जैव ईंधन के संरक्षण के लिए विशेष दिवस का प्रारम्भ
दादाजी:-हमारी अनिवार्य आवश्यकताओं ने जैव ईंधन को ढूँढ निकाला क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न प्रकार के ईंधनों की समस्या के कारण भोजनालय से कार्यालय तक का सफ़र अवरुद्ध होता जा रहा था, गंतव्य व उदर सन्तुष्टि की परिसीमा में प्रविष्ट होने के लिए एक ऐसे विशिष्ट विकल्प की आवश्यकता पड़ रही थी,जो विभिन्न प्रकार के अनिवार्य कार्यों को कर पाने में सहायक हो।
अत्यन्त लाभकारी इस ईंधन को जब हमने ढूँढ लिया तो हमारे द्वारा इसके अंधाधुंध प्रयोग ने इसकी प्रचुरता को घटाना प्रारम्भ कर दिया,तब इसकी प्रचुरता को बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण विश्व ने इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए १० अगस्त को विश्व जैव ईंधन दिवस के रूप में मनाने के बारे में विचार किया गया। १० अगस्त को ही इस दिवस के रूप में मनाने की परम्परा १९९३ ई०से की गयी,विद्वानों के मतानुसार इसी तीथि और ई० को जर्मन आविष्कारक रुडोल्फ डीजल ने डीजल इंजन को चलाया था।
अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ढूँढे गए जैव अपशिष्टों से निर्मित ईंधन
शिक्षक :- मनुष्य की अनिवार्य आवश्यकताओं ने उसे एक उचित जीवन विकल्प को ढूँढने पर विवश कर दिया,जिसके फलस्वरूप जैव अपशिष्टों से निर्मित ईंधन ढूँढे गए।वाच्य अन्य विद्यार्थियों की भाँति ही इस विषयवस्तु पर कक्षा में परिचर्चा को सुन रहा था,इस परिचर्चा को सुनते समय इस विषय वस्तु पर अपना अधिकार सुनिश्चित करने के लिए अर्थात इस विषयवस्तु से सम्बन्धित जिज्ञासा को शान्त करने के लिए वह विद्यालय अवकाश के पश्चात जब अपने घर पहुँचा तो ,कपड़े बदलते-बदलते उत्साहित होकर अपने जिज्ञासा को शान्त करने के लिए अपने दादाजी के कमरे में पहुँच गया।
जीव अवशेषों से बने ईंधन के निर्माण की गाथा
वाच्य विद्यालय से आने के पश्चात अपने दादाजी के कमरे में इन ईंधनों के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त करने जब पहुँचा,तब उसके दादाजी कोई पत्रिका पढ़ रहे थे,वाच्य ने पत्रिका के आवरण पृष्ठ को देखकर पता लगा लिया कि उसके दादाजी "विज्ञान प्रगति"नामक पत्रिका का बड़ी ही चाव से अध्ययन कर रहे थे।
उन्हें अध्ययन करता देख वाच्य वहीं पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
थोड़ी ही देर बाद जब दादाजी की दृष्टि उस ओर गयी,तो वाच्य को देखते ही उसे वो जीव अवशेषों से बने ईंधन की गाथा सुनाने लगते हैं।
दादाजी द्वारा जीव अवशेष युक्त ईंधनों के बारे में वाच्य को महत्वपूर्ण जानकारी
दादाजी :- वाच्य क्या तुम्हें पता है कि ये जीव अवशेष रूपी ईंधन क्या होते हैं तथा इनका निर्माण कैसे होता है ?
कितने दिनों में इनका निर्माण होता है ?क्या इन्हें पुनः निर्मित किया जा सकता है ?
केवल प्रश्नों को सुनकर वाच्य जब उदास होकर वहाँ से जाने लगा तो उसके दादाजी ने उसे पुनः बुलाकर अपने पास बिठाया और जीव अवशेषों से बने ईंधनों की गाथा प्रारम्भ कर दी...
