भीड़ वाली ट्रेन:-जमघटी ट्रेनों की अद्भुत गाथा काव्य रूप में

भीड़ वाली ट्रेन क्या कोई विशेष ट्रेन है  ?

भीड़ वाली ट्रेन एक सामान्य  ट्रेन ही है मगर इसमें विभिन्न धर्म-सम्प्रदाय,जाति,रंग-रूप इत्यादि के सम्मेलन होते हैं।

  इसी सम्मिलीत रूप को भीड़ और इनके भार को वहन     करने वाले यातायात के साधन को विद्वान लोगों द्वारा   लौहपथगामिनी,रेल इत्यादि की संज्ञा दी जाती है।

  यह एक ऐसी ट्रेन है जहाँ भेदभाव नहीं परस्पर सौहार्द     का उद्भव होता है।

Bhhid waali train :-jamagati train ki adbhut gatha kavyaroop main



Rangamanch hai ye duniya:-ek abhinaymanch bdi hai. 

 जमघटी ट्रेन में चुनावी सरगर्मी

इस जमघटी ट्रेन अर्थात लौहपथगामिनी की एक ओर विशेषता यह है कि यहाँ उपस्थित प्रत्येक जन इसके डिब्बे
में अपना स्थान इस भांति सुनिश्चित करने में लगे रहते हैं कि यहाँ उपस्थित जमघट यात्री कम चुनाव प्रत्याशी अधिक प्रतीत होते हैं,तभी तो अमुक स्थान हमारे हैं के
 स्वर मुझे ही वोट दें से प्रतीत होते हैं।
   जिस प्रकार चुनाव काल में इ०वी०एम० अथवा बैलट     बॉक्स की दावेदारी प्रस्तुत की जाती है,साम-दाम,दण्ड- भेद की नीति अपनायी जाती है,उसी भांति के दर्शन।      इस घनघोर जमघट में हो जाना अत्यन्त स्वभाविक बात  ही है।

अनुभवी पोथे का वाचन किसी बंधु के पाँव तले आपके दबे पाँव की पीड़ा को कम करने में सहायक

इस जमघटी ट्रेन की यात्रा के अपने ही आनंद हैं,कहीं जि़ंदगी के दौड़ में आगे निकलने के लिए प्रयासरत लोग 
दिखते हैं,तो कहीं सफलता पूर्वक इस पायदान पर प्रथम कदम रखने वाले लोगों का दर्शन इस प्रकार की यात्राओं के आनन्द को दुगुना कर देते हैं क्योंकि इनके अनुभवी पोथी के खुले पन्नों का वाचन  किसी बंधु के  पाँव
 तले आपके दबे पाँव की पीड़ा को कम करने में आपकी सहायता करते हैं।

प्रेमी जोड़ों की भांति प्रणय निवेदन करती जमघटी ट्रेनों के सीटों की प्राप्ति अमृत प्राप्ति समान

जमघटी ट्रेनों में भले ही साँस लेने की जगह न हो,सुलभता से भरे पेट साफी आलयों में ही क्यों ना डेरा
डालना पड़े,उस बदहवाश कर देने वाले आत्मबल घोंटू,प्राणघाती सुगंधों के बीच में यदि केवल गरदन को उस आलय से क्षणभर के लिए ही सही बाहर झाँकने का सुअवसर मिल भर जाए,तो आनंद की परिसीमा और अधिक विस्तारित हो जाती है।
   जब उस अपार कष्ट के बीच ही किसी प्रेमी के प्रणय निवेदन की भाँति ही जमघटी ट्रेनों की सीटें जब पुकारने लगती हैं,तो अमृत प्राप्ति की सी ही अनुभूति होती है।
  यह स्वभाविक ही है जब घोर नरक से किसी को स्वर्ग में   क्षण भर के लिए भी यदि  ले ही जाया जाए,तो उसे क्षणिक आनंद की अनुभूति अवश्य ही होती है।

