अविस्मरणीय स्मृतियां दादाजी-दादीजी की

अविस्मरणीय स्मृतियां दादाजी-दादीजी की

मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अपने संबंधों को विशेष महत्व उससे बिछड़ जाने के बाद ही देता आया है,बाद में व्यक्ति विशेष तो चिरनिद्रा में चला जाता है,पर शेष रह जाती है उसकी अविस्मरणीय स्मृतियां.....
Avismraniya smrityaan dada-dadi ki
 दादाजी-दादीजी की वही अविस्मरणीय स्मृतियां जो कभी यथार्थ थी और आज छद्म,छलावा,अवशेष मात्र हैं अनायास ही आज आपसबों से साझा करने की इच्छा हुई।

   स्मृतिशेष दादीजी

  दादीजी की स्मृतियां तो अत्यंत ही अल्प है जो मेरे जीवन से जुड़ी हुई हैं क्योंकि वो संभवतः जब मैं लगभग पहली या दूसरी कक्षा में पढ़ता था,तभी वो परमधाम को प्रस्थान कर गयी थीं।

  हाँ, कुछ एक स्मृतियां शेष हैं जो मैं आपसे साझा करता हूँ:-बाल्यकाल में जब एक शिक्षिका मुझे पढ़ाती थीं और गृहकार्य उचित ढंग से न करने पर दण्डित करती थीं तो दादीजी उनसे केवल यही कहा करती थीं कि मेरा पोता खेत जोत कर खा लेगा,पर ऐसे पिटाई खाकर उसे पढ़ने मैं कभी भी नहीं दे सकती।

क घटना यह भी थी कि मामा यानि दादीजी को अस्थमा था और उन दिनों यह लाइलाज बीमारी हुआ करती थी तब मैं उनकी एक दवाई मीठी लगने के कारण हजम कर जाता था।

अविस्मरणीय स्मृतियां दादाजी की 

दादाजी के साथ काफी लंबे समय तक समय बिताने का अवसर प्राप्त हुआ।दादाजी एक नामी वैद्य थे।

 च्यवनप्राश,हाजमोला की तरह की औषधि घर में ही बनाई जाती थी,जिसे मैं दादाजी के जनेऊ में लटकने वाली चाभी से खोल चट कर जाता था और वो काफी नाराज़ होते थे।

उनकी नाराजगी में भी मेरे लिए केवल स्नेह ही समाहित था।

बालपन के वो दिन आज खो-से गए हैं

समय कितनी शीघ्रता से अपने चक्र को गतिमान कर देता है कि सभी कुछ पीछे छूटता जाता है,कल जो थे वो आज नहीं और जो हैं वो कल नहीं,बड़ी ही विचित्र विडंबना है इस समय चक्र की,जिसके कारण  बालपन के वो दिन आज खो से गए हैं।

तुमने जब साथ छोड़ दिया ।

तब अकेला चलना सीख लिया।।
   तुम्हें जब निष्ठुर काल आया था लेने ।
     कहा होगा जरुर थोड़ा और ठहर लेने।।
      मामा जब तुम इस लोक से परलोक जा रही होगी ।
      सोच जरुर रही होगी कि मेरा दुलारा भारत नहीं आया मुझसे मिलने।
   बताऊँ क्या मैं तुझे मामा पापा ने था नहीं बताया कि अब तुझसे जा रहा हूँ अन्तिम क्षण मिलने।।
   ये तेरा दुलारा कहाँ सोच पाने में अति सक्षम था।
    कि तुझे गंगाजी स्नान कराने लेकर जाना बोलना ये सब मुझ अबोध को ठगने को लहराने वाला परचम था।।
   मामा अब मैं विवाहित हूँ हाँ कहने को प्रसन्न हूँ ।
पर कभी -कभी सोच लेता हूँ कि काश तुम होती और हम दोनों आराम से उत्तरौ कांथी में बैठते।
मामा अब कहता हूँ तू बहुत याद आती है।
और तुम्हारे दवाई को चोरी से खा जाना बरबस रुला  जाती है।।
Dedicated to my grand parents

काव्य का सारांश :-
आपके गौण और मौन होते दादाजी-दादीजी इस मानव ने एकाकी भ्रमण के सिद्धांत को अपना लिया।
इसके वनिस्पत की यह शरीर नश्वर है,पर इससे संबंधित सभी रिश्ते-नातों से लगा मोह सरलता से जीवनांत के पश्चात महायात्रा पर चलने को तटस्थ नहीं हो पाता,संभवतः आपने भी उस काल से स्वयं के 
लिए थोड़े समय की विनती अवश्य की होगी।
दादीजी मैं आपके महायात्रा के समय समक्ष नहीं
 था और इस कारण संभवतः आपका प्राण पखेरू  मुझसे मिलने देने को परमात्मा से बारंबार विनती कर रहा होगा।
सारांशतः ये मेरे द्वारा लिखे सम्पूर्ण काव्यगत भाव मेरे उन प्रियों से बिछोह की वेदना का वर्णन करने का यथेष्ट प्रयत्न है। 
 कुछ आवश्यक प्रश्न
१. मनोभावों को व्यक्त करने का एक उत्तम साधन क्या छंदमुक्त काव्य लेखन हो सकता है ?
उत्तर-जी,छंदमुक्त काव्यों में मनोभावों को अभिव्यक्त करना छंदबद्ध काव्यों के अपेक्षाकृत अधिक सरल इसलिए होता है क्योंकि इसमें मनोनुकूल भावों को व्यक्त करने के लिए कोई बंधन इत्यादि नहीं होते।

२.क्या मनोनुकूल भावों को व्यक्त करने के लिए काव्य में तुकांतता अनिवार्य हो सकती है ?
उत्तर-नहीं मनोनुकूल भावों को व्यक्त करने में तुकांतता अत्यावश्यक तो नहीं,पर तुकांतता से काव्य में लयात्मकता का विकास संभव अवश्य होता है।

३.क्या  आधुनिक कवि सनातनी छंदों को सीखने में इच्छुक हैं ?
उत्तर-जी ,कुछ सीमा तक आधुनिक कवि सनातनी छंदों को सीखने में इच्छुक तो हैं ,पर वह छंदमुक्त काव्यों में लेखन सरल होने के कारण करना अधिक उत्तम मानते हैं।
४.मनोनुकूल भावों को छंदमुक्त काव्यों के माध्यम से प्रकट करने वाले कुछ कवियों के नाम बताएं ?
उत्तर-मनोनुकूल भावों को छंदमुक्त काव्यों के माध्यम से प्रकट करने वाले कुछ कवियों के नाम हैं :-गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर,अयोध्या सिंह उपाध्याय'हरिऔध' व 
छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा इत्यादि।




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