प्रबल चाह जो होगी कुछ रचोगे
प्रबल चाह :-तीव्र इच्छा सृजन की
किसी भी कार्य को सफलता से पूर्ण करने के लिएमन में उस कार्य को करने की प्रबल चाह होनी चाहिए।सृष्टि का निर्माण तभी हो पाया जब इसकी अनिवार्यता,हेतु का अनुमान किया गया।
Avismaraniya smrityaan dadaji-dadiji ki
इस तथ्य को आदिमानव की भोजन प्राप्ति की कथा और अधिक स्पष्ट करती है,जिसके अनुसार उसे भोजन की प्राप्ति की तीव्र प्रबलता अर्थात भूख की अनुभूति हुई।
मनुष्य की महत्वाकांक्षा की पूर्ति तीव्र इच्छा से होती है
मनुष्य एक महत्वाकांक्षी प्राणी है ,परन्तु अपने महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए उसमें उसकी प्राप्ति के लिए तीव्र इच्छा होनी आवश्यक है।
व्यक्ति अपने भोजन का प्रबन्ध तब तक नहीं कर सकता जब तक उसमें भूख अर्थात भोजन की इच्छा न हो।
व्यक्ति अपने भोजन का प्रबंध तब। तक नहीं कर सकता जब तक उसमें भूख अर्थात भोजन की इच्छा न हो।इस तथ्य को आदिमानव की भोजन प्राप्ति की कथा और अधिक स्पष्ट करती है,जिसके अनुसार उसे भोजन की प्राप्ति की तीव्र प्रबलता अर्थात भूख की अनुभूति हुई।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं
मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने भाग्य की रचना स्वयं करता है,इसके लिए उसे अपने भाग्य निर्माण,अपनी सफलता-असफलता का निर्धारण स्वयं करते समय एक अनिवार्य तत्व की आवश्यकता होती है,वह है :-तीव्र इच्छा,अभीष्ट प्राप्ति की आतुरता,अभीष्ट प्राप्ति की कामना इत्यादि।
वह अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए यथासंभव प्रयत्न तब तक करता है जब तक उसे वह प्राप्त न हो जाय।
वह व्यक्ति जो निराशा में भी आशा ढूँढ ले वही महामानव है
व्यक्ति की यही विशेषता सबको आकर्षित कर सकती है कि वह भयंकर निराशा में भी आशा की किरण ढूँढ ले,पर इस विशेष कार्य को संपन्न करने के लिए व्यक्ति में तीव्र इच्छा शक्ति की होनी आवश्यक है।
घर में बेकार बैठे रहने वाला मानव अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता जब तक वह उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न न करे,उसे उसकी अनिवार्यता न समझ आ जाए।
इस तीव्र इच्छा के साथ उसमें अभीष्ट प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है क्योंकि कोई भी व्यक्ति पर्वत के विशाल चोटी पर केवल वहाँ पहुँचने की चाह भर से नहीं पहुँच सकता,उसे वहाँ पहुँचने के लिए मन में इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति रखनी होगी,साथ ही उसे स्वयं पर यह विश्वास भी करना होगा कि वह यह अवश्यमेव कर भी सकता है।
श्रेष्ठतम व समाज हितैषी सृजन (लेखन) के लिए स्वयं पर विश्वास होना आवश्यक
एक साहित्यकार वह व्यक्ति होता है जो सामान्य व्यक्ति से
विशेष होता है,उसकी विषयवस्तु को देखने-समझने का दृष्टिकोण सामान्य मानव से विशेष होता है,इसी विशिष्टता के कारण वह विषयवस्तु को इस भांति लेखनीबद्ध कर पाता है कि वह पाठकों के हृदय प्रकोष्ठ में समा सके,कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गौरी के वध में सहायता हेतु क्या लाजवाब दोहे कहे थे,जिससे सुनते ही बिल्कुल सटीक निशाना पृथ्वी राज चौहान लगा पाए,इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रेष्ठतम सृजन के लिए स्वयं पर विश्वास होना आवश्यक है।यदि चंदबरदाई जी को अपने आप पर पूर्ण विश्वास ना होता तो वह कभी भी ऐसी चमत्कारिक पंक्तियों का सृजन नहीं कर पाते।
निष्कर्ष :-सज्जनों! तीव्र इच्छा जब होती है तब ही हम कुछ रचते हैं।
कुछ भी सीखने-गढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हममें उसे करने की इच्छा होगी,तभी हम वैसा करेंगे।
यक्ष प्रश्न की तरह ही ये है कि कोई केवल शब्दों को संयोजित कर ही कुछ कैसे रच-गढ़ देता है उसके पीछे बस एक ही तर्क काम करती है कि उस चीज को करने की आपमें तीव्र इच्छा होती है,क्योंकि प्रबलता सभी सबलता की जननी है।
आइए आज इसी प्रबल इच्छा के अनुरुप हम सुमेरु छंद लेखन करने का प्रयत्न करें।
सुमेरु छंद विधान:-छंद -इसके प्रत्येक चरण में 12+7=19 अथवा 10+9=19 मात्राएँ होती हैं ; 12,7 अथवा 10,9 पर यति होतो है ; इसके आदि में लघु 1 आता है जबकि अंत में 221,212,121,222 वर्जित हैं तथा 1,8,15 वीं मात्रा लघु 1 होती है ।
स्वरचित उदाहरण:-
गायन तर्ज-मुहब्बत तब तिज़ारत बन गई है...
दिखे सूरज गगन जब,तब उजाला।
करो कर्म तुम अपना, जप न माला।।
धरोगे धीर तो ही, सफल होगे।
प्रबल चाह जो होगी,कुछ रचोगे।।१
नवल इतिहास जब भी,अब गढेंगे।
लगन से सदा आगे, सब बढ़ेंगे।।
नहीं वैर पालेंगे, कभी मन में।
खिलेगी कलि प्रेम की,अब चमन में।।२
भारत भूषण पाठक 'देवांश'🙏🌹🙏
१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?
उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।
इससे काव्य में गेयता आ जाती है।
२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?
उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !
३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?
उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।
४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?
उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।
साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।
५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?
उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।
६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?
उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।
#राधेश्यामी छंद#पंचचामर छंद#विधाता छंद#जयकरी छंद#चंडिका छंद#मदलेखा छंद#मनमोहन छंद#चामर छंद#सुमेरू छंद#श्येनिका छंद
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया कोई अनावश्यक लिंक कमेंट बॉक्स में न रखें।