दादाजी :- इनके नाम से ही हमें इनका परिचय प्राप्त हो जाता है,हाँ तुमने, बिल्कुल ठीक ही समझा कि ये ऐसे ईंधन हैं जिनका निर्माण जीवों के अवशेषों अर्थात मरे हुए,सड़े-गले जीवों के अवशेषों से होता है।
क्या तुम्हें पता है इनके निर्माण में अरबों-खरबों वर्ष लग जाते हैं ।
कालांतर में जब किसी कारण वश इस धरती पर महाप्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हुई,तो वसुँधरा ने समस्त चराचर को स्वयं में समाहित करना प्रारम्भ कर दिया,जिसका परिणाम यह हुआ कि समस्त चराचर इसके अन्दर के अति उच्च ताप को अरबों-खरबों वर्षों तक सहन न करने के कारण भीतर सड़ना-गलना प्रारम्भ कर एक शैल के रूप में परिवर्तित हो गए,इसी प्रकार जीव अवशेषों से बने ईंधन का निर्माण हुआ।
वाच्य :-दादाजी से इतनी गहनतम जानकारी पाकर वाच्य चहक उठा और बोलने लगा कि,अच्छा! इसी प्रकार इन जीव अवशेषों से बने ईंधन का निर्माण हुआ।
पर दादाजी यदि ये कभी समाप्त हो गए तो क्या इनका पुनः निर्माण किया जा सकता है। साथ ही मुझे ये भी बताएँ कि क्या इन ईंधनों के निर्माणों के आधार पर इनके क्या कुछ अलग-अलग नाम भी हैं ?
दादाजी :-दादाजी अपने पोते वाच्य की विषयवस्तु पर अधिक जिज्ञासा को जान अत्यन्त प्रसन्न हुए और उसकी जिज्ञासा को शान्त करने के बारे में उससे पुनःकहने लगे,तुम्हारे प्रश्न अति प्रशंसनीय हैं वाच्य!
वाच्य :- धन्यवाद दादाजी !
नवीकरणीय व अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन
दादाजी :- दादाजी ने पुनः वाच्य को बताया कि बेटे! ये जीव अवशेषों से बने ईंधन अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन कहे जाते हैं और इनका पुनर्निर्माण सम्भव नहीं और यदि कहीं ऐसा होता है तो इनके निर्माण में अरबों-खरबों वर्ष पुनः लग जाएंगे,पुनः जीव-जगत को पृथ्वी के भीतर जाकर सड़ना-गलना होगा तब जाकर इनका निर्माण सम्भव हो पाएगा,पर इनका पुनः उपभोग करने के लिए हमलोग सम्भवतः नहीं बचेंगे।इन अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन के उदाहरण हैं :-पेट्रोल,कोयला,रसोई गैस इत्यादि।
जबकि नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन वैसे ऊर्जा संसाधन हैं जिनका पुनर्निर्माण सम्भव है,जिसे हम मानवों ने बनाया है ,पर इनके निर्माण के लिए बहुत अधिक सीमा तक ये अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन ही निर्भर हैं।नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं :-पनबिजली,सौर ऊर्जा,पानी इत्यादि।
परन्तु इन ऊर्जा संसाधनों को भी तैयार करने में इन्हीं जीव अवशेष ईंधनों की ही आवश्यकता पड़ती है।
वाच्य :- दादाजी इसका मतलब यह हुआ कि यदि हम इन नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का यदि बुद्धिमत्ता से प्रयोग नहीं करेंगे और इनका बारंबार दोहन अर्थात अतिशय उपभोग करते जाएंगे,तो यह भी एक सीमा के बाद अवश्य ही समाप्त हो जाएंगे और हम इनका निर्माण नहीं कर पाएंगे।
दादाजी :- तुमने बिल्कुल ठीक समझा,पर तुम्हारी जानकारी को बढ़ाने के लिए यह भी जान लो कि जीवाश्म ईंधन व जैव ईंधन की परिभाषाओं में कुछ अन्तर है:-
जैव ईंधनों को पुनः तैयार किया जा सकता है,पर जीवाश्म ईंधनों के निर्माण में अरबों-खरबों वर्ष लग जाते हैं।
जैव ईंधनों को नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है क्योंकि इसे हम सड़े-गड़े पदार्थों, जैव अपशिष्टों इत्यादि से अधिक मात्रा में प्राप्त कर सकते हैं।
जैव अपशिष्ट ईंधनों की पीढ़ियाँ
जैव अपशिष्ट ईंधनों को उनके प्रयोग व गुणवत्ता के आधार पर तीन पीढ़ियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-
(i) जैव निर्मित ईंधनों की प्राथमिक पीढ़ियाँ
दादाजी :-वैसे ईंधन जिनका निर्माण जैवशराब,बायोडीजल, वनस्पति तेल,शर्करा,मण्ड,बायोईथर,पशु चर्बी के परंपरागत तरीके से प्रयोग कर किया जाता है,जैव निर्मित ईंधनों की प्राथमिक पीढ़ियाँ हैं।
जैव निर्मित ईंधनों की द्वितीयक पीढ़ियाँ
दादाजी ने पुनः वाच्य से बताया कि इस प्रकार के ईंधन को वैसे फसलों से बनाया जाता है,जो खाए नहीं जाते। इनमें सेल्युलोसिक जैव ईंधन और बायोमास अर्थात(गेहूँ और मक्के के डण्ठल,लकड़ी,नालों से निकले सड़े-गले पानी इत्यादि सम्मिलीत हैं।
जैव निर्मित ईंधनों की तृतीयक पीढ़ियाँ
वाच्य :-इन ईंधनों का निर्माण सूक्ष्मजीवों जैसे फफूँदी से हुआ है न दादाजी,क्या मैं सही कह रहा हूँ न!
