्शन है, जिसका प्रारंभ कविप्रवर ने यह कहकर किया है कि जो अधरों पर वंशी धरते हैं और हाथों में धनुर्बाण रखते हैं, उनमें मुझे उनका श्रीराम रूप ही भाता है।
अपने लघुकाव्य "श्रीकृष्ण" में कवि ने इस प्रकार लिखा है कि श्रीकृष्ण भी अपने शंख पाञ्चजन्य को श्रीराम का भजन करने को कहते हैं और वह अपनी भावपूर्ण मुरली बजाएंगे, जिन्हें सुनना हो वह सुन लें। साथ ही इसमें पाप-पुण्य को भूलकर उनके शरणागत होने का आह्वान श्रीकृष्ण द्वारा किया गया है।

राधा: "राधा" शीर्षक में श्रीकृष्ण के प्रति अटूट समर्पण का विलक्षण बिम्ब पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट करता है।
यशोदा: "यशोदा" शीर्षक में कवि ने माता यशोदा की नंदराज जी को पति रूप में, वृंदावन को गृह रूप में और श्रीकृष्ण को अपने बालक रूप में पाने की सम्पूर्ण संतुष्टि को दर्शाया है।

सारांश

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की सृजनशीलता में देशप्रेम, युवा-जागृति, प्रकृति के प्रति प्रेम, और राष्ट्र की स्वतंत्रता पूर्व की स्थिति का दर्शन होता है। शारदपुत्र कविवर मैथिली शरण गुप्त अपनी कृतियों के माध्यम से समाज के लगभग हर वर्ग को यथोचित जागृति की प्रेरणा देते हैं।

जहाँ "नर हो, न निराश करो मन को" कहकर आचार्य प्रवर ने युवाओं को मानव होने के कारण सफलता प्राप्ति के अन्तिम प्रयास तक करने को प्रेरित किया है, वहीं "हिमाद्रि तुंग शृंग" से पर्वतराज हिमालय को माध्यम बनाकर देशप्रेम के अद्भुत भाव दर्शाए हैं।

मैथिली शरण गुप्त की रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उन्होंने अपने पाठकों के मन में एक नई चेतना और प्रेरणा का संचार भी किया है। उनकी कृतियों ने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को छुआ है और उन्हें एक नई दिशा दी है।

निष्कर्ष 

आचार्य प्रवर मैथिली शरण गुप्त की रचनाएँ अत्यंत प्रेरणाप्रद हैं,इनकी रचनाओं को पढ़कर,विशेषकर भारत-भारती हमें भारतीय होने पर पुनः गर्व कराती है।इसे पढ़ लेने वाला भारतवर्ष के विश्वगुरु होने के कारणों को पूर्णतः समझ सकता है।

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

१.सखि वे मुझसे कहकर जाते किनकी रचना है ?
उत्तर-यह आचार्य प्रवर मैथिली शरण गुप्त की रचना है।

२.अपने किस महाकाव्य कृति के लिए आचार्य प्रवर को मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ तथा इस महाकाव्य के मुख्य पात्र व पात्रा कौन-कौन हैं ?
उत्तर-"साकेत" आदरणीय मैथिली शरण गुप्त जी की ऐसी महाकाव्य कृति है जिसके लिए इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ तथा यह विशेष रामायण के पात्र लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मीला के संताप का दर्शन कराती है।
३. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के किस पत्रिका में मैथिली शरण गुप्त जी की पहली खड़ी बोली की कविता छपी और उसका नाम क्या था ?
उत्तर- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की "सरस्वती" पत्रिका में "हेमंत" शीर्षक से मैथिली शरण गुप्त जी की पहली खड़ी बोली की कविता छपी थी।

४. विश्वराज्य कविता के कवि कौन हैं ?
उत्तर-विश्वराज्य कविता के कवि आचार्य मैथिली शरण गुप्त हैं।

५. मैथिली शरण गुप्त किस युग के कवि माने जाते हैं ?
उत्तर-वे द्विवेदी युग के कवि माने जाते हैं।
६. मैथिली शरण गुप्त की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर- उनकी मृत्यु १२ दिसम्बर १९६४ को हुई थी।

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