जमघटी ट्रेनों की यात्राएँ बलवर्धन के अचूक उपाय
कालांतर में विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायाम व योगासनों द्वारा इस नश्वर शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाया जाता था और आज भी इस प्रकार के उपायों का प्रयोग इस हेतु हो ही रहा है।
 परन्तु आधुनिकता वाले इस संसार में मानव योगासनों अथवा शारीरिक व्यायामों की सामान्य विधि के स्थान  पर योग करने की आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग एक विशिष्ट योग तकनीकी उपलब्ध संस्थान जिसे जिम कहा जाता है में करके शरीर के बलवर्धन हेतु किया करता है।
  परन्तु इन बुद्धिजीवियों को यह ज्ञात होना चाहिए कि अपने  शरीर के बलवर्धन हेतु जमघटी ट्रेनों की यात्राएँ भी एक विकल्प के रूप में रखा जा सकता है क्योंकि इस प्रकार की यात्रा में मनुष्य मूँगफली,मकई के भूँजे व झालमुड़ी,पानी बेचने वालों के धक्के-मुक्के बैठने के स्थान उपलब्ध न होने के कारण लटकते हुए खाते-खाते बिना किसी योगासनों के ऐसे ही लंबा हो जाया करता है।
   भीरु से भीरु प्रवृति का व्यक्ति भी अपने दबे पाँव व सौ के गिरे नोट को उठाने के लिए वीर पुरुषों की श्रेणी में अवश्यमेव सम्मिलीत हो ही जाता है।
युगपुरुष हास्य कवि आ० प्रदीप चौबे जी की भारतीय रेल की जनरल बोगी की यात्रा वाली कविता अक्षरशः सत्य करती हैं ये जमघटी ट्रेन।
अपने भी अनुभव से मैं आपको बताता हूँ कि इन्हीं यात्राओं से मुझ जैसा भीत प्रवृति का व्यक्ति भी निडर बन पाया है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जब स्वयं पर कुछ बीते तो व्यक्ति की समझदारी और अधिक फुदकने लगती है,भीत हृदय भी ज्वार युक्त सिंधु की भाँति उफान मारने ही लगता है,आइए कैसे आपको बताता हूँ :-
बात उन दिनों की है जब मैं युवावस्था की ओर अग्रसर था,कॉलेज के उन दिनों में एक बार इस विशिष्ट ट्रेन यानि लौहपथगामिनी,सरलार्थों में रेलगाड़ी की यात्रा का परम सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ :-
जमघटी ट्रेन जब आकर स्टेशन पर रुकी तो बड़ा ही भयभीत था मैं,पर उसका एक डिब्बा मेरा इस प्रकार स्वागत कर रही थी मानो कह रही हों,आइए श्रीमान आपकी ही प्रतीक्षा थी।बस फिर क्या था आव देखा न ताव।मैं भी उस पर सवार हो गया,पर अन्दर पहुँचकर दो कदम बढ़ने पर ही प्रतीत हुआ मानो ये बाह्य स्वागत तो आडंबर मात्र था।आगे की स्थिति के रूप में मेरी सम्पूर्ण यात्रा लटके हुए स्थिति में बलवर्धन और हवाई तोप यानि दबे पाँव को बचाने के जद्दोजहद में जमघट में बातों को दागते हुए बीत गयी।

निष्कर्ष :- जमघटी ट्रेनों के लाभ व हानि को दर्शाने के लिए लिखा हुआ यह व्यंग्य आलेखयुक्त हास्य काव्य केवल और केवल मनोरंजन के दृष्टिकोण से मेरे द्वारा रचित है जो किसी भी प्रकार के उपचार की पुष्टि नहीं करती है,केवल इससे व्यंग्य व हास्य की ही तुष्टि संभव है।

 आइए इस जमघटी ट्रेन का दर्शन आपको मनहरण घनाक्षरी छंद में कराता हूँ जो एक वार्णिक छंद है तथा जिसका विधान प्रथम पंक्ति ८ वर्ण,द्वितीय पंक्ति ८ वर्ण,तृतीय पंक्ति ८ वर्ण तथा चतुर्थ पंक्ति ७ वर्ण है,इसमें १६-१५ की यति से कुल ३१ वर्ण होते हैं।
इसमें चरणांतों में लगु-गुरु रखने से छंद में मधुरता आती है।

भीड़ बढ़ी हुई यहाँ,

पाँव धरे हम कहाँ,

आरक्षण रूमाल दे,

मूड तो बनाइए


आदमी लटक रहे,

बैठे जो खटक रहे,

बीच में आवाज आए,

मूड तो बनाइए।


थके हुए हम सोए,

सपने में खोए हुए,

मूँगफली लेके आया,

मूड  तो बनाइए।


किसी को थी हुई शंका,

भाग उठा लघुशंका,

पेट भी खराब जब,

मूड तो बनाइए।

भीड़ का अपने मजा,

 इनाम तो कहीं सजा,

 दबे वो पाँव पुकारे,

 हुज़ूर बचाइए।

पेट साफी जो आलय,

जिसे कहें शौचालय,

 बंद नहीं कभी करें,

भावनाएं  जानिए।

भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏










१.क्या छंदबद्ध रचनाएं अधिक पठनीय होती हैं?

उत्तर-छंदबद्ध रचनाएं काव्य में प्राण फूंक देती हैं।

इससे काव्य में गेयता आ जाती है।


२.क्या छंद को सीखने में कठिनाई आती है?

उत्तर-छंद एक साधना है।किसी भी साधना में समय तो लगता ही है और साधना जब सरल हो तो साधना क्या !


३.छंद को सीखने में सुगमता कब होती है?

 उत्तर-जब छंद के विधान व मात्राभार से आप परिचित हो जाते हैं तो इसे सीखने में सुगमता होती है।

४. क्या प्राचीनतम छंद फिल्मी गानों में प्रयोग किए गए हैं?

 उत्तर-जी प्रत्येक छंदों का प्रयोग किसी ना किसी गाने में हुआ है,उदाहरणार्थ-मुहब्बत एक तिजारत बन गयी है सुमेरु छंद पर आधारित है।

साथ ही श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन भजन उडियाना छंद में है।

५ .क्या वार्णिक छंद व मात्रिक छंद में कुछ भिन्नता है?

उत्तर-बिल्कुल कुछ छंद वर्णों यानि अक्षरों पर आधारित हैं तो कुछ मात्राओं के आधार पर लिखे जाते हैं।

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६ .वार्णिक व मात्रिक छंदों के कुछ उदाहरण रखें?

उत्तर-माता शब्द में दो वर्ण हैं तथा मात्राएं चार हैं।

विशेष :-इस जमघटी यानि भीड़ वाली ट्रेन की यह यात्रा आपको कैसी लगी,अपनी टिप्पणियों के माध्यम से अवश्य बताएँ।

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