दादाजी :-जैव निर्मित ईंधनों में बायोडीजल आज आधुनिक जीवन विकल्प बन गया है,जिसका निर्माण जेट्रोपा और करंजना इत्यादि वनस्पतियों से होता है।
बायोडीजल के प्रयोग से होने वाले लाभ व इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-
(i) इसके प्रयोग से वाहनों से निकलने वाला धुआँ की मात्रा कम हो जाती है,इसके इसी विशेषता के कारण यह पर्यावरण मित्र माना जाता है।
(ii) नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से निर्मित होने के कारण इसका पुनर्निर्माण संभव है।
(iii) वाहनों के ईंजनों को यह पेट्रोडीजल की अपेक्षा अधिक स्वस्थ रखता है।
(iv) इसमें विशिष्ट चिकनापन होने के कारण यह अतिशय उपयोग किया जाता है।
(v) इसके रख-रखाव में भी हमें सुविधा इसलिए होती है क्योंकि यह जैविक अपघट्यों से बना होता है।
(vi) भारत में ही इसके निर्माण से हम आत्मनिर्भर हो गए हैं।
दादाजी से जैव ईंधनों के विषय में महतावपूर्ण जानकारी प्राप्त कर वाच्य चहक उठता है।
नोट:-पाठकगण भी इसी विषयवस्तु पर अपने विचार,उचित जानकारी जो मुझसे छूट गयी हो यहाँ टिप्पणी पेटिका में अवश्य साझा करें।
कुछ आवश्यक प्रश्न
१. विश्व जैव ईंधन दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर-विश्व जैव ईंधन दिवस प्रत्येक वर्ष १० अगस्त को मनाया जाता है। इसे जर्मन वैज्ञानिक रुडोल्फ डीजल की स्मृति में मनाया जाता है।
२.किसी भी विशेष तीथि या दिवस को मनाने के पीछे क्या कारण होता है ?
उत्तर-किसी भी विशेष तीथि या दिवस को मनाने के पीछे उस तीथि के पीछे हमारी स्मृतियां निहीत होती हैं,इन्हें मनाने के पीछे एक यह कारण भी होता है कि कुछ संसाधनों से संबंधित तीथियां उनके संरक्षण के लिए लोगों को जागृत करने के लिए मनाया जाता है।
३.विश्व जैव ईंधन दिवस को मनाना किस ईस्वी में प्रारम्भ किया गया था ?
उत्तर- विश्व जैव ईंधन दिवस को सन् १९९३ ई०में पहली बार मनाया गया था।
४.क्या जैव ईंधन व जीवाश्म ईंधन के बीच कोई अन्तर होता है ?
उत्तर-जी दोनों में काफी अन्तर होताहै,एक मृत जीवों के अवशेष से निर्मित होता है तो दूसरा जैविक कचरों से।
५.संवाद लेखन से क्या समझते हैं ?
उत्तर-दो या दो से अधिक लोगों के बीच किसी गहनतम या साधारण विषयवस्तु पर विचार-विमर्श करने के लिए हुई वार्तालाप से संवाद उत्पन्न होता है और इसके लिखित शैली को संवाद लेखन कहा जाता है।
६.क्या संवाद लेखन साहित्य के विधाओं में स्वीकार्य है ?
उत्तर-नहीं मेरे दृष्टिकोण से यह साहित्यिक विधाओं में तो सम्मिलीत नहीं किया जा सकता,पर व्याकरण के क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है।
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धन्यवाद सर जी
जवाब देंहटाएंहृदय तल से स्वागत है श्रीमान् 🙏🌹🙏
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