पुण्यात्मा विवेकानंद :नरेन्द्र से विवेकानंद तक की यात्रा
नरेन्द्र से विवेकानंद तक की यात्रा
१२ जनवरी १८६३ को कोलकाता में विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के घर में जन्मे पुण्यात्मा विवेकानंद एक ऐसे युगप्रवर्तक थे जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व में भारत की अपनी एक अलग पहचान रख दी। विवेकानंद सरीखों की सीख, उनके सदुपदेश व महान विचारधारा से केवल भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा h[है और होता ही रहेगा। पुण्यात्मा के पुण्यतिथि पर आज मिलकर उनके जीवन मूल्यों, आदर्शों व योगदान को स्मरण कर उनसे प्रेरित होकर राष्ट्र में एक सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रचार करना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
एक युवा जिसने भारत को दी पहचान
युवाओं के प्रेरणास्रोत विवेकानंद
भटके हुए युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्होंने उन्हें आत्मनिर्भरता की शिक्षा देते हुए कहा, "उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत।" उनके इस उपदेश ने लाखों युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया।
"उठो ,जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत।स्वामी विवेकानंद के इस कथन ने सम्पूर्ण भारतवर्ष में युवा जागृति की ऐसी क्रान्ति कर दी जिससे राष्ट्रहित व देशहित के अपने कर्तव्यों को भूले हुए युवा आत्मनिर्भर बनकर देश के उत्तरोत्तर विकास में सहायक सिद्ध हुए।
पिता का व्यवसाय व माता की भूमिका
नरेन्द्र का बचपन व उनकी विद्यालयी व महाविद्यालयी शिक्षा
परमतत्व की खोज व रामकृष्ण परमहंस से भेंट
युग प्रवर्तक विवेकानंद : जिन्होंने दी भारत को एक नयी पहचान
विश्व धर्म महासभा शिकागो १८९३ में भारत के इस प्रतिनिधि ने जब महासभा द्वारा विषयवस्तु पर बोलने के लिए केवल १ मिनट का समय पाया, तो वहाँ उपस्थित लोग यह सोचने-विचारने लगे कि इतने कम समय में कोई क्या और भला कैसे कह पाएगा? पर उस युवक ने जब शिकागो महासभा को "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों" कहकर संबोधित किया तो संपूर्ण महासभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठी। वहाँ उपस्थित सभी यह सोचने पर विवश हो गए कि जिस नवयुवक को वो कम आँक रहे थे, उसमें वास्तव में कुछ तो चमत्कारी था। इस प्रकार युवक नरेन्द्र ने स्वामी विवेकानंद बनकर भारत देश के गौरव को विश्व पटल पर स्थापित किया।संस्कृति, धर्म, योग, वेदांत व भारतीय विचारधारा के संपोषक स्वामी विवेकानंद
योग-वेदांत के प्रचार-प्रसारक, भारतीय संस्कृति व विचारधारा के ध्वजावाहक विवेकानंद ने सम्पूर्ण विश्व को भारतीय संस्कृति, संस्कार व आदर्शों का ज्ञान दिया। उन्होंने जगह-जगह यात्रा कर हमारे धार्मिक व आध्यात्मिक मान्यताओं से लोगों को परिचित कराकर भारत की विश्वपटल पर महानता को दर्शाया है।उन्होंने हमारे नैतिक मूल्यों व आदर्शों से सम्पूर्ण विश्व को परिचित कराकर हमारे उच्च संस्कारों को विश्व पटल पर स्थापित किया। शरीररूपी कोष को और अधिक विस्तारित करने के लिए योग का ज्ञान देकर उन्हें स्वास्थ्य के महत्व को बतलाया है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति, धर्म, योग, वेदांत और विचारधारा के महत्व को अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से विश्वभर में फैलाया और भारत की महानता को स्थापित किया।
समाज रूपी वृक्ष के खोखले जड़ों को दिया मजबूती
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए वह समाज में रहता है। समाज में रहने वाले मनुष्य का समाज से उसी प्रकार संबंध है जिस प्रकार एक मछली का तालाब से। पर अहंकार के अश्व पर आरोहित मनुष्य ने अपने नैतिक मूल्यों, आदर्शों व कर्तव्यों को भूला दिया है। जिस कारण मानव ने स्वयं को स्वयं का शत्रु बनाकर अपने साफ-सुथरे मस्तिष्क को जाति-पाति, रंग-भेद, छुआछूत जैसी बुराइयों को अपनाकर इस समाजरूपी वृक्ष के जड़ों को खोखला कर दिया है।
स्वामी विवेकानंद ने ऐसा विचारकर लोगों को इन बुराइयों से बचने का उपदेश देकर समझाया कि सभी मानव उस परमात्मा के ही संतान हैं, इसलिए उन्हें आपस में वैर नहीं, प्रेम का भाव रखना चाहिए। उनके इस उपदेश ने समाज के नैतिक और सामाजिक ताने-बाने को मजबूत किया और लोगों को अपने कर्तव्यों व आदर्शों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर किया गुरु के आदर्शों का विस्तार
भारतवंश के तूफ़ानी जलधाराओं ।।
राह कठिन हो या सरल हो।
पीने को यदि भी गरल हो।।
सामने फैला चाहे अनन्त छल हो।
याद रहे बस राष्ट्रधर्म ही सबल हो।।
टूट न पाये वो माँ भारती की स्वर्णिम इच्छाएं ।
सम्मुख हो अगर भी धधकते असंख्य ज्वालाएं ।।
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