बाल दिवस-बच्चों का प्यारा दिवस(Baal divas-Baccon ka pyaara divas)
जिस घर-परिवार में एक बाल-जीवन नहीं किलकारता,वहाँ सभी कुछ उपलब्ध होने के बाद
भी शून्य की ही अनुभूति होती है।जीव के शैश्वावस्था व बाल्यावस्था के दर्शन को सभी जीव लालायित रहते हैं,मानव कितनी भी परेशानी में हो,उसके नवजात की केवल एक किलकारी उसके सारी परेशानियों-पीड़ाओं को हर लेता है।
बच्चों का प्यारा दिवस-बाल दिवस
बच्चों को इस बाल दिवस का बेसब्री से इन्तजार रहता है।इसकी शुरुआत पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सर्वप्रथम अपने जन्म दिवस को इस दिवस के रूप में मनाकर की थी,उन्हें बच्चों से बहुत प्रेम था।
जीव के जीवन की सात अवस्थाएं
इस नश्वर संसार में मानव जन्म पुनः प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है,यदि मानव जीवन जीव प्राप्त करता है ,तो उसे इस जीवन के सात अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है,जिसमें बाल्यावस्था अत्यन्त महत्वपूर्ण अवस्था है,इसी अवस्था में जीव निष्पाप व निष्कलंक रहता है। जीव के निष्कलंक होने के कारण उसका जीवन के मूल्यों से परिचय करा पाने में सरलता होती है।
जीवन का स्वर्णिम काल बाल्यावस्था
यह वह अवस्था है जहाँ जीव जीवन का भरपूर आनन्द उठाता है,इस काल को जीव का खेल काल कहा जाता है,जहाँ जीव विभिन्न खेलों के माध्यम से जीवन के जटिल मूल्यों से परिचित होता है।यही वह काल है जहाँ जीव अनुशरण करना प्रारम्भ करता है।
इस काल को जीव के जीवन का स्वर्णिम काल इसलिए माना जाता है क्योंकि इस काल में जीवन की जटिलताओं से उसका परिचय नहीं होता है।जीवन की जटिलताओं से आशय समानता-असमानता,धर्म,रंग,रूप व जाति के आधार पर होने वाले मतभेदों से वह परिचित नहीं होता है,इसी अपरिचय के कारण ही जीव सहज स्वाभाव का होता है।
हमें आकर्षित करता है बालमन
इस संसार में ईश्वर के अवतार माने जानेवाले बच्चों में ऐसा अद्भुत आकर्षण होता है,जिसके संपर्क में आने से आप अपने मन व तन की समस्त व्यथा विस्मृत कर जाते हैं।
नागार्जुन ने भी एक नवजात को ध्यान में रखकर दंतुरित मुस्कान कविता लिखी थी।
इस कविता में कवि ने नवजात को ध्यान में रखकर अपने अद्भुत अनुभव को उस नवजात के साथ को हमसे साझा इस प्रकार किया है कि हम भी कवि के साथ उस अभुतपूर्व अनुभूति में विलीन हो जाते हैं।
बच्चों को अतिप्रिय है यह दिवस
इस दिवस की यदि बात की जाय तो यह बच्चों के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय है।
इस दिवस को मनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि बचपन को भी खिलखिलाने का अवसर दिया जाए,जिससे कि बचपन की अनुभूति कर आनंद उठाया जा सके।
इस दिवस को मनाकर बचपन की सुरक्षा करने का आज उपाय किया जा रहा है,आज बचपन कारखानों व जीवन यापन के लिए समुचित परिस्थितियों के निर्माण में जो व्यर्थ हो रहा है,उसी के बचाव के लिए इस दिवस पर सरकार के द्वारा कदम उठाए जाते हैं।
फिर से जीवंत उदाहरण रखे बचपन
आज बचपन माता की गोद की अपेक्षा मोबाइल के छाँव में पल रहा है,बच्चे माँ की लोरी की अपेक्षा इन्टाग्राम के रील देखना व राईम्स सुनना अधिक पसन्द कर रहे हैं,आज बालपन में ध्रुव की भाँति दृढ़ निश्चय,प्रह्लाद की भांति उच्च संस्कार का अभाव दर्शित हो रहा है।
