पति व पत्नी : एक महासंग्राम के योद्धा
जीवन यान के दो पहिये :पति व पत्नी
परिचय
संसार का निर्माण दो विशिष्ट प्राणियों से हुआ है - पुरुष और प्रकृति। इन दोनों के बिना जीवन की आधारशिला रखना संभव नहीं था। यही पुरुष और प्रकृति, जब विवाह के बंधन में बंधते हैं, तो पति और पत्नी के नाम से जाने जाते हैं।
इस नए बंधन के बंधते ही उस महासंग्राम का प्रारम्भ होता है जो अंतहीन होता है। यह संग्राम सुतली बम की तरह कभी भी अचानक फट सकता है, जिसे सुलगाने के लिए केवल असुरक्षा की भावना ही काफी होती है। आइए, इस नए संबंध से उत्पन्न होने वाली हास्य फुलझड़ी का आनंद लें और देखें कि कैसे यह पति-पत्नी का महासंग्राम हमें हंसाता है और जीवन को मजेदार बनाता है।
मुसीबत का मारा बेचारा पति
पति, दो ध्रुवों के बीच फंसा वह विशिष्ट प्राणी है जिसे तमगे के नाम पर हमेशा जद्दोजहद मिलती है। सुख, शांति, अमन और चैन से उसका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता।यह रिश्ता और मजबूत तब होता है जब वह पति माता-पिता,भाई-बहन व पत्नी के मध्य द्वन्द में फंस जाता है।
बेचारा ऊखलवा में कपार फोड़े या ऊखल कपार पे फोड़े घायल हमेशा ऊहै न होवत है जी।
मतबल पत्नी की इच्छा पूरी करे तो माता-पिता की इच्छा अधूरी और उनकी तो पत्नी की।बेचारा करे तो क्या करे...
दो पाटन के बीच में फँसा पति
इस प्रकार, पति की भूमिका दो पाटन के बीच में फंसे एक जीव की होती है, जो संतुलन बनाए रखने की कोशिश में लगातार संघर्ष करता रहता है। यह उसकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन जाता है,और इस संघर्ष में ही वह अपना जीवन बिताता है।
थककर बाहर काम, घर पहुँचते घमासान
थका-हारा बेचारा पति दिनभर जब बाहर काम कर घर पहुँचता है, तो दरवाजे पर ही दो मिसाइलें उसकी प्रतीक्षा करती रहती हैं, जो उसके पहुँचते ही अपनी-अपनी दिशा पकड़कर छूटने लगती हैं। इन धमाकों के बीच बेचारा वह मासूम जीव पति कहाँ खो जाता है, उसे पता ही नहीं चलता।दोनों स्त्रियाँ, यानी माता और पत्नी, अपने टेशू बम के पावर से ठुनक-ठुनक कर अपना पक्ष पेश करना प्रारम्भ कर देती हैं, जिसे रोकने की कोशिश में बेचारे इस पति नामक जीव के चिथड़े-चिथड़े उड़ जाते हैं।
पत्नी की माँगें और मायके का महात्म्य
पत्नी, जिसके लिए मायके का महात्म्य हर बार किसी न किसी बहाने से बढ़ जाता है। एक दिन पत्नी ने अपने पति से कहा, "हम मईका जईबे..." पति महाशय आज्ञा पालन हेतु तैयार और ले भी गए। लेकिन जैसे ही पत्नी का मायका (जो पति का ससुराल होता है) पहुंचते हैं, माय-बाबू के "कब आओगे" वाला गाना बज उठता है।बॉस व पत्नी के मायके में बेचारा पति
पति देव ने ससुराल में पाँव रखा भी नहीं था कि फोन बज उठा, "किस रोज तुमसे मुलाकात होगी, पोस्ट तुमरा प्यासा, अब संभले ना!" ऑफिस से फोन आया, बॉस ने डांँट लगाई कि कब तक छुट्टी में रहोगे? अब पति सोच में पड़ गया कि क्या करे, कहांँ जाए।दुश्मन खेमे में फँसा पति : पत्नी के मायके में
पत्नी का मायका, जिसे विद्वानों ने पति के ससुराल के नाम से संबोधित किया है ,एक ऐसा स्थान है जहाँ साले-साली व पत्नी के रूप में ऑक्सीजन उपलब्ध होने के बाद भी पति की साँसें घुटने लगती है क्योंकि हर दिन "जीजाश्री,जीजाश्री" सुनने के लिए जेबें ढीली करनी होती है।पत्नीस्वरूपा तोप के साथ सरहजी बम से बचने की रणनीति बनाते रहना होता है।
काम का बोझ व ससुराल का बुलावा
स्त्री मतभेदों से निकलने के नुस्खे ढूँढता पति
पति नामक प्राणी के अव्यवस्थित जीवन का क्षेत्रीय भाषिक वर्णन
एक ऐसने पति रहे कभयो माय-बाप के आज्ञा मनवे खातिर हरदमे तैयार,पर आज्ञा और मानव का ऐसने समीकरणवा है ,कऊन! अरे ऊहै छुरी और तरबूजा वाला,छुरी जैसनो गिरे,कटयें तरबूजवे ही,मतबल माय-बाप के मनयहैं तऽ मेहरारू रूसयें।
इहै सोच में पति महाशय पड़ल थे कि बम फूटा,मेहरारू बोलल कि हम मईका जईबे....
पति महाशय आज्ञा पालन हेतु तैयार और ले ले भी गए,ऊहैं अपन मेहरारू के मईका आरो उनखर ससुरारि।
पर ई विडंबना लोकिए ससुरारि में पांव धईबो भी नहीं सके थे कि माय-बाबू के कब आओगे वाला गाना बज उठा,ई गनवा में पति देव के नौकरी वाले बाबू भी बज उठे :-
किस रोज तुमसे मुलाकात होगी,पोस्ट तुमरा प्यासा,अब संभले ना!
जरा ससुराल सै तो निकल के इहवाँ आ जा हमरे स्टफवा....
हाय रे किश्मत,लोग जखन ससुरारि जाता है ,पुआ-पकवान खाता है,मजे से रहता है,पर ऐकरे किस्मत का, का कहें।
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