बाल्यावस्था को पुनः संस्कारों से संपोषित व जीवंत उदाहरण रखने लायक बनाने के लिए श्रीरामचरित्र मानस के आदर्शों का पालन करना,बालक ध्रुव के दृढ़ निश्चय का पाठ पढ़ाने की आवश्यकता है।
बाल्यावस्था को संपोषित व संवर्धित करने के लिए उन्हें महापुरूषों की जीवनी व उनके आदर्शों से परिचित कराना होगा ।
बच्चों के संपोषण व संवर्धन के लिए मेरे द्वारा भी कुछ सार्थक प्रयास काव्य रूप में प्रस्तुत हैं :-आई देखो बाल दिवस आई।।
बच्चों के मन को है भाता।
हरओर उमंग है छाता।।
सूर्यदेव भी हर्षित से नभमण्डल में दिख हैं रहे।
बगिया में भी प्रसून असंख्य प्रफुल्लित से हो रहे।।
यह पर्व बाल मन को है खूब अधिक भाता।
हमसब को भी बालपन की याद है कराता।।
वैसै तो सब बच्चे खुश हैं दिखते।
पर कुछ बच्चे दिख जाते हैं रोते।।
बेचारों के मम्मी पापा जो न होते ।
आओ इन बच्चों को भी गले लगाएँ।
इनके मन को भी हर्षित कर जाएं।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
................................................................................................
आओ बच्चों खेलो खेल।
भागो बनकर तुम सब रेल।।
खेल-खेल में ये पढ़ो तुम।
गुल्ले क्यों दो में हुए गुम।।
शून्य जुड़े अंक जब कोई।
बता क्या अंक दशा होई।।
पढ़ो हिन्दी अपनी भाषा।
भारत की यही अभिलाषा।।
करो मात-पिता की सेवा।
धरती पर यही हैं देवा।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
...................................................................................
धीर धार अरु आगे बढ़ जा।
बीती भूल नया कुछ गढ़ जा।।
नहीं सरल है जीवन धारा।
लक्ष्य साध ही मिले किनारा।।१
धार बहुत वाणी की पैनी।
चोट करे जैसे हो छैनी।।
मृदु वचन हरदम ही बोलो।
तोलो जब भी मुँह तुम खोलो।।२
प्रखर धार प्रज्ञा की करने।
उपाय केवल मंथन मानें।।
बहे सृजन की अविरल धारा।
मिले हमें जब मात सहारा।।३
स्नेह धार बस बहे निरंतर।
मनुज मनुज में ना हो अंतर।।
तभी मिटेगा ये अँधियारा।
यहाँ प्रीत का जब उजियारा।।४
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
.............................................................................................
ना किसी से कभी ये लड़ते,बच्चे होते हैं सच्चे।
ढालो जैसा बनते वैसे,ये अजी घड़े हैं कच्चे।।
हल्ला-गुल्ला धूम-धड़ाका,करना है इनको भाए।
बात मनानी इनको हो तो,मुहल्ला सर पे उठाए।।
धूम धड़ाका इनका फण्डा,नहीं कुछ किसी से लेना।
खेल-खिलौने घोड़े-हाथी,पर अपने ना देना।।
कट्टी-मुट्टी पल में इनका,फौरन भी है मिल जाना।
नहीं कभी तुम पंगा लेना,बन भी जाते हैं नाना।।
खेल-खेल में सबकुछ सीखें,कुशाग्र मस्तिष्क पाया है।
घर में जिसके होते हैं ये,खुशियाँ हरदम छाया है।।
गोद उठाओ गले लगाओ,पास कभी जब ये आएं।
बात तोतली जब करते हैं,मन भर आनन्द से जाए।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
..........................................................................................
नहीं होता है तबतलक सवेरा ।
धरे मोबाईल जबतलक न इन्सान ।।
रात से दिन तक जब तक न थकले।
मोबाईल पकड़ा रहता है इन्सान ।।
छुप-छूपाकर वॉट्सऐप खोले।
मैशेज देख ही कुछ भी बोले।।
पहले मोबाईल को खोले सुबह-शाम।
तब ही कर सके कोई भी दूजा काम।।
मिल जाए कोई त्योहार या छुट्टी ।
चाहे दुनिया से ही हो जाय कुट्टी ।।
मैशेज टपक रहे हैं हर पल तड़-तड़।
मानो बह रही हो झरना कल-कल।।
सर पे परीक्षा का फूटने को चाहे ही हो बम।
पर वाट्सएप ग्रुप में दिखना है हरपल हरदम।।
माता-पिता हैं खूब हरदम गुस्साते।
परीक्षा के भय से प्रतिदिन खूब डराते ।।
नेत्रज्योति चाहे होता जाय हरपल गौण।
सोशल मीडिया पर रहना ही है औण।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
......................................................................................
बाल दीपावली
........................
चुन्नी एक राॅकेट लायी,
बम ले आया है चुन्नू।
पिंकी,पूछ रही है सबसे,
कहाँ रह गया है मुन्नू ।
मिलकर ढूँढ रहे हैं बच्चे,
पर आज मौज में बुन्नू।
डिंकी,चिंकी ,रोजा, रीनू,
माचिस ले भागा सीनू।
मिठाई खा गया सब भोलू,
रो-रो ये कहता मोलू।।
बकरी ले भागी जब चकरी,
सिन्टु उसके पीछे भागा।
भारत भूषण पाठक"देवांश"🙏🌹🙏
...............................................................................................
एक था जंगल .
.................................
एक था जंगल ।
था चल रहा जहाँ दंगल।।
हाथी सारे जज बने थे।
बंदर बना हुआ था पहलवान ।।
होने को थी ही दंगल की अब शुरुआत ।
इतने में ही आ गयी वहाँ पर शेर की बारात।।
आते ही वह जोर से लगा दहाड़ने।
हाथी भी था यह देख चिंघाड़ने ।।
अब लग रहा था यह दंगल लड़ेंगे सारे हाथी ।
और प्रतिद्वंद्वीं होंगे सारे शेर के बाराती ।।
इतने में ही आ गयी कहीं से एक लोमड़ी वहाँ पर।
आते ही वह शेर से बोली दुल्हे राजा कर दो थोड़ी दया इन पर।।
दुल्हा राजा जोर से बोला अब दया -क्षमा कुछ न होगा ।
अब तो दंगल यह हर हाल में होगा और बाद में कुछ होगा ।।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न १ :- बाल दिवस किसके जन्म दिवसके उपलक्ष्य में मनाया जाता है ?
उत्तर- इसे पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
प्रश्न २ :- बाल दिवस मनाने की शुरुआत भारत में कब हुई ?
उत्तर- इसकी शुरुआत पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद 1954 ई० में उनकी स्मृति के रूप में उनके जन्म दिवस को मनाकर की गयी।
प्रश्न ३ :- पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा का नाम क्या था ?
उत्तर-पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा का नाम गंगाधर नेहरू था।
प्रश्न ४ :- विश्व बाल दिवस २०२२ की थीम क्या है ?
उत्तर-विश्व बाल दिवस २०२२ की थीम इंक्ल्यूजन,फॉर एव्री चिल्ड्रेन,बच्चों के समग्र विकास की पहल है।
प्रश्न ५ :- अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर- अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस १ जून को मनाया जाता है।
प्रश्न ६ :- बाल दिवस मनाने के पीछे क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-इस उत्सव का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों और वैश्विक स्तर पर उनके सामने आने वाली चुनौतियों, जैसे गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और बाल श्रम तक पहुंच की कमी के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
Share
Whatsapp ,facebook,Instagram,Twitter,Linkedin
Telegram,Youtube,Pinterest
Quora,Quora own group
#katha#kahaani#chhand#karuna ras#deepawali#दीपोत्सव#बाल दिवस#छंद#कविता
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया कोई अनावश्यक लिंक कमेंट बॉक्स में न